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मॉरीशस का नया उच्चतम न्यायालय भवन

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2: विषय- भारत एवं इसके पड़ोसी- सम्बंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से सम्बंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

  • हाल ही में, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और मॉरीशस के प्रधानमंत्री श्री प्रविंद जगन्नाथ ने संयुक्त रूप से मॉरीशस के उच्चतम न्यायालय के नए भवन का विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये शुभारम्भ किया। इस दौरान मॉरीशस की न्यायिक व्यवस्था के वरिष्ठ सदस्य और दोनों देशों के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
  • ध्यातव्य है कि इस भवन का निर्माण भारतीय अनुदान की सहायता से किया गया है और यह मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुइस में भारत की सहायता से बनी पहली बुनियादी ढाँचा परियोजना है।

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मुख्य बिंदु:

  • भारत सरकार ने पाँच परियोजनाओं के लिये वर्ष 2016 में मॉरीशस को 353 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ‘विशेष आर्थिक पैकेज’ दिया था, जिसके अंतर्गत बनने वाली पहली परियोजना, यह उच्चतम न्यायालय है।
  • यह परियोजना तय समय सीमा के भीतर और अनुमान से कम लागत पर पूरी की गई है।
  • 10 मंज़िल वाली यह इमारत लगभग 4,700 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैली है और इसका निर्मित क्षेत्रफल (बिल्ट अप एरिया) 25,000 वर्ग मीटर है।
  • आधुनिक डिज़ाइन और हरित विशेषताओं वाली इस इमारत में तापीय और ध्वनि अवरोधन तथा उच्च ऊर्जा दक्षता पर ज़ोर दिया गया है।
  • नए भवन में मॉरीशस के उच्चतम न्यायालय की सभी शाखाएँ और कार्यालय आ जाएंगे, जिससे उसकी दक्षता में सुधार होगा।

पृष्ठभूमि:

  • प्रधानमंत्री मोदी और मॉरीशस के प्रधानमंत्री ने संयुक्त रूप से अक्टूबर, 2019 में मॉरीशस में मेट्रो एक्सप्रेस परियोजना के फेज़-1 और नई ई.एन.टी. अस्पताल परियजोना का शुभारम्भ किया था। इन्हें भी विशेष आर्थिक पैकेज के अंतर्गत बनाया गया है।
  • मेट्रो एक्सप्रेस परियोजना के फेज़-1 के अंतर्गत, बीते साल सितम्बर में मेट्रो लाइन के 12 किलोमीटर लम्बे हिस्से का निर्माण पूरा हो गया था, जबकि फेज़-2 के अंतर्गत मेट्रो लाइन के 14 किलोमीटर लम्बे हिस्से का निर्माण कार्य जारी है।
  • ई.एन.टी. परियोजना के माध्यम से भारत ने मॉरीशस में 100 बिस्तर वाले अत्याधुनिक अस्पताल के निर्माण में सहयोग दिया है।
  • भारत द्वारा सहायता से मॉरीशस में बन रही उच्च गुणवत्ता वाली बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं का सफल और समयबद्ध निर्माण पूरा होने से न सिर्फ मॉरीशस बल्कि उस क्षेत्र में भारतीय कम्पनियों के लिये भीव्यापक अवसर उत्पन्न होंगे।
    • नया उच्चतम न्यायालय भवन शहर के बीचों-बीच एक अहम स्मारक होगा और दोनों देशों के बीच मज़बूत द्विपक्षीय भागीदारी का प्रतीक रहेगा।

भारत-मॉरीशस सम्बंध:

  • दोनों देशों के बीच हमेशा से ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य, सामाजिक और सांस्कृतिक सम्बंध रहे हैं।
  • भारत और मॉरीशस के बीच वर्ष 1730 से ही सम्बंध रहे हैं, जबकि औपचारिक राजनयिक सम्बंध 1948 में स्थापित हुए। मॉरीशस वर्ष 1968 में एक स्वतंत्र देश बना।
  • भारत ने मॉरीशस को हमेशा से प्रवासी भारतीयों के चश्मे से देखा है। भारत का यह दृष्टिकोण अन्यथा नहीं है क्योंकि मॉरीशस की 68% से अधिक आबादी भारतीय मूल की है, जिन्हें आमतौर पर इंडो-मॉरीशस के रूप में जाना जाता है।
  • मॉरीशस भारत द्वारा मनाए जाने वाले प्रवासी भारतीय दिवस का प्रमुख भागीदार देश है। यह दिवस भारतीय प्रवासियों से जुड़े मुद्दों के लिये एक विशिष्ट मंच के रूप में कार्य करता है।

