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विद्यालयों को पुनः खोलने की प्राथमिकता

संदर्भ

मार्च 2020 में, ‘देशव्यापी लॉकडाउन’ प्रारंभ होने के पश्चात् भारत में समस्त विद्यालय बंद कर दिये गए थे। इस दौरान विद्यार्थियों ने लंबे समय से विद्यालय बंद रहने की समस्या का सामना किया है। अब पुनः विद्यालयों को खोलने की दिशा में समुचित निर्णय लेने की आवश्यकता है।

अन्य देशों में विद्यालय

  • दिलचस्प बात यह है कि दुनिया भर के विभिन्न देशों ने, जो भारत की तुलना में कोरोनावायरस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, अपने विद्यालय, विशेष रूप से ‘प्राथमिक विद्यालय’ खुले रखे हैं। इन देशों में पुर्तगाल, फ्रांस, नीदरलैंड जैसे विभिन्न यूरोपीय देश शामिल हैं।
  • फ्लोरिडा (संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रांत) ने सितंबर 2020 के अंत में व्यक्तिगत कक्षाओं के लिये विद्यालय खोले और दूसरी लहर के दौरान भी विद्यालयों को खुला रखा।
  • वहीं दूसरी ओर, भारत में विद्यालय ज़्यादातर बंद रहे हैं, जबकि अन्य व्यवसायों को खुलने की अनुमति प्रदान कर दी गई है।

विद्यालय बंद रखने के प्रभाव

  • विद्यालयों को बंद करने की लागत बहुत अधिक है। बेहतर भविष्य और बेहतर जीवन स्तर की आशा में लोग अपने बच्चों की शिक्षा में काफी निवेश करते हैं।
  • महामारी से पहले भी छात्रों के मध्य, विशेष रूप से उच्च ग्रेड में बहुत अधिक अंतर था। 10वीं पास करने वाले नीचे से आधे बच्चे कौशल के मामले में करीब दो साल पीछे हैं; लंबे समय तक विद्यालयों को बंद रख़ने से यह अंतर पहले ही बढ़ गया है।
  • विद्यालयों के बंद होने का प्रभाव दो प्रश्नों को उजागर करता है; पहला, बच्चों के भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा? दूसरा, क्या यह अगली पीढ़ी को ग़रीबी को ओर नहीं धकेलता है?
  • विडंबना यह है कि सघन शहरी झुग्गियों में रहने वाले सबसे गरीब परिवार, जो पहली लहर का खामियाजा भुगत रहे थे और अब वे स्वयं वायरस से काफी हद तक प्रतिरक्षित हैं (जैसा कि सीरो सर्वे द्वारा दिखाया गया है) विद्यालय बंद होने से सर्वाधिक प्रभावित हो रहे हैं।
  • नवंबर 2020 में, भारत के 10 राज्यों में हुए एक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया कि ग्रामीण भारत में लगभग दो-तिहाई बच्चे विद्यालय छोड़ सकते हैं।
  • साथ ही, एक चौंका देने वाला आँकड़ा यह है कि विद्यालयों के लगातार बंद रहने से शिक्षा क्षेत्र की स्थिति के और अधिक खराब होने की संभावना है।
  • हरियाणा ने निजी विद्यालयों में छात्रों के नामांकन में 42% की गिरावट दर्ज की है।
  • लंबे समय से बंद विद्यालयों ने ‘बाल श्रम और बाल विवाह’ जैसी कुरीतियों के विरुद्ध भारत की लड़ाई को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
  • स्कूलों के बंद होने से मध्याह्न भोजन की योजनाएँ बाधित हुई हैं। जून 2020 की शुरुआत में ही यह अनुमान लगाया गया था कि लगभग 8,00,000 अतिरिक्त बच्चे कम वज़न और निर्बलता का सामना करेगें।

स्वास्थ्य एवं भलाई की चिंता

  • संपन्न शहरी भारत और विकसित देशों में भी विद्यालय बंद होने के विस्तार से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
  • लॉस वेगास में छात्र आत्महत्याओं की वृद्धि ने स्कूलों को जनवरी 2021 में फिर से खोलने के लिये मज़बूर किया।
  • यूनाइटेड किंगडम ने एंटीडिपेंटेंट्स लेने वाले बच्चों की संख्या में 40% की वृद्धि दर्ज की।
  • निश्चय ही जीवन शिक्षा से अधिक महत्त्वपूर्ण है। किंतु, जैसा कि ऊपर दिये गए उदाहरण बताते हैं कि विद्यालय केवल शिक्षा को प्रदान नहीं कर करते हैं।
  • लंबे समय तक विद्यालय बंद रहने की लागत को देखते हुए हमें कोविड-19 के संदर्भ में विद्यालय खोलने के जोखिमों की गहराई से जाँच करनी चाहिये।

