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व्यापार के अधिक डिजिटलीकरण की आवश्यकता

(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास आदि से सम्बंधित विषय, सूचना प्रौद्योगिकी)

पृष्ठभूमि

अप्रैल 2020 में भारत के निर्यात में अप्रैल 2019 की अपेक्षा 60 % की गिरावट आई है। साथ ही, अप्रैल 2019 की तुलना में अप्रैल 2020 में जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह द्वारा संचालित बीस-फुट के समतुल्य इकाइयों (Twenty-Foot Equivalent Units-TEU) वाले कंटेनर में 37 % की गिरावट आई है। विश्व व्यापार में भारी गिरावट ने मानवीय गतिविधियों को कम करते हुए अधिक डिजिटलीकृत कारोबारी माहौल के महत्त्व को बढ़ा दिया है। जैसे-जैसे देश महामारी से बाहर निकलेंगे, नई माँग और आपूर्ति श्रृंखलाओं का विकास होगा क्योंकि देश मौजूदा व्यापार संरचनाओं को फिर से गढ़ने की कोशिश करेंगे। माँग व आपूर्ति की नई श्रृंखलाओं के विकासानुरूप व्यापार में तेज़ी से बदलाव और डिजिटलीकरण की ज़रूरत है। इसके लिये कुछ सुधारों की आवश्यकता है।

बीस-फुट समतुल्य इकाई (Twenty-Foot Equivalent Units-TEU)

I. टी.ई.यू. (TEU) तथा एफ़.ई.यू. (FEU) जैसे शब्द प्रायः कंटेनर sxजहाज़ों और कंटेनर टर्मिनलों की क्षमता का वर्णन करने के लिये प्रयोग की जाने वाली कार्गो क्षमता की इकाइयाँ हैं। टी.ई.यू. का आंतरिक आयाम प्रायः 20 फीट लम्बा, 8 फीट चौड़ा और 8 फीट ऊँचा होता है।

II. यह एक 20-फुट लम्बे (6.1 मीटर) इंटरमॉडल कंटेनर की मात्रा पर आधारित है, जो एक मानक आकार का डिब्बा है। इसे परिवहन के विभिन्न साधनों, जैसे- जहाज़ों, ट्रेनों और ट्रकों के बीच आसानी से स्थानांतरित किया जा सकता है।

अपग्रेडेशन, डिजिटलीकरण और स्वचालन (Upgradation, Digitisation, Automation) की आवश्यकता

  • वैश्विक स्तर पर, व्यापार की प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण के साथ-साथ न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप ऐसे दो प्रमुख आधार हैं, जो सीमाओं के आर-पार तीव्र व्यापार में सहायक होते हैं।
  • भारत ने अप्रैल 2016 में विश्व व्यापार संगठन (WTO) के व्यापार सुगमता समझौते (TFA- टी.एफ़.ए.) का अनुसमर्थन किया। जिसके बाद व्यापार सम्बंधी अधिकतर सुधार बुनियादी ढाँचे के उन्नयन, डिजिटलीकरण और स्वचालन पर केंद्रित हैं।
  • टी.एफ़.ए., व्यापार की सुगमता तथा सीमा शुल्क अनुपालन सम्बंधी मुद्दों पर सीमा शुल्क व अन्य उपयुक्त अधिकारियों के बीच प्रभावी सहयोग के लिये उपायों को निर्धारित करता है।

