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दिल्ली मास्टर प्लान 2041 और ‘ग्रीन-ब्लू’ नीति

(प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 3 : शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

चर्चा में क्यों?

वर्तमान में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ‘दिल्ली 2041’ मास्टर प्लान की तैयारी हेतु सार्वजनिक रूप से परामर्श ले रहा है। दिल्ली मास्टर प्लान 2041- दिल्ली के विकास के लिये एक विज़न डॉक्यूमेंट है।

पृष्ठभूमि

दिल्ली के लिये मौजूदा मास्टर प्लान अगले वर्ष अप्रचलित हो जाएगा। मसौदा नीति में कई विशेषताएँ हैं, परंतु जल निकायों और इसके आसपास की भूमियों पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित किया गया है, अत: इसे ‘ग्रीन-ब्लू नीति’ के रूप में जाना जा रहा है।

ग्रीन-ब्लू अवसंरचना

  • ‘ब्लू अवसंरचना’ नदियों, नहरों, तालाबों और झीलों के साथ-साथ आर्द्र भूमियों, बाढ़ के मैदानों व जल शोधन संयंत्रों/सुविधाओं जैसे जल निकायों को संदर्भित करती है, जबकि ‘ग्रीन अवसंरचना’ का तात्पर्य पेड़ों, लॉन और मेड़ की पंक्तियों के साथ-साथ पार्कों, खेतों और जंगलों से है।
  • यह अवधारणा एक ऐसे शहरी नियोजन को संदर्भित करती है, जहाँ जल निकाय और भूमि एक-दूसरे पर आश्रित हैं। पर्यावरण और सामाजिक लाभों को प्रस्तावित करते हुए ये एक-दूसरे की मदद से विकसित होते हैं।

इस योजना पर अमल की प्रक्रिया

  • इस योजना के पहले चरण में डी.डी.ए. विभिन्न एजेंसियों की बहुलता से उत्पन्न समस्या से निपटना चाहता है। राज्य की विशेष प्रकृति के कारण दिल्ली कई वर्षों से इस समस्या से जूझ रही है।
  • डी.डी.ए. अधिकार क्षेत्र से सम्बंधित मुद्दों, निकास व्यवस्था और उसके आसपास के क्षेत्रों में विभिन्न एजेंसियों द्वारा किये जा रहे कार्य पर विचार करते हुए पहले एक खाका बनाना चाहता है। इसके बाद एक व्यापक नीति तैयार की जाएगी, जो सभी एजेंसियों के लिये एक सामान्य दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करेगी।
  • दिल्ली में लगभग 50 बड़े नाले (नीले क्षेत्र) हैं, जिनका प्रबंधन विभिन्न एजेंसियों द्वारा किया जाता है और उनकी खराब स्थिति तथा अतिक्रमण के कारण इसके आसपास की भूमि (हरे क्षेत्र) भी प्रभावित हुई है।
  • डी.डी.ए. अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर इनका एकीकरण करेगा और अनुपचारित अपशिष्ट जल के बहिर्वाह या मुहाने की जाँच करने के साथ-साथ मौजूदा प्रदूषकों को भी हटाकर, प्रदूषण के सभी स्रोतों को ख़त्म करेगा।
  • इसके लिये मशीनीकृत और प्राकृतिक प्रणालियों के समन्वय का तरीका अपनाया जा सकता है और इनमें से किसी भी स्थान पर ठोस कचरे की डम्पिंग को स्थानीय निकायों द्वारा सख्ती से प्रतिबंधित किया जाएगा।

पुनर्विकास के बाद क्षेत्र की स्थिति

  • इन निकास व्यवस्थाओं के आसपास की भूमि विशेष बफ़र परियोजनाओं के रूप में घोषित की जाएँगी।
  • हरे-भरे सम्बद्ध स्थानों का एक जाल पैदल यात्रा और साइकिल चालन मार्गों के ‘ग्रीन मोबिलिटी सर्किट’ के रूप में विकसित किया जाएगा। इसे निकास अपवाह तंत्र के समानांतर कार्यात्मक और यात्रा व सैर करने के लिये विकसित किया जाएगा।
  • योग, सक्रिय खेलों (जिनमें शारीरिक क्रिया हो), ओपेन एयर प्रदर्शनियों, संग्रहालयों और सूचना केंद्रों, ओपेन एयर थिएटरों, साइकिल चलाने व टहलने की सुविधाओं के लिये भी खाली जगह के विकास की योजना है। साथ ही वनस्‍पतिशाला, हरितगृह, सामुदायिक वनस्पति उद्यान, नौका विहार की सुविधा, रेस्तरां और अन्य कम प्रभाव वाले सार्वजनिक उपयोग स्थल को विशेष परियोजनाओं के हिस्से के रूप में प्रोत्साहित किया जा सकता हैं।
  • उपयोग की प्रकृति, सार्वजनिक पहुँच की सीमा/विस्तार, वनस्पति के प्रकार, जल निकायों के विकास के लिये उपयुक्तता, आदि को वैज्ञानिक आकलन के माध्यम से मामले-दर-मामले के आधार पर निर्धारित किया जाएगा।
  • इसके बाद इन एकीकृत गलियारों के अगल-बगल अचल सम्पत्ति (Real Estate) का भी विकास किया जाएगा।

चुनौतियाँ

  • यहाँ सबसे बड़ी चुनौती विकास कार्यों और उनके संचालन में एजेंसियों की बहुतायतता है। इसके लिये डी.डी.ए. इस परियोजना में विभिन्न हितधारकों के रूप में दिल्ली जल बोर्ड, बाढ़ व सिंचाई विभाग और नगर निगम जैसी विभिन्न एजेंसियों को एक साथ लाना चाहता है।
  • दिल्ली जैसे शहरों में जहाँ जलभराव की समस्या भी विभिन्न एजेंसियों के बीच दोषारोपण का कारण बन जाती है वहाँ विभिन्न एजेंसियों को एक साथ लाना विशेष रूप से एक कठिन कार्य होगा क्योंकि डी.डी.ए. के पास इन निकायों के निरीक्षण की कोई शक्ति नहीं है।
  • दूसरी बात दिल्ली में वर्षों से जल निकायों और नालों की सफाई अब एजेंसियों के लिये एक चुनौती बन गईं हैं। आई.आई.टी. - दिल्ली के शोधकर्ताओं की एक रिपोर्ट में 20 प्रमुख सीवर निकासों और यमुना नदी पर पाँच प्रमुख स्थलों पर कोलीफॉर्म और अन्य प्रदूषकों की अत्यधिक उपस्थिति पाई गई है।
  • ऐसा माना जाता है कि इन निकासों से केवल बारिश का पानी बहता है। हालाँकि, अध्ययन में इन निकासों में से कुछ में मल अपशिष्ट और यहाँ तक ​​कि औद्योगिक कचरा भी पाया गया।
  • डी.डी.ए. द्वारा पहले भी इसी तरह का एक प्रयास किया गया था, जहाँ यमुना में कचरे की डम्पिंग की जाँच के लिये एक विशेष टास्क फोर्स बनाई गई थी परंतु यह योजना सफल नहीं रही है।
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