महत्त्व:

  • भू-रणनीतिक महत्त्व (Geo-Strategic Importance): भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र में मॉरीशस के रणनीतिक महत्त्व को नए सिरे देखना शुरू कर दिया है।
  • वर्ष2015 में, भारत ने भारत नियंत्रित आठ तटीय निगरानी रडार स्टेशनों की स्थापना के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
  • मॉरीशस, भारतीय नौसेना के राष्ट्रीय कमान नियंत्रित संचार खुफिया नेटवर्क (Indian Navy’s National Command Control Communication Intelligence network) के तटीय निगरानी रडार (Coastal Surveillance Radar -CSR) स्टेशन सहित भारत के सुरक्षा ग्रिड का हिस्सा है।
  • वर्ष 2015 में भारत ने सागर (SAGAR-Security and growth for all) नामक एक महत्त्वाकांक्षी नीति की शुरुआत की थी।यह हिंद महासागर क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों में भारत की पहली महत्त्वपूर्ण नीति थी।
  • सागर नीति के माध्यम से, भारत अपने समुद्री पड़ोसियों के साथ आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को गहरा करने और उन देशों की समुद्री सुरक्षा क्षमताओं के निर्माण में सहायता करना चाहता है।
  • वर्ष 2015 में, भारत और मॉरीशस ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जो भारत को मॉरीशस में सैन्य ठिकानों की स्थापना के लिये अनुमति देता है।
  • उपरोक्त समझौते में बहुत से महत्त्वपूर्ण बिंदु शामिल हैं, जैसे भारत के एंटी-पायरेसी अभियान के अलावा अवैध मछली पकड़ने, अवैध शिकार, ड्रग और मानव तस्करी में लिप्त व्यक्तियों/समूहों सहित सभी सम्भावित आर्थिक अपराधियों को रोकने के लिये विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) निगरानी हेतु भारत के प्रयास।

भू-आर्थिक महत्त्व (Geo-Economic Significance):

  • एक "केंद्रीय भौगोलिक बिंदु" के रूप में, मॉरीशस हिंद महासागर में वाणिज्य और संचार के लिये अत्यधिक महत्त्व रखता है।
  • अफ्रीकी संघ, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन और हिंद महासागर आयोग (Indian Ocean Commission) के सदस्य के रूप में मॉरीशस की भौगोलिक महत्ता बहुत बढ़ जाती है।
  • भारत मॉरीशस का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और वर्ष 2007 से हिंद महासागर स्थित इस द्वीपीय देश के लिये माल और सेवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक देश भी रहा है।
  • मॉरीशस, सिंगापुर के बाद भारत के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत देश है।
  • अफ्रीका से मॉरीशस में होने वाले नए निवेश के रूप में, मॉरीशस भारत की अफ्रीका तक आर्थिक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सबसे बड़ा केंद्र साबित हो सकता है।
  • भारत तकनीकी नवाचार के लिये एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में मॉरीशस के विकास में योगदान दे सकता है। इसलिये, भारत को उच्च शिक्षा सुविधाओं के लिये मॉरीशस की सहायता करनी चाहिये।
  • मॉरीशस क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये एक मूल्यवान क्षेत्र भी बन सकता है।
  • द्वीपीय नीति की धुरी के रूप में: भारत अभी तक दक्षिण पश्चिमी हिंद महासागर के वनीला द्वीपों (कोमोरोस, मेडागास्कर, मॉरीशस, मैयट, रीयूनियन और सेशेल्स) के साथ द्विपक्षीय स्तर पर बात चीत करता था।
  • यदि भारत इन द्वीपों से सामूहिक रूप से बात करना चाहे तो मॉरीशस को भारत की द्वीपीय नीति की धुरी बनाया जा सकता है।
  • यह दक्षिण पश्चिमी हिंद महासागर में कई भारतीय वाणिज्यिक गतिविधियों, जैसे पर्यटन, बैंकिंग गेटवे आदि के लिये सहयोग प्रदान कर सकता है।
  • चीन के साथ समीकरण के लिये महत्त्वपूर्ण: विदित है कि "स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स" नीति के तहतचीन ने हिंद महासागर में ग्वादर (पाकिस्तान), हंबनटोटा (श्रीलंका) तथा क्युकुपी (म्यांमार) तक अपने महत्त्वपूर्ण सम्बंध स्थापित किये हैं।
  • इसलिये, भारत को अपनी समुद्री क्षमताओं को मज़बूत करने की नीति के रूप में मॉरीशस, मालदीव, श्रीलंका और सेशेल्स जैसे हिंद महासागर के देशों की मदद करनी चाहिये और उनसे बेहतर सम्बंध स्थापित करने पर ज़ोर देना चाहिये।

