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भारत सरकार: केंद्र सरकार या संघ सरकार

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ)

संदर्भ

तमिलनाडु सरकार ने अपने आधिकारिक संचार में ‘केंद्र सरकार’ (Central Government) शब्द के स्थान पर 'संघ सरकार’ (Union Government) का प्रयोग करने का निर्णय लिया है। कई विशेषज्ञ इसे ‘संविधान की चेतना’ को पुन: प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम मान रहे हैं।

‘भारत’ राज्यों का संघ

  • संविधान के अनुच्छेद 1 में स्पष्ट तौर पर उल्लिखित है कि “भारत अर्थात् इंडिया राज्यों का संघ होगा”। राज्य और राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली सूची में विनिर्दिष्ट हैं।
  • भारतीय संविधान में ‘केंद्र सरकार’ पद का कहीं भी उल्लेख नहीं है। संविधान सभा ने 22 भागों के सभी 395 अनुच्छेदों में ‘केंद्र’ या ‘केंद्र सरकार’ पद का प्रयोग नहीं किया था। गौरतलब है कि मूल संविधान में 22 भाग और आठ अनुसूचियाँ थीं।
  • भारत में ‘संघ’ और राज्य हैं। संघ की कार्यकारी शक्तियों राष्ट्रपति द्वारा संचालित होती  हैं तथा वह अपनी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की ‘सहायता और सलाह’ पर कार्य करता है।

केंद्र सरकार की परिभाषा

  • उक्त तथ्यों के बाद प्रश्न यह उठता है कि न्यायपालिका, मीडिया और यहाँ तक कि राज्य भी केंद्र सरकार को ‘केंद्र’ के रूप में संदर्भित क्यों करते हैं?
  • भले ही हमारे संविधान में ‘केंद्र सरकार’ को कहीं भी संदर्भित नहीं किया गया है, लेकिन ‘सामान्य खंड अधिनियम,1897 (General Clauses Act, 1897) इसे परिभाषित करता है।
  • सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिये ‘केंद्र सरकार’ संविधान के लागू होने के बाद प्रमुख है।
  • अतः मुख्य प्रश्न यह है कि क्या ‘केंद्र सरकार’ की ऐसी परिभाषा संवैधानिक है, क्योंकि संविधान ही ‘सत्ता के केंद्रीकरण’ की स्वीकृति नहीं देता है।

संविधान सभा का आशय

  • 13 दिसंबर, 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में यह उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया कि भारत ‘प्रभुत्वसंपन्न स्वतंत्र गणराज्य’ में शामिल होने के इच्छुक राज्यक्षेत्रों का एक संघ होगा। 
  • सभा ने एक मज़बूत संयुक्त देश बनाने के लिये विभिन्न प्रांतों और राज्यक्षेत्रों के एकीकरण और संप्रवाह पर ज़ोर दिया था।
  • संविधान सभा के कई सदस्यों की राय थी कि ब्रिटिश ‘कैबिनेट मिशन’  (1946) के सिद्धांतों को अपनाया जाना चाहिये, जिसके तहत सीमित शक्तियों के साथ एक केंद्र सरकार तथा पर्याप्त स्वायत्तता के साथ प्रांतीय सरकारें हो।
  • लेकिन देश के विभाजन एवं कश्मीर में वर्ष 1947 की हिंसा ने संविधान सभा को अपने दृष्टिकोण को संशोधित करने के लिये मज़बूर किया तथा इसने एक मज़बूत केंद्र के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया।

अलगाववाद को रोकने का प्रयास

  • संघ से राज्यों के अलग होने की संभावना ने संविधान के प्रारूपकारों को ज़्यादा मंथन करने पर विवश किया, इसके उपरांत उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि भारतीय संघ ‘विनाशी राज्यों का अविनाशी संघ होगा’।
  • संविधान सभा में प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने माना कि ‘संघ’ शब्द का प्रयोग राज्यों के अलगाव के अधिकार को नकारात्मक करने के लिये किया गया था।
  • अंबेडकर ने ‘राज्यों के संघ’ के प्रयोग को यह कहते हुए उचित ठहराया कि प्रारूप समिति यह स्पष्ट करना चाहती थी कि यद्यपि भारत एक संघ है लेकिन यह किसी समझौते का परिणाम नहीं है इस कारण से किसी भी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है।  