सरकार द्वारा की गई कुछ पहलें

  • डायरेक्ट पोर्ट एंट्री और डायरेक्ट पोर्ट डिलीवरी (Direct Port Entry and Direct Port Delivery) के साथ-साथ रेडियो आवृत्ति आधारित जाँच प्रणाली (RFID) तथा व्यापार सुगमता के लिये एकल खिड़की इंटरफ़ेस (SWIFT) जैसी सभी योजनाओं का उद्देश्य माल की निकासी के समय व लागत को कम करना है।
  • निर्यात के मामले में डायरेक्ट पोर्ट एंट्री माल के रिलीज़ में लगने वाले समय व लागत को कम करने के लिये सीमा शुल्क विभाग की एक योजना है जबकि RFID टैगिंग व ट्रेसिंग प्रक्रिया, निर्यातकों व आयातकों को माल ट्रैक करने में सक्षम बनाता है
  • उल्लेखनीय है कि पोर्ट कम्युनिटी सिस्टम (PCS) भारतीय पत्तन संघ द्वारा शुरू किया गया एक ई-कॉमर्स पोर्टल है, जिसका उद्देश्य समुद्री व्यापार से सम्बंधित सभी हितधारकों को एक मंच पर एकीकृत करना है।
  • इसके अतिरिक्त, ‘ई-संचित’ (e-SANCHIT) केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड द्वारा संचालित कागज़ रहित प्रसंस्करण करने व दस्तावेजों को अपलोड करने का एक ऑनलाइन मंच है। इसका पूरा नाम ‘अप्रत्यक्ष कर दस्तावेजों का कम्प्यूटरीकृत संचालन और ई-भंडारण’ है, जिसका उद्देश्य मानव हस्तक्षेप को न्यूनतम करना था।

इन पहलों का प्रभाव

  • इस प्रकार की पहलें सरकार द्वारा भारतीय सीमाओं पर प्रभावी लॉजिस्टिक्स तथा निर्यात-आयात (EXIM) की सुचारू प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करने की बात करते हैं। इन कारणों से भारत के व्यापार सुगमता सूचकांक (63वें) में निरंतर सुधार हुआ है। विशेषकर ‘सीमा पार व्यापार’ मानदंड में अधिक सुधार देखा गया है, जिसमें भारत वर्ष 2020 में 12 अंकों के सुधार के साथ 68 वें स्थान पर है।
  • वर्तमान संकट के दौरान माल की शीघ्र आवाजाही, रिलीज़ और निकासी में तेज़ी लाने के लिये सम्पूर्ण भारत के बंदरगाहों पर अधिक व्यापार सुगमता उपायों की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
  • यद्यपि सरकार द्वारा किये जा रहे विभिन्न प्रकार की पहलों ने पोर्ट इकोसिस्टम को सकारात्मक रूप से विकसित ही किया है फिर भी कुछ योजनागत, संस्थागत और प्रक्रियागत चुनौतियाँ हैं।

चुनौतियाँ और समस्याएँ

  • ‘कागज़ रहित व्यापार प्रणालियों’ को अपनाने में होने वाली देरी जैसे कुछ कारण डिजिटल प्लेटफॉर्म के प्रभावी कार्यान्वयन में आने वाली समस्याओं के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • ये समस्याएँ विशेषकर बंदरगाहों पर प्रक्रियाओं के मानकीकरण व समन्वय से सम्बंधित हैं। साथ ही, उपयोगकर्त्ताओं के बीच नई पहलों के बारे में जागरूकता की कमी और उसकी स्वीकार्यता से जुड़ी समस्याएँ भी हैं। यह अनुकूलन तथा विभिन्न प्रणालियों के बीच सम्पर्क की सहजता पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त, सूक्ष्म स्तर पर भी कई अन्य समस्याएँ है।
  • इसमें पहली समस्या, संस्थागत प्रणाली की कार्यक्षमता में कमी तथा तकनीकी गड़बड़ियों के परिणामस्वरूप सिस्टम के सीमित प्रयोग के साथ-साथ हार्ड कॉपी का समानांतर उपयोग होना हैं। उदाहरण के तौर पर, सीमा शुल्क और टर्मिनल सिस्टम में ‘शिपिंग लाइन डिलीवरी ऑर्डर’ के अभाव में कार्गो आवाजाही के लिये हार्ड कॉपी का उपयोग होता है
  • दूसरा मुद्दा, विभिन्न हितधारकों एवम् उनकी प्रणालियों के बीच कनेक्टिविटी तथा सूचनाओं व संदेशों के आदान-प्रदान में कमी के कारण कार्गो की निकासी में होने वाली देरी है।
  • तीसरी समस्या, उपयोगकर्ताओं के बीच प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण से सम्बंधित मुद्दे हैं, जो डिजिटल प्लेटफार्मों के इष्टतम उपयोग को सीमित कर देते हैं।
  • दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह, भारत में भी कस्टम ब्रोकर्स, शिपिंग लाइन (कार्गो को जहाजों से भेजने का व्यवसाय), माल भाड़ा, परिवहन ऑपरेटर, पोर्ट कस्टोडियन, कंटेनर फ्रेट स्टेशन और सीमा प्रबंधन प्राधिकरण सहित लॉजिस्टिक्स व व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र में बहु हितधारकों के संचालन को सीमित कर दिया गया है।