चुनौतियाँ:

  • यह वैश्विक अवधारणा पूर्णतः गलत है कि मॉरीशस भारत का विस्तार मात्र है। मॉरीशस एक सम्प्रभु देश है जिसकी हिंद महासागर में विशेष द्वीपीय स्थिति की वजह से तथा एक सम्पन्न आर्थिक केंद्र और रणनीतिक क्षेत्र होने की वजह से अपनी खुद की एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान है।
  • चीन की नीतियाँ: हिंद महासागर के उत्तरी भाग में चीन की तेज़ी से बढ़ती उपस्थिति के साथ-साथ क्षेत्र में चीनी पनडुब्बियों और जहाज़ों की तैनाती भारत के लिये एक बड़ी चुनौती है।
  • भारत पर अक्सर अपने अपेक्षाकृत छोटे पड़ोसियों के साथ सम्बंधों में आत्म-केंद्रित होने का आरोप लगता रहा है। भारत को अपनी यह छवि बदलने की ज़रुरत है।
  • जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और नीली अर्थव्यवस्था जैसे कुछ मुद्दों पर भारत को मॉरीशस के प्रति अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना चाहिये।
  • मॉरीशस एक द्वीपीय देश होने के कारण, दुनिया के बाकी हिस्सों से भौतिक रूप से कटा हुआ है, इसके बावजूद यदि विश्व में कुछ भी बड़ा घटनाक्रम घटित होता है तो अक्सर देखा गया है कि मॉरीशस पर उसका प्रभाव पड़ता है, जैसे वैश्विक आर्थिक संकट, एफ.डी.आई. में गिरावट, ट्रेड-वार आदि।
  • इसलिये, भारत को इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा के अलावा अपने अन्य दृष्टिकोणों को भी व्यापक बनाने की आवश्यकता है।
  • जैसे-जैसे हिंद महासागर क्षेत्र में शक्ति का संतुलन बदल रहा है, विश्व के विभिन्न देशों ने मॉरीशस को अपने नए सुरक्षा सर्किट के अभिन्न अंग के रूप में देखना शुरू कर दिया है।
  • चीन की बढ़ती मौजूदगी और छोटे देशों का लाभ उठाने के लिये अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और यू.के. जैसे देशों की कोशिश भारत के लिये चिंता का विषय है।

आगे की राह:

  • मॉरीशस में पंजीकृत कम्पनियाँ भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत हैं, जिस वजह से भारत के लिये मॉरीशस से अपनी द्विपक्षीय कर संधि को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण हो गया है, विशेषकर उन अंतर्राष्ट्रीय नियमों को लागू करना, जिनके द्वारा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा लाभ को कृत्रिम रूप से कम कर वाले देशों में स्थानांतरित करने से रोका जा सकता है।
  • जैसा कि भारत दक्षिण पश्चिमी हिंद महासागर में अपने सुरक्षा सहयोग का एक एकीकृत दृष्टिकोण रखता है, मॉरीशस इसके लिये प्राकृतिक विकल्प है। इसलिये, भारत को अपनी पड़ोसी प्रथम नीति (Neighborhood First Policy) में सापेक्षिक सुधार करने होंगें।

(स्रोत: पी.आई.बी.)

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