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फारस की खाड़ी : क्षेत्र में शांति और रणनीतिक महत्त्व

(प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 : विषय–महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ व मंच- उनकी संरचना एवं अधिदेश भारत के हितों पर विकसित तथा विकास शील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

  • फारस की खाड़ी क्षेत्र में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के प्रमुख उत्पादकों की उपस्थिति होने की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
  • अतः भौगोलिक रूप से अति महत्त्वपूर्ण इसक्षेत्र को राजनीतिक और आर्थिक रूप से स्थिर रखने के लिये यहाँ क्षेत्रीय देशों और अन्य आर्थिक शक्तियों द्वारा शांति बनाए रखे जाने का प्रयास करना सामरिक रूप से बहुत आवश्यक है।

फारस की खाड़ी का क्षेत्र :

  • फारस की खाड़ी को आठ देश, बहरीन, ईरान, इराक, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, साझा करते हैं।
  • ये सभी देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य हैं।
  • संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.), बहरीन, सऊदी अरब, ओमान, कतर एवं कुवैत खाड़ी सहयोग परिषद (जी.सी.सी.) के सदस्य देश हैं।
  • ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) और सऊदी अरब ओपेक के सदस्य हैं।
  • कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के प्रमुख उत्पादक होने के कारण, इन देशों के आपसी हितों में काफी समानता है।
  • हितों की इस समानता ने न सिर्फ इन देशों को समृद्ध किया है बल्कि उनके बीच आर्थिक-राजनीतिक उलझनों को भी जन्म दिया है।

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पृष्ठभूमि :

  • ब्रिटिश युग:
    • 1970 से पहले लगभग आठ दशकों तक, फारस की खाड़ी को एक 'ब्रिटिश झील' के रूप में जाना जाता था और अंग्रेजों द्वारा इसे संरक्षित किया जाता था।
    • ब्रिटिश युग के अंत के बाद, क्षेत्रीय स्तर पर प्रभुत्त्वशाली देशों में अंतर-क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता की शुरुआत हुई और कई बार देशों पर ज़बरदस्ती सहयोग करने के लिये भी दबाव डाला गया।
  • क्षेत्र में राजनीतिक तनाव:
    • मस्कट सम्मेलन (1975), ईरान की क्रांति (1979) और इराक-ईरान युद्ध (1980) जैसी घटनाओं ने इस क्षेत्र में राजनीतिक तनाव को औरबढ़ा दिया। इसके बाद क्षेत्र में अमेरिका के हित साधन की नीतियों और दमन कारी भूमिका ने भी क्षेत्र में तनाव और वैश्विक दबाव को और ज़्यादा बढ़ाया।
    • मस्कट सम्मलेन (1975) का उद्देश्य क्षेत्र में सेनाओं के एकीकृत सहयोग को विकसित करना था ताकि खाड़ी के देशों में सुरक्षा को बढ़ाया जा सके और इस क्षेत्र के सभी देशों को फारस की खाड़ी में दबाव मुक्त व्यापार-परिचालन और आवागमन को आश्वस्त किया जा सके।
    • बाद में,ईरान और इराक के बीच विशिष्ट युद्ध विराम सुनिश्चित करने और क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ाने के उपायों को सुनिश्चित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव संख्या 598 (1987) को लागू किया गया था।

वर्तमान परिदृश्य :

  • क्षेत्र में बढ़ते संघर्ष:
    • हाल ही में, पश्चिम एशियाई क्षेत्र- यमन, सीरिया, लीबिया में भू-राजनीतिक कारकों और संघर्षों कीवजह से वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर सम्बंधों में बहुत ज़्यादा बदलाव और तनाव देखा जा सकता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका की घटती भूमिका:
    • उपर्युक्त संघर्षों के आलावा अमेरिका-ईरान विवाद ने भी इस क्षेत्र को तनाव में ही रखा है और इस वजह से ईरानी नाभिकीय कार्यक्रम पर लगी रोक का साक्षी पूरा विश्व हुआ।
    • ईरान के साथ राजनीतिक और वैचारिक असहमति के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका के इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिये प्रतिबद्धता में गिरावट का मुद्दा खाड़ी सहयोग परिषद् के सदस्यों के द्वारा अक्सर उठाया जाता रहा है।
  • जी.सी.सी. के भीतर उभरते विभाजन:
    • परस्पर विरोधी सामरिक और रणनीतिक हितों और व्यक्तिपरक विचारों के हालिया उभार ने जी.सी.सी. के सदस्यों के बीच एक प्रकार का विभाजन उत्पन्न कर दिया है।
    • जी.सी.सीमें निम्नलिखित कारणों की वजह से विभाजन और बढ़ता जा रहा है:
    • वैश्विक आर्थिक संकट
    • क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर कोविड-19 का तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभाव
    • ओपेक में चल रहा आंतरिक गतिरोध
    • तेल की कीमतों में वर्तमान गिरावट

