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अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा क़तर के हवाई क्षेत्र के सम्बंध में निर्णय

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा क़तर के हवाई परिचालन पर कुछ देशों द्वारा लगाई गई नाकेबंदी तथा अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के क्षेत्राधिकार के सम्बंध में क़तर के पक्ष में निर्णय दिया है।

पृष्ठभूमि

वर्ष 2017 में 4 अरब देशों ने क़तर के साथ सम्बंधों को तोड़ते हुए अपने हवाई क्षेत्रों को क़तर और उसकी एयरलाइन के लिये प्रतिबंधित कर दिया था। इन देशों द्वारा क़तर पर पूर्ण नाकेबंदी/प्रतिबंधों (Blockade) के तीन से अधिक वर्षों के बाद सऊदी अरब और उसके सहयोगी देशों को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) से एक बड़ा झटका लगा है। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत द्वारा उक्त 4 देशों की अपील को खारिज कर दिया गया है। यह अपील क़तर के विरुद्ध इन देशों द्वारा लगाए गए हवाई प्रतिबंधों की वैधता पर निर्णय करने के अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन प्राधिकरण (ICAO) के अधिकारों को चुनौती देने से सम्बंधित थी। ‘अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन प्राधिकरण’, संयुक्त राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय विमानन एजेंसी है। हालाँकि, नाकेबंदी अभी भी लागू है और अगले वर्ष आई.सी.ए.ओ. द्वारा क़तर के पक्ष में निर्णय आने की आशा है जो क़तर के साथ-साथ उसके राष्ट्रीय हवाई परिवहन ‘क़तर एयरवेज़’ के लिये एक बड़ी जीत मानी जाएगी।

क़तर के ख़िलाफ़ प्रतिंबंध और नाकेबंदी (Blockade)

  • जून 2017 में क़तर के तीन पड़ोसी देशों सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात व बहरीन के साथ-साथ मिस्र (Egypt) ने क़तर के लिये सभी शिपिंग और हवाई मार्ग को बंद करते हुए क़तर से सभी कूटनीतिक और आर्थिक सम्बंधों को तोड़ लिया था। ये तीनों देश सऊदी अरब के बड़े सहयोगी माने जाते है।
  • सऊदी अरब और सहयोगी देशों द्वारा क़तर के साथ सम्बंध ख़त्म करने का कारण क़तर द्वारा इस क्षेत्र में कथित तौर पर आतंकवाद को समर्थन प्रदान करना और ईरान के साथ उसके सम्बंधों को बताया गया है।
  • हालाँकि, क़तर ने इस्लामी चरमपंथ का समर्थन करने से इंकार किया है और इस तरह की नाकेबंदी को अपनी सम्प्रभुता पर स्पष्ट हमला बताया है।
  • क़तर के पड़ोसियों ने पूर्ववर्ती सम्बंधों को बहाल करने के लिये दोहा के सामने 13-सूत्रीय माँग रखी थी।
  • इनमें कुछ प्रमुख माँगों में क़तर द्वारा अल-जज़ीरा जैसे समाचार आउटलेट को बंद करना, मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे कट्टरपंथी इस्लामी समूहों के साथ सम्बंधों को तोड़ना, शिया-बहुल ईरान के साथ सम्बंधों में कमी लाना और देश में तैनात तुर्की सैनिकों को हटाना शामिल है।
  • वर्ष 2017 से, कतर के साथ लगने वाली एकमात्र स्थलीय सीमा (सऊदी अरब के साथ) की भी नाकेबंदी कर दी गई थी। इसमें, कतर के जहाज़ों को सऊदी गठबंधन देशों के किसी भी बंदरगाह में प्रवेश करने से रोकना भी शामिल है।
  • साथ ही, कतर के नागरिकों को भी इन देशों द्वारा निष्कासित कर दिया गया था।
  • इन देशों ने क़तर के खिलाफ प्रतिबंधों को सही ठहराते हुए कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये यह उनका सम्प्रभु अधिकार था।