कस्टम ब्रोकर्स

कस्टम ब्रोकर्स को संशोधित क्योटो अभिसमय में एक ऐसे तीसरे पक्ष के रूप में परिभाषित किया गया है, जो किसी अन्य व्यक्ति की ओर से माल के आयात, निर्यात, आवाजाही या भंडारण के सम्बंध में सीमा शुल्क विभाग के साथ सीधे सौदा करता है।

उपाय

  • डिजिटलीकरण के सम्बंध में पिछले कुछ माह में सरकार द्वारा विभिन्न दिशा-निर्देश ज़ारी किये गए है, जो माल निकासी की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के साथ-साथ तेज़ करने के उपायों पर आधारित है। इन दिशा-निर्देशों का उद्देश स्वचालित, कागज़ रहित और ऑनलाइन कार्य प्रणाली को बढ़ावा दिया जाना है।
  • माल की आवाजाही, रिलीज़ और निकासी में तेज़ी लाने के लिये व्यापार सुगमता जैसे उपाय किये जाने की आवश्यकता है।
  • वर्तमान स्थिति व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र में डिजिटल बुनियादी ढ़ाँचे में वृद्धि की आवश्यकता को इंगित करती है। व्यापार की मात्रा में कमी आने तथा आर्थिक संकेतकों में गिरावट के साथ ही वर्तमान संकट नई प्रणालियों को विकसित करने और मौजूदा प्लेटफार्मों को बढ़ाने का एक अवसर प्रस्तुत करता है, क्योंकि इस समय जमीनी स्तर पर हितधारकों के दृष्टिकोण में बदलाव आ रहा है।
  • प्रणालियों का बेहतर एकीकरण तथा उनके बीच समन्वय किया जाना चाहिये ताकि रियल-टाइम आधारित सूचनाओं व संदेशों के आदान-प्रदान तथा इनपुट डाटा को साझा किया जा सके।
  • पोर्ट कम्युनिटी सिस्टम जैसे अन्य बहु-हितधारक एकल मंच के उपयोग को बढ़ावा देकर आयात-निर्यात प्रक्रियाओं को कारगर बनाया जा सकता है, जिससे डिजिटलीकरण और सम्वर्धित व्यापारिक वातावरण की ओर गतिशील हुआ जा सकें।
  • इसके अलावा, संकट से उबरने हेतु कुछ तात्कालिक कदमों की भी आवश्यकता है। साथ ही, एक स्थायी रोड मैप पर कार्य करने की आवश्यकता है जो ऊपर बताई गई कुछ चुनौतियों का समाधान करता हो।

आगे की राह

व्यापार की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए तकनीकी उन्नयन, डिजिटलीकरण और स्वचालन जैसी गतिविधियाँ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं। ये प्रयास भारत के व्यापारिक पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के साथ-साथ व्यापार सुगमता सूचकांक (50 से कम रैंकिंग) के लिये निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु महत्त्वपूर्ण होंगे। व्यापार सुगमता के बुनियादी ढाँचे को जितना अधिक डिजिटाइज़ किया जाएगा, भविष्य में होने वाले व्यवधानों को उतना ही कम किया जा सकता है।

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