क्षेत्र में स्थिरता के लिये सम्भावित फ्रेमवर्क :

  • क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा:
    • क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा के लिये किसी भी सम्भावित ढाँचे को न केवल क्षेत्रीय शर्तों पर, बल्कि वैश्विक शर्तों पर भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
    • क्योंकि सिर्फ खाड़ी देशों के बीच ही खाड़ी क्षेत्र की सुरक्षा मुद्दा नहीं हैबल्कि इस क्षेत्र से बाहर भी यह मुख्य मुद्दा है और लगभग सभी देशों की निगाहें इस क्षेत्र पर लगी रहती हैं।
  • अन्य पहलू:
    • इसके अतिरिक्त, ढाँचे में निम्नलिखित शर्तों को भी सुनिश्चित करना होगा:
    • सभी देशों में स्थानीयस्तर पर शांति और स्थिरता।
    • खाड़ी के सभी देशों को उनके हाइड्रोकार्बन और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का दोहन ​​करने की स्वतंत्रता।
    • फारस की खाड़ी के पानी में होर्मुज़ जलडमरूमध्य द्वाराअंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक आवागमन की स्वतंत्रता।
    • हर उस संघर्ष को रोकने पर ज़ोर देना जो व्यापार की स्वतंत्रता पर प्रभाव डाल सकता है।

खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council-GCC) :

  • यह अरब प्रायद्वीप में स्थित छह देशों का एक विशेष राजनीतिक एवं आर्थिक गठबंधन है, जिसमें बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं और जिसकी स्थापना वर्ष 1981 में हुई थी।
  • यह सदस्य देशों के बीच आर्थिक, सुरक्षा, सांस्कृतिक और सामाजिक सहयोग को बढ़ावा देने के किये प्रयासरत है, इसका मुख्यालय सऊदी अरब की राजधानी रियाद में स्थित है एवं इसकी कार्यकारी भाषा अरबी है।

फारस की खाड़ी क्षेत्र के साथ भारत का सम्बंध :

  • भारत और जी.सी.सी:
    • जी.सी.सी. के साथ भारत के आर्थिक और राजनीतिक सम्बंध हाल के वर्षों में सुदृढ़ हुए हैं। ऐसा देखा गया है कि वर्तमान में जी.सी.सी. सदस्य देशों की सरकारें भारत और भारतीयों के अनुकूल हैं।
    • यह मैत्रीपूर्ण सम्बंध लगभग 121 बिलियन डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार और 90 लाख से अधिक लोगों के कार्यबल द्वारा रेमिटेंस के रूप में 49 बिलियन डॉलर के भारत भेजे जाने से स्पष्ट रूप से परि लक्षित होता है।
    • भारत के कच्चे तेल के आयात में जी.सी.सी. आपूर्ति कर्ताओं की हिस्सेदारी लगभग 34% है।
  • भारत और ईरान:
    • भारत ने हमेशा ईरान के साथ मैत्री पूर्ण सम्बंध साझा किए हैं। लेकिन भारत-ईरान सम्बंध संयुक्त राज्य अमेरिका के दबाव की वजह से इस समय सबसे जटिल दौर से गुज़र रहे हैं।
    • मई 2018 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने इर्रानी परमाणु समझौते को रद्द करके ईरान पर आर्थिक प्रतिबंधों को वापस से बहाल कर दिया था।
  • क्षेत्र में भारत की समग्र भूमिका:
    • भारत इस क्षेत्र में स्थानीय या क्षेत्रीय विवादों में शामिल होने से अधिकतर बचता आया है।
    • इस क्षेत्र में शांति और क्षेत्रीय स्थिरता भारतीय हितों के लिये अति आवश्यकहै।

आगे की राह :

  • यह देखा जा रहा है किखाड़ी क्षेत्र में सऊदी अरब की शक्ति कम होती जा रही है जबकि संयुक्त अरब अमीरात, कतर और ईरान नए क्षेत्रीय नेतृत्त्व कर्ताओं के रूप में उभर रहे हैं।
  • ओमान और इराक को अपनी सम्प्रभु पहचान बनाए रखने के लिये अभी काफी संघर्ष करना होगा।
  • भारत को खाड़ी क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा नीति का समर्थन करना चाहिये इस क्षेत्र में शांति व स्थायित्व भारत के लिये लघु एवं दीर्घकालिक दोनों अवधियों के लिये लाभकारी साबित होगा।
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