आई.सी.जे. का निर्णय

  • सऊदी गठबंधन देशों द्वारा हवाई नाकेबंदी के विरोध में क़तर ने वर्ष 1944 के ‘नागरिक उड्डयन पर अभिसमय’ के तहत मुक्त हवाई आवागमन (Free Passage) के अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया था। इसके लिये क़तर ने अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन प्राधिकरण (ICAO) से सम्पर्क किया, जिसका गठन इसी अभिसमय द्वारा संयुक्त राष्ट्र विमानन संस्था के रूप में किया गया है।
  • आई.सी.ए.ओ. में, सऊदी अरब और उसके सहयोगियों ने तर्क दिया कि ऐसे विवाद को निपटाने का अधिकार केवल आई.सी.जे. के पास होना चाहिये क्योंकि यह केवल विमानन मामलों से जुड़ा मुद्दा नहीं है।
  • वर्ष 2018 में, आई.सी.ए.ओ. ने सऊदी गठबंधन के खिलाफ फैसला सुनाते हुए कहा था कि इस मामले की सुनवाई उसके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आती है।
  • इसके बाद, इन चार देशों द्वारा इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाया गया, जिसने 15-1 के बहुमत से आई.सी.ए.ओ. के निर्णय और क्षेत्राधिकार का समर्थन किया।
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, अब आई.सी.ए.ओ. द्वारा अगले वर्ष क़तर पर लगाए गए हवाई नाकेबंदी पर फैसला देने की उम्मीद है।

क़तर और सऊदी के सम्बंधो में तनाव का कारण

  • कतर ने लम्बे समय से अपनी विदेश नीति को अन्य अरब पड़ोसियों से स्वतंत्र रखने का प्रयास किया है जो उसके क्षेत्रीय अरब पड़ोसियों की प्राथमिकताओं के साथ मेल नहीं खाती है।
  • इस नीति में शिया बहुल ईरान के साथ घनिष्ठ आर्थिक और कूटनीतिक सम्बंध शामिल हैं। ईरान को सुन्नी बहुल सऊदी का एक बड़ा क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी माना जाता है।
  • इसके अलावा, क़तर और तुर्की भी एक-दूसरे के सहयोगी रहे है। रूस व तुर्की के सम्बंधों में घनिष्ठता तथा तुर्की व अमेरिका के बीच बढ़ती दूरी का असर सऊदी और तुर्की के सम्बंधों पर भी पड़ा है।
  • 6 सदस्यीय ‘खाड़ी सहयोग संगठन’ के अधिकतर कूटनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक मामलों की अगुवाई सऊदी अरब करता है।
  • इसी की अगुवाई में 5 जून, 2017 को सऊदी अरब, यू.ए.ई. और बहरीन ने क़तर के साथ सम्बंधों में कटौती करने के साथ-साथ कतर के नागरिकों को 14 दिनों के भीतर देश छोड़ने का निर्देश दिया था। मिस्र द्वारा भी दोहा के साथ कूटनीतिक सम्पर्क को तोड़ दिया गया था।

क़तर की कूटनीति

  • सऊदी सहयोगियों द्वारा बहिष्कार का सामना कर रहे क़तर ने कुछ वर्ष पूर्व दूसरे देश के प्रवासियों हेतु अतिरिक्त अधिकारों के साथ स्थाई निवास कार्ड जारी करने सम्बंधी ऐतिहासिक कानून को मंज़ूरी दी थी, जिसका उद्देश्य 6 सदस्यीय खाड़ी सहयोग संगठन के रूढ़िवादी समाजों में बदलाव की क्षमता को बढ़ाना था। इस निर्णय को क़तर के जनसम्पर्क रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। ज्ञातव्य है कि खाड़ी देशों में नागरिकता कानून बहुत सख़्त हैं।
  • साथ ही, क़तर द्वारा इस कानून के माध्यम से व्यापार करने में दी गई छूट को निवेश बढ़ाने के अवसर के रूप में भी देखा जा रहा है।
  • क़तर, मुस्लिम ब्रदरहुड और हमास का समर्थन करने के साथ-साथ इस्लामिक स्टेट पर अमेरिका के नेतृत्व वाले युद्ध का भी समर्थक रहा है और उसने सीरिया में बशर अल-असद के शासन से लड़ने वाले विद्रोहियों की सहायता भी की है।
  • इसके अतिरिक्त, लगभग 60 वर्षों की सदस्यता के बाद क़तर ने जनवरी 2019 में ‘ओपेक’ की सदस्यता त्याग दी थी। हालाँकि, क़तर द्वारा इस कदम को पूर्ण रूप से व्यापारिक निर्णय बताते हुए कहा गया था कि क़तर अब प्राकृतिक गैस के उत्पादन पर ज़्यादा ध्यान देगा। फिर भी, माना जाता है कि यह निर्णय सऊदी नेतृत्त्व वाले ओपेक को कमज़ोर करने का एक राजनीतिक प्रयास था।
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