New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM July Exclusive Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 14th July 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 14th July, 8:30 AM July Exclusive Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 14th July 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 14th July, 8:30 AM

नदियों के कानूनी अधिकार:कितने प्रासंगिक

(प्रारम्भिक परीक्षा;पर्यावरण पारिस्थितिकी, जैवविविधता और जलवायु परिवर्तन सम्बंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3;संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

लॉकडाउन के दौरान देश में प्रदूषण में लगातार कमी आ रही है साथ-साथ नदियों में भी साफ पानी बह रहा है। लेकिन आर्थिक गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए लॉकडाउन को अब चरणबद्ध तरीके से खोला जा रहा है तथा नदियों की स्थिति पहले जैसी न हो जाए इस पर भी चिंता व्यक्त की जा रही है!

वर्तमान स्थिति

  • कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन के चलते देश की नदियों के पानी की गुणवत्ता में अभूतपूर्व सुधार देखा गया है, जबकि इन्हीं स्थानों पर पहले नदियाँ झाग और गंदे पानी के कारण नाले के समान दिखाई पड़ती थीं लेकिन लॉकडाउन के दौरान जब आर्थिक गतिविधियाँ बंद हुईं, तो नदियाँ साफ-सुथरी और स्वस्थ नज़र आने लगीं।
  • आज़ादी के पश्चात नदियों की सफाई हेतु अरबों रुपए की योजनाओं के माध्यम से कई प्रयास करने के बाद भी संतोषजनक नतीजे हासिल नहीं हुए लेकिन लॉकडाउन के दौर में हुए इस बदलाव को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है।
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन.जी.टी.) ने भी नदियों की सेहत में आए सुधार को नोटिस किया है और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) को निर्देश दिया है कि वे गंगा और यमुना में प्रदूषक तत्वों की मात्रा का अध्ययन करें और नदियों में प्रदूषण के कारणों का पता भी लगाएँ। साथ ही लॉकडाउन खुलने पर आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के दोबारा शुरू होने पर नदियों को प्रदूषित होने से रोकने हेतु नियम कानूनों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिये।

भारत में नदियों कि कानूनी स्थिति

  • दुनिया के अलग-अलग हिस्सों, जैसे कोलम्बिया, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका आदि में भी ऐसे कानून बनाए गए थे। भारत में भी उत्तराखंड उच्चन्यायलय ने न्यूज़ीलैंड के कानून से प्रेरणा लेते हुए गंगा, यमुना तथा उनकी सहायक नदियाँ, ग्लेशियर, झरनों और नदियों के जल में योगदान देने वाले कैचमेंट एरिया को एक जीवित कानूनी व्यक्ति के तौर पर दर्जा दिया,ताकि इन नदियों का निरंतर प्रवाह सुनिश्चित किया जा सके।
  • उत्तराखंड उच्चन्यायलय ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा था कि नदियों को प्रदान किये जाने वाले अधिकार आम नागरिकों के मूल अधिकारों जैसे ही हैं! इस प्रकार नदियों के अधिकारों को चोट पहुँचाने का अर्थ किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाना ही माना जाएगा! हालाँकि उत्तराखंड सरकार के विरोध के चलते सर्वोच्च न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी उत्तराखंड सरकार के विरोध का पक्ष यह था कि कई राज्यों से प्रवाहित होने वाली नदी के संरक्षण और उसके कानूनी अधिकारों कि रक्षा कि ज़िम्मेदारी कोई एक सरकार कैसे उठा सकती है।

नदियों के कानूनी दर्जे का महत्त्व

  • अब तक नदियों के संरक्षण के विषय को केवल मानवीय हितों को ध्यान में रखते हुए तय किया जाता रहा है! नदियों को जीवित व्यक्ति का दर्जा दिए जाने के बहुत व्यापक और बहु आयामी नतीजे देखने को मिलेंगे जैसे कि, नदियों में पर्यावरण के अनुरूप पानी के बहाव को सुनिश्चित करना या बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड(BOD) की स्वीकार्य सीमा में बदलाव करना।
  • नदियों को कानूनी किरदार का दर्जा देने से उनका कानूनी संरक्षकों के माध्यम से सशक्ति करण हो सकेगा हमें पर्यावरण संरक्षण और इससे जुड़े दिशा-निर्देशों के केवल मानव केंद्रित दृष्टिकोण में बदलाव आने की सम्भावना है।

नदियों को जीवित व्यक्ति के दर्जे से उत्पन्न चुनौतियाँ

  • बेहद शानदार और अनंत सम्भावनाएँ होने के बावजूद, नदियों के संरक्षण में कानूनी आयाम जोड़ने की दिशा में आगे बढ़ने से पहले काफी सावधानी बरतने की आवश्यकता है! नदियों के अभिभावक बनने का विचार अस्पष्ट लगता है! गंगा और यमुना के संरक्षण की जिम्मेदारी नमामिगंगे परियोजना के कुछ नोडल अधिकारियों को दी गई थी! इस काम में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कानूनी समझ रखने वाले दो गैर प्रशासनिक व्यक्तियों को भी अभिभावक बनाया था! कानूनी संरक्षक का कार्य बेहद महत्त्वपूर्ण होता है। इसलिये किसी अनुचित व्यक्ति या संस्था को ये ज़िम्मेदारी सौंपने से मुख्य उद्देश्य के ही असफल होने की सम्भावना है नदियों को कानूनी अधिकार देने से परिणाम इसके विपरीत भी आ सकते हैं अगर कोई समुदाय या व्यक्ति या संस्था नदियों के संरक्षण की ज़िम्मेदारी से दिशा हीन होने लगे तो नदियों की सुरक्षा चुनौती न केवल बढ़ जाएगी बल्कि भविष्य के निति निर्माण हेतु भी काफी नुकसान दायक सिद्ध हो सकता है।
  • नदियों को पूरी तरह से इंसान की ज़िम्मेदारियों से मुक्त करके स्वतंत्र न्यायिक हस्ती के तौर पर स्थापित करना उचित नहीं होगा क्योंकि इससे नदियों की सुरक्षा की आढ़ में प्रशासन,व्यावसायिक इकाइयों और उद्यमों का उत्पीड़न और आर्थिक शोषण कर सकता है।

सुझाव

  • नदियों के अस्तित्त्व में इस नए आयाम को जोड़ने काअर्थ यह होगा कि हमें आबादी वाले स्थानों पर नदियों के अधिकारों कि व्याख्या करनी पड़ेगी तभी ऐसी नियामक व्यवस्थाएँ विकसित की जा सकेंगी, जिससे नदियों के हितों का मुख्य रूप से संरक्षण हो सके।
  • नदियों को प्रदूषित होने से रोकने के लिये केवल नियमों के पालन करने से काम नहीं चलेगा इतिहास हमें बताता है कि नियमों का पालन भी तभी होताहै, जब कुछ नियामक संस्थाएँ असरदार तरीके से कार्य करती हैं।
  • यह बात भले ही अजीब लगे, लेकिन हाल के वर्षों में नदियों को व्यक्ति का दर्जा देकर उन्हें कानूनी अधिकारों से लैस करने कि प्रक्रिया एक वैश्विक आंदोलन का हिस्सा बनती जा रही है, जिसके निकट भविष्य में सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।
  • पर्यवेक्षकों का यह भी मानना है कि नदियों के संरक्षण में इस नई पहल से नदियों और इंसानों के बीच संरचनात्मक सम्बंध विकसित होंगे इनसे नदियों का अबाध प्रवाह सुनिश्चित हो सकेगा तथा नदियों पर निर्भर जीव-जंतुओं का भी संरक्षण हो सकेगा।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR