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मनुष्य के हाथ - प्रकृति के साथ

संदर्भ

  • हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यू.एन.ई.पी.) ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA -5) के पांचवें सत्र के पहले' मेकिंग पीस विथ नेचर ('Making Peace with Nature)’ नामक रिपोर्ट जारी की है।
  • रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि और प्रदूषण जैसी स्व-स्फूर्त आपात स्थितियाँ किस प्रकार से जुड़ी हुई हैं और ये वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों को किस प्रकार अत्यधिक जोखिम में डाल सकती हैं। 

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • आपात स्थिति
  • लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से आर्कटिक के पिघलने की संभावना बढ़ रही है,जिससे समुद्री परिसंचरण और आर्कटिक पारिस्थितिकीय तंत्र बाधित हो रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन की वजह से ने सिर्फ जंगलों में आग (दावानल) बढ़ रही है बल्कि जल (पीने योग्य तथा समुद्रीय) का स्तर भी लगातार गिर रहा है। इसके अलावा जहाँ कई क्षेत्रों में भूमि की उर्वरा शक्ति घट रही है वहीं कई जगहों पर सूखे का प्रभाव भी बढ़ रहा है। 

जैव विविधता की हानि

  • अनुमानित 8 मिलियन पौधों और जानवरों की प्रजातियों में से लगभग एक मिलियन से अधिक विलुप्ति के कगार पर हैं।
  • प्रवाल भित्तियों (कोरल रीफ़्स) पर जलवायु परिवर्तन का विशेष प्रभाव पड़ा है और यदि वैश्विक तापन (ग्लोबल वार्मिंग)5 डिग्री सेल्सियस के चिन्ह परपहुंचता है तो इनके10-30% तक क्षेत्रफल नष्ट हो सकते हैं। 

प्रदूषण

  • प्रदूषण के कारण हर वर्ष लगभग नौ लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है।
  • वैश्विक रूप से प्रति वर्ष लगभग 400 लाख टन भारी धातुएँ,घुलित लवण, विषाक्त कीचड़ और अन्य प्रकार के औद्योगिक कचरे जल राशियों में प्रवेश कर जाते हैं। 

व्यापक असमानताएँ

  • वर्तमान में यदि सामाजिक असमानता की बात जाय तो पर्यावरणीय संकटका बोझ सबसे अधिक गरीबों और कमज़ोर तबके के लोगों पर पड़ता है औरआने वाली पीढ़ियों पर यह बोझ और बढ़ जाता है।
  • वर्तमान में आर्थिक विकास में दिखने वाली असमानता की वजह से लगभग 3 बिलियन लोगों गरीबी की कगार पर खड़े हैं। 

विभिन्न लक्ष्यों के सापेक्ष प्रदर्शन

  • पर्यावरणीय क्षति को सीमित करने के लियेसमाज अपनी अधिकांश प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल है।
  • यदि भूमि क्षरण तटस्थता (Land degradation neutrality), आईची लक्ष्यों (Aichi targets) और पेरिस समझौते के लक्ष्यों की बात की जाय तो निश्चित रूप से सरकारों और लोगों का दृष्टिकोण बहुत उदासीन है और एक समाज के रूप में हम बहुत पीछे हैं। 

सुझाव

  • मानव ज्ञान, कार्य कुशलता, प्रौद्योगिकी और आपसी सहयोग,समाजएवं अर्थव्यवस्था की वर्तमान दशा को बदलने में सक्षम है और इनके कुशल संयोजन से हम स्थाई भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन की प्रकृति, जैव विविधता की हानि, भूमि क्षरण और वायु व जल प्रदूषण के कारणों में परस्पर समानता को देखते हुए यह आवश्यक है कि इन समस्याओं के संयुक्त हल के लिये प्रयास किये जाएँ।
  • सरकारों को पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने और तीव्र जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिये अपनी कार्रवाई को गति लाने में तेज़ी दिखानी चाहिये।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम

  • इस कार्यक्रम की स्थापना वर्ष 1972 में मानव-पर्यावरण पर स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के उप-परिणाम के रूप में हुई थी।
  • इस संगठन का उद्देश्य मानव पर्यावरण को प्रभावित करने वाले सभी मामलों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना तथा पर्यावरण सम्बन्धी जानकारी का संग्रहण, मूल्यांकन एवं पारस्परिक आदान-प्रदान करना है।
  • इसका मुख्यालय नैरोबी (केन्या) में है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का प्रशासनिक निकाय है।
  • पर्यावरण के संदर्भ में निर्णय लेने वाली विश्व की सर्वोच्च संस्था संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा है।
  • यह दुनिया के सामने आने वाली महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों को संबोधित करती है।
  • यह पर्यावरणीय सभा हर दो वर्ष में एक बार आयोजित की जाती है।
  • सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा का गठन जून 2012 में किया गया था।
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