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नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का सतत् प्रसंस्करण : एक नई राह

भूमिका

लगातार बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण की तीव्र गति के कारण देश को अपशिष्ट प्रबंधन सम्बंधी एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उचित वैज्ञानिक उपचार के आभाव में वर्तमान दर पर कचरे के अंधाधुंध डम्पिंग से प्रति वर्ष अत्यधिक मात्रा में लैंडफिल क्षेत्र में वृद्धि होगी। यह आज के संदर्भ में वैज्ञानिक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के महत्त्व को दर्शाता है।

नगरपालिका ठोस अपशिष्ट की स्थिति

  • अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में उत्पन्न होने वाले नगरपालिका ठोस अपशिष्ट में ज्यादातर हिस्सा कार्बनिक कचरे का होता है।
  • कचरे की मात्रा वर्ष 2030 तक वर्तमान 62 मिलियन टन से बढ़कर लगभग 150 मिलियन टन होने का अनुमान है।
  • जैविक कचरे के अवैज्ञानिक निपटान से ग्रीनहाउस गैस (जी.एच.जी.) के उत्सर्जन के साथ-साथ हवा के अन्य प्रदूषक भी उत्पन्न होते हैं।
  • नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (Municipal Solid Waste : MSW) का अप्रभावी प्रसंस्करण भी कई बीमारियों का मूल कारण है क्योंकि डम्प किये गए लैंडफिल से रोगाणु का प्रसार होता है।

नई तकनीक का विकास

  • सी.एस.आई.आर-सी.एम.ई.आर.आई. (CSIR-CMERI)द्वारा विकसित नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) प्रसंस्करण सुविधा से न केवल ठोस कचरे के विकेंद्रीकृत अपघटन में सहायता मिलती है, बल्कि सूखी पत्तियों व सूखी घास जैसे बहुतायत में उपलब्ध जैविक पदार्थों से मूल्य वर्धित उत्पादों (Value-Added End-Products) को भी बनाने में मदद मिलती है।
  • केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा निर्धारित ‘ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016’ के बाद वैज्ञानिक तरीके से ठोस कचरे के निपटान हेतु एम.एस.डब्ल्यू. प्रसंस्करण सुविधा विकसित की गई है।
  • इसमें शामिल यंत्रीकृत पृथक्करण प्रणाली (Mechanized Segregation System) ठोस अपशिष्टों को धातु अपशिष्ट (मेटल बॉडी, मेटल कंटेनर आदि), बायो-डिग्रेडेबल अपशिष्ट (खाद्य पदार्थ, सब्जियां, फल, घास इत्यादि), नॉन-बायो-डिग्रेडेबल अपशिष्ट (प्लास्टिक, पैकेजिंग समग्री, पाउच, बोतल आदि) और अक्रिय अपशिष्टों (कांच, पत्थर आदि) में अलग करता है।
  • कचरे के जैव-अपघटनीय घटक को अवायवीय वातावरण में विघटित किया जाता है, जिसे सामान्यत: ‘जैव-गैसीकरण’ कहा जाता है। इस प्रक्रिया में जैविक पदार्थों के रूपांतरण से बायोगैस मुक्त होती है।

बायोमास अपशिष्ट निपटान

  • बायोमास अपशिष्ट, जैसे- सूखी पत्तियाँ, मृत शाखाएँ, सूखी घास आदि को उपयुक्त आकार में बदलने के बाद बायोगैस डाइजेस्टर घोल के साथ मिश्रण करके इनका निपटान किया जाता है।
  • यह मिश्रण ब्रिकेट (Briquette) के लिये फीडस्टॉक है, जिसे खाना पकाने के लिये ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। ब्रिकेट का उपयोग सिनगैस के उत्पादन के लिये गैसीफायर में भी किया जा रहा है।

पॉलिमर अपशिष्ट निपटान

  • पॉलिमर कचरे में प्लास्टिक और सैनिटरी कचरे आदि शामिल होते हैं। इनका निपटान दो मुख्य प्रक्रियाओं- पायरोलिसिस और प्लाज़्मा गैसीकरण के माध्यम से किया जाता है।

पायरोलिसिस प्रक्रिया

  • पाइरोलिसिस प्रक्रिया में उपयुक्त उत्प्रेरक की उपस्थिति में पॉलिमर कचरे को अवायवीय वातावरण में 400-600 °C के तापमान पर गर्म किया जाता है।
  • हीटिंग के परिणामस्वरूप पॉलिमर अपशिष्ट से वाष्पशील पदार्थ निकलता है, जो संघनित होने पर पायरोलिसिस तेल देता है।
  • शुद्धिकरण के बाद गैर-संघनित सिनगैस और ‘क्रूड पायरोलिसिस ऑइल’ का उपयोग हीटिंग उद्देश्यों के लिये पुनः किया जाता है। साथ ही, इस प्रक्रिया में बचे ठोस अवशेषों को ‘चार’ (Char) कहा जाता है। इसको ईंट (Briquette) के उत्पादन के लिये बायोगैस घोल के साथ मिश्रित किया जाता है।