‘राज्यों द्वारा संघ’ की आलोचना

  • अंबेडकर द्वारा ‘राज्यों के संघ’ पद के प्रयोग को सभी सदस्यों ने मंजूरी नहीं दी थी। मौलाना हसरत मोहानी ने इसकी आलोचना की थी, उन्होंने तर्क दिया कि अंबेडकर ‘संविधान की प्रकृति’ को बदल रहे हैं।
  • मोहनी ने 18 सितंबर, 1949 को संविधान सभा में तर्क दिया कि ‘राज्यों के संघ’ शब्द के प्रयोग से ‘गणतंत्र’ शब्द अस्पष्ट हो जाएगा। मोहानी ने यहाँ तक कहा कि अंबेडकर चाहते हैं कि ‘संघ’ जर्मनी के बिस्मार्क द्वारा प्रस्तावित संघ जैसा हो, जिसे बाद में कैसर विलियम तथा एडॉल्फ हिटलर द्वारा अपनाया गया था।
  • मोहनी ने आगे कहा, “वह (अंबेडकर) चाहते हैं कि सभी राज्य एक नियम के तहत आ जाएँ, जिसे हम संविधान की अधिसूचना कहते हैं। वह सभी इकाइयों, प्रांतों और राज्यों के समूहों, हर चीज को केंद्र के अधीन लाना चाहते हैं।
  • हालाँकि, अंबेडकर ने स्पष्ट किया कि “संघ राज्यों की एक लीग नहीं है, जो एक ढीले रिश्ते में एकजुट है; न ही राज्य संघ की एजेंसियाँ हैं, जो इससे शक्तियाँ प्राप्त कर रही हैं।
  • संघ और राज्य, दोनों संविधान द्वारा बनाए गए हैं, दोनों संविधान से अपने-अपने अधिकार प्राप्त करते हैं। वे अपने क्षेत्र में दूसरे के अधीन नहीं हैं तथा एक का अधिकार, दूसरे के अधिकार के साथ समन्वय पर आधारित है।

भारतीय संघ की विशेषताएँ

  • संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा सरकार के कार्यकारी अंग तक ही सीमित नहीं है।
  • संविधान में न्यायपालिका के लिये यह सुनिश्चित किया गया है कि उच्चतम न्यायालय का उच्च न्यायालयों पर कोई अधीक्षण नहीं होगा है। 
  • यद्यपि उच्चतम न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार न केवल उच्च न्यायालयों पर बल्कि अन्य न्यायालयों और न्यायाधिकरणों पर भी लागू होता है। इस कारण उन्हें इसका अधीनस्थ घोषित नहीं किया जा सकता है।
  • वस्तुतः उच्च न्यायालय के पास ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों के अधीक्षण की शक्ति होने के कारण ‘विशेषाधिकार रिट’ जारी करने की व्यापक शक्तियाँ होती हैं।
  • इसी प्रकार, संसद और विधानसभाएँ अपनी सीमाओं की पहचान करती हैं और जब वे किसी ‘विषय पर कानून बनाती हैं तो वे अपनी सीमाओं का ध्यान रखती हैं। हालाँकि, टकराव की स्थिति में संघीय संसद प्रबल होती है।

शब्दों का हेर-फेर

  • संविधान सभा के सदस्य संविधान में ‘केंद्र’ या ‘केंद्र सरकार’ पद का प्रयोग न करने के लिये बहुत सतर्क थे, क्योंकि उनका उद्देश्य एक इकाई में शक्तियों के ‘केंद्रीकरण की प्रवृत्ति’ को दूर रखना था।
  • ‘केंद्र सरकार’ या ‘भारत सरकार’ का एक एकीकृत प्रभाव है क्योंकि इससे यह संदेश दिया जाना चाहिये कि ‘सरकार सभी की’ है। भले ही संविधान की संघीय प्रकृति इसकी मूलभूत विशेषता है तथा इसे परिवर्तित भी नहीं जा सकता है।
  • अतः यह देखना शेष है कि क्या सत्ता संचालन करने वाले राजनेताओं का इरादा संविधान की संघीय विशेषता की रक्षा करने का है या नहीं? 

निष्कर्ष

नानी पालकीवाला ने इसी संदर्भ में कहा था कि “जटिल समस्या का एकमात्र संतोषजनक और स्थायी समाधान क़ानून की किताब में नहीं बल्कि सत्ताधीशों के विवेक में पाया जाता है”।

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