जोख़िम कारकों का आकलन

  • सबसे पहले हमें सुख का अनुभव करना चाहिये कि बच्चों के लिये कोविड-19 का जोखिम वयस्कों की तुलना में बहुत कम है और अन्य (पहले से ही छोटे) जोखिमों की तुलना में बहुत कम है, जो बच्चों को दैनिक जीवन में वैसे भी सामना करना पड़ता है।
  • अमेरिका और यूरोप में 137 मिलियन स्कूली बच्चों के अध्ययन के आधार पर एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने देखा है कि इस आयु वर्ग में कोविड-19 मौसमी इन्फ्लूएंज़ा के रूप में आधे से भी कम जोखिम भरा है और ‘अनजाने में लगी चोट’ से मृत्यु की तुलना में 20 गुना कम जोखिम भरा है।
  • स्वीडन में (जहाँ स्कूल खुले हुए हैं) लगभग दो मिलियन बच्चों के मध्य एक अध्ययन में पाया गया कि कोविड-19 के कारण एक भी बच्चे की मृत्यु नहीं हुई।
  • मुंबई के डैशबोर्ड डेटा के अनुसार, अंडर-19 के लिये कोविड-19 संक्रमण मृत्यु दर (आई.एफ.आर.) बहुत कम है, लगभग 0.003%। इसकी तुलना में, भारत में शिशु मृत्यु दर (आई.एम.आर.) लगभग 3% (1,000 गुना अधिक) है और जापान में शिशु मृत्यु दर (सबसे कम में से एक) 0.18% (60 गुना अधिक) है।
  • दूसरे शब्दों में, स्कूली उम्र के बच्चों को अन्य खतरों की तुलना में कोविड-19 से नगण्य रूप से कम जोखिम होता है, जिन्हें हम सामान्य मानते हैं।
  • इस बात की चिंता की जा रही है कि नए रूपों को शामिल करने वाली संभावित तीसरी लहर बच्चों को प्रभावित कर सकती है। लेकिन, आँकड़ों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि पहली और दूसरी लहरों में प्रभावित लोगों की आयु-प्रोफ़ाइल समान है।
  • इसके अलावा, ‘पब्लिक हेल्थ’ इंग्लैंड की जून 2021 की रिपोर्ट से पता चलता है कि नया संस्करण डेल्टा मूल (केस घातक दर 1.9%) की तुलना में बहुत कम खतरनाक (केस घातक दर 0.1%) है, जो एक वायरस का अपेक्षित विकास पथ है।

शिक्षक को आवश्यक कर्मचारी के रूप में मानना

  • सवाल यह है कि अगर स्कूल फिर से खुलते हैं तो क्या शिक्षकों और अभिभावकों को कोविड-19 से संक्रमित होने का अधिक खतरा है?
  • पिछले एक साल में यूरोप/यू.एस. के विभिन्न क्षेत्रों में कई सावधानीपूर्वक वैज्ञानिक अध्ययन हुए हैं, जो कोविड-19 प्रसार में व्यक्तिगत कक्षाओं की भूमिका को मापते हैं।
  • निष्कर्ष यह है कि अन्य स्थानों की तुलना में विद्यालयों में कोविड-19 फैलने का जोखिम न्यूनतम है।
  • शिक्षकों के बीच चिंता को और कम करने के लिये सरकार को उनके साथ ‘आवश्यक कर्मचारियों’ के समान व्यवहार करना चाहिये, और उन्हें प्राथमिकता वाले टीकाकरण की पेशकश करनी चाहिये।
  • इसके बावजूद, यह संभावना है कि ‘एक-आकार-सभी में फिट-बैठता है’ दृष्टिकोण उपयुक्त नहीं हो सकता है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का जोखिम-लाभ विश्लेषण अलग हो सकता है।
  • जिन बच्चों के पास संसाधनों की कमी है, जिनके माता-पिता को हर दिन काम पर जाना पड़ता है, उनके लिये व्यक्तिगत रूप से स्कूली शिक्षा सर्वोपरि है।
  • जो माता-पिता घर से काम कर सकते हैं, उनके पास अपने बच्चों के लिये पर्याप्त संसाधन हैं और वे कुछ और महीनों के लिये आंशिक या पूरी तरह से ऑनलाइन कक्षाओं को जारी रखने का विकल्प चुन सकते हैं। इस तरह के विभेदित विकल्पों को लागू करने का समय आ गया है।

बच्चों के लिये टीकाकरण

  • हाल ही में, विद्यालयों को पुनः बच्चों के लिये टीके से बाध्य करने की बात सामने आई है। कोई भी चिकित्सीय हस्तक्षेप, विशेष रूप से बच्चों के लिये, सावधानीपूर्वक जोखिम-लाभ विश्लेषण पर आधारित होना चाहिये।
  • यह ध्यान रखना उचित है कि अमेरिका में किशोरों में हृदय की सूज़न और एम.आर.एन.ए. वैक्सीन के बीच एक संभावित लिंक के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं।

निष्कर्ष

इतने लंबे समय तक विद्यालयों बंद रखकर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है और ना ही उन्हें पीड़ित होने दे सकते हैं। वायरस से ज़्यादा भय बच्चों, उनकी शिक्षा और सामान्य जीवन के मध्य है। नीति निर्माताओं को विद्यालयों को पुनः खोलने की दिशा में साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने की आवश्यकता है।

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