प्लाज़्मा आर्क गैसीकरण प्रक्रिया

  • प्लाज़्मा आर्क गैसीकरण प्रक्रिया (Plasma Arc Gasification Process) का उपयोग ठोस अपशिष्टों के उपचार व निपटान का एक पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन विकल्प है। इसके द्वारा बड़ी मात्रा में अपशिष्ट में कमी सम्भव है।
  •  यह प्रक्रिया प्लाज़्मा रिएक्टर के अंदर उच्च तापमान प्लाज़्मा आर्क (3000°C से ऊपर) उत्पन्न करने के लिये विद्युत का उपयोग करती है, जो कचरे को सिनगैस (Syngas) में परिवर्तित कर देती है।
  • उत्पादित सिनगैस गैस शोधन प्रणाली की एक लम्बी शृंखला से गुजरती है, जिसमें उत्प्रेरक परिवर्तक, रेडॉक्स रिएक्टर, चक्रवात विभाजक, स्क्रबर और कंडेनसर शामिल है। इसके पश्चात् यह बिजली उत्पादन हेतु गैस इंजन में उपयोग के लिये तैयार होता है।
  • हालाँकि, यह तकनीक आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है क्योंकि अपशिष्ट उपचार के लिये इसमें ऊर्जा की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। इसके अलावा, इलेक्ट्रोड खपत की उच्च दर इसको और अधिक खर्चीला बना देती है।

सिनगैस (Syngas) :

‘सिनगैस या संश्लेषित गैस’ (Synthesis Gas) एक गैस मिश्रण है, जिसमें मुख्य रूप से हाइड्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड और कुछ कार्बन डाइऑक्साइड होती हैं। संश्लेषित प्राकृतिक गैस (एस.एन.जी.)बनाने और अमोनिया या मेथनॉल के उत्पादन में मध्यवर्ती के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।

सेनेटरी अपशिष्ट निपटान

  • सैनिटरी आइटम में मास्क, सैनिटरी नैपकिन, डायपर आदि शामिल होते हैं। इनको उच्च तापमान प्लाज़्मा का उपयोग करते निस्तारित किया जाता हैं।
  • यू.वी.- सी. लाइट्स (UV-C Lights) और हॉट-एयर कन्वेंशन विधियों के माध्यम से रोगाणु-शृंखला को तोड़ने में मदद करने के लिये MSW सुविधा विशेष कीटाणुशोधन क्षमताओं से युक्त है।

उपयोग

  • बायोगैस का उपयोग खाना पकाने और बिजली उत्पादन के लिये गैस इंजन में ईंधन के रूप में किया जा सकता है।
  • साथ ही, अवशिष्ट राख को ईंटों के निर्माण हेतु सीमेंट के साथ मिश्रित किया जा सकता है।
  • बायोगैस संयंत्र से शेष बचे अवशिष्ट पंक को एक प्राकृतिक प्रक्रिया के द्वारा खाद के रूप में परिवर्तित किया जाता है, जिसे वर्मी-कम्पोस्टिंग के रूप में जाना जाता है। इस वर्मी-कम्पोस्ट का उपयोग जैविक खेती में किया जाता है।
  • विकेंद्रीकृत एम.एस.डब्ल्यू. और इसके सतत् प्रसंस्करण की तकनीक 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा पैदा करने के सपने को साकार करने के अवसरों को खोलता है।
  • साथ ही पर्यावरणीय रूप से ‘ज़ीरो-वेस्ट’ और ‘ज़ीरो-लैंडफिल इकोलॉजी’ वाले शहरों के विकास के साथ-साथ प्रसंस्करण व विनिर्माण दोनों के माध्यम से ‘नौकरी का सृजन’ किया जा सकता है। यह देश में सामग्री विज्ञान और इंजीनियरिंग (MSE), स्टार्ट-अप और कई छोटे उद्यमियों के लिये लाभदायक हो सकता है।

प्री फैक्ट :

  • भारत में उत्पन्न होने वाले नगरपालिका ठोस अपशिष्ट में ज्यादातर हिस्सा कार्बनिक कचरे का होता है।
  • जैविक कचरे के अवैज्ञानिक निपटान से ग्रीनहाउस गैस (जी.एच.जी.) के उत्सर्जन के साथ-साथ हवा के अन्य प्रदूषक भी उत्पन्न होते हैं।
  • ‘ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016’ वैज्ञानिक तरीके से ठोस कचरे के निपटान से सम्बंधित है।
  • ठोस अपशिष्टों को धातु अपशिष्ट (मेटल बॉडी, मेटल कंटेनर आदि), बायो-डिग्रेडेबल अपशिष्ट (खाद्य पदार्थ, सब्जियां, फल, घास इत्यादि), नॉन-बायो-डिग्रेडेबल अपशिष्ट (प्लास्टिक, पैकेजिंग समग्री, पाउच, बोतल आदि) और अक्रिय अपशिष्टों (कांच, पत्थर आदि) में पृथक किया जाता है।
  • कचरे के जैव-अपघटनीय घटक को अवायवीय वातावरण में विघटित किया जाता है, जिसे सामान्यत: ‘जैव-गैसीकरण’ कहा जाता है।
  • पॉलिमर कचरे में प्लास्टिक और सैनिटरी कचरे आदि शामिल होते हैं, जिनका निपटान ‘पायरोलिसिस’ और ‘प्लाज़्मा गैसीकरण’ प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जाता है।
  • एम.एस.डब्लू. के प्रसंस्करण से प्राप्त गैर-संघनित ‘सिनगैस’ और ‘क्रूड पायरोलिसिस ऑइल’ का उपयोग हीटिंग उद्देश्यों के लिये पुनः किया जाता है।

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