New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 28th Sept, 11:30 AM Hindi Diwas Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 15th Sept. 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 25th Sept., 11:00 AM Hindi Diwas Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 15th Sept. 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 28th Sept, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 25th Sept., 11:00 AM

महामारी के दौर में  कैदियों के अधिकार

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारतीय राजतंत्र और शासन, संविधान तथा अधिकार संबंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य प्रश्नपत्र - 1 : सामाजिक सशक्तीकरण से संबंधित विषय; सामान्य प्रश्नपत्र - 2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न से संबंधित विषय)

संदर्भ

  • महामारी काल में भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली बेंच ने जेलों में कैदियों की बढ़ती संख्या और जेल में पुलिसकर्मियों के स्वास्थ्य तथा जीवन के अधिकार को ध्यान में रखते हुए पात्र कैदियों की अंतरिम रिहाई का आदेश दिया है।

आदेश के प्रमुख बिंदु

  • शीर्ष न्यायालय ने वर्ष 2014 के ‘अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य’ मामले में दिये गए अपने का सख्ती से पालन करने पर ज़ोर दिया। इस मामले में न्यायालय ने फैसला दिया था कि जिन मामलों में 7 वर्ष से कम की सज़ा का प्रावधान है, उनमें अनावश्यक गिरफ्तारी करने से बचा जाए।
  • अदालत ने अपने एक अन्य आदेश को भी दोहराया, जिसमें कैदियों की अंतरिम जमानत पर रिहाई तथा स्क्रीनिंग करने के लिये राज्य तथा संघ राज्यक्षेत्रों को विशेष समितियाँ गठित करने का कहा था।
  • बैंच ने कहा कि वर्ष 2020 में जिन कैदियों को अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया था, उन्हें पुनः रिहा किया जाना चाहिये क्योंकि पिछले वर्ष रिहा हुए कैदियों में से लगभग 90% फरवरी-मार्च 2021 तक वापस जेलों में लौट आए थे। इससे जेलों पर दबाव बढ़ गया है।
  • इसी तरह, जिन कैदियों को वर्ष 2020 में पैरोल दी गई थी, उन्हें जेलों में भीड़भाड़ कम करने तथा महामारी के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिये 90 दिनों की पैरोल पर पुनः भेज देना चाहिये।
  • सभी ज़िलों के अधिकारी ‘आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता’ (Criminal Procedure Code – CrPC) की धारा 436ए का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करेंगे। इस धारा के तहत उन विचाराधीन कैदियों को व्यक्तिगत गारंटी पर रिहा किया जा सकता है, जिन्होंने कारावास में अपनी निर्धारित सज़ा का आधा समय गुजार लिया है।
  • अदालत ने एक ऐसी परिस्थिति पर भी विचार किया, जिसमें कैदी अंतरिम जमानत या पैरोल पर रिहाई के पात्र होने के बावजूद भी घर नहीं जाना चाहते कोविड-19 से संक्रमण का भय या सामाजिक परिस्थिति इसकी वजह हो सकती है। ऐसे मामलों में अदालत ने कैदियों तथा जेलकर्मियों, दोनों की उचित चिकित्सा देखभाल का आदेश दिया है।
  • इसके अलावा, न्यायालय ने राज्य यह भी आदेश दिया कि रिहा हुए कैदियों को उनके घर तक सुरक्षित पहुँचाया जाए, ताकि उन्हें लॉकडाउन के चलते किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े।

भारतीय जेलें और विचाराधीन कैदी

  • भारतीय जेलें विभिन्न समस्याओं से जूझ रही हैं, इनमें अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, क्षमता से अधिक कैदी, कर्मचारी व राजस्व की कमी, कैदियों के मध्य हिंसक झड़पें आदि प्रमुख हैं। वर्ष 2019 में ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (NCRB) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट 'प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया' में भारतीय जेलों में कैदियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला गया है।
  • दुनिया में सर्वाधिक विचाराधीन कैदी भारत में हैं। वर्ष 2016 में अधिकांश विचाराधीन कैदियों को 6 महीने से भी कम समय के लिये गिरफ्तार किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016 के अंत तक कुल 4,33,033 कैदियों में से करीब 68% ‘विचाराधीन’ थे इसके अलावा, विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या के प्रमुख कारण सुनवाई के समय अनावश्यक गिरफ्तारी, अप्रभावी कानूनी सहायता आदि हैं।
  • जागरूकता का अभाव भी विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या प्रमुख कारण है। एमनेस्टी इंडिया के शोध में पाया गया कि अधिकांश कैदियों तथा जेल अधिकारियों को सी.आर.पी.सी. की धारा 436ए के बारे में जानकारी नहीं होती है।
  • वर्ष 2016 में धारा 436ए के तहत रिहाई योग्य पाए गए विचाराधीन कैदियों की संख्या 1557 थी, जिनमें से केवल 929 कैदियों को ही रिहा किया गया था।
  • वर्ष 2017 में भारत के विधि आयोग ने सिफारिश की थी कि 7 साल तक की कैद वाले अपराध के लिये अपनी अधिकतम सजा का एक-तिहाई पूरा करने वाले विचाराधीन कैदियों को जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिये।

अप्राकृतिक मौतें

  • ज़िलों में अप्राकृतिक मौतों की संख्या वर्ष 2015 में 115 थी, जो वर्ष 2016 में बढ़कर 131 हो गई थी। कैदियों की आत्महत्या की दर में भी 28% की वृद्धि हुई है। जिसमें वर्ष 2015 में आत्महत्याओं की संख्या 77 थी, जो वर्ष 2016 में बढ़कर 102 हो गई।
  • वर्ष 2014 में मानवाधिकार आयोग ने कहा था कि औसतन एक व्यक्ति के जेल में आत्महत्या करने की संभावना बाहर रहने वाले व्यक्ति से डेढ़ गुना अधिक होती है, जो जेलों में मानसिक स्वास्थ्य की भयावहता का एक संकेतक है। इसके अलावा, कैदियों के लिये मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सकों की कमी भी एक गंभीर समस्या है।

जेल सुधार संबंधी अमिताभ रॉय समिति

सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में कैदियों की समस्याओं की जाँच करने के लिये सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की अध्यक्षता में एक न्यायिक समिति का गठन किया था। इस समिति ने निम्नलिखित सिफारिशें दीं–

  1. भीड़-भाड़ संबंधी सिफारिश
  • जेल में भीड़-भाड़ की समस्या से निपटने के लिये तीव्र सुनवाई की जानी चाहिये। जेलों में अंडर ट्रायल कैदियों की संख्या दोषी ठहराए गए कैदियों की तुलना में अधिक है।
  • प्रत्येक 30 कैदियों पर कम-से-कम एक वकील का होना चाहिये, जबकि वर्तमान में ऐसा नहीं है। पाँच वर्ष से अधिक समय से लंबित छोटे-मोटे अपराधों से निपटने के लिये विशेष फास्ट-ट्रैक न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिये।
  • इसके अलावा, जिन अभियुक्तों पर छोटे-मोटे अपराधों का आरोप है और जिन्हें ज़मानत मिल चुकी है, लेकिन जो ज़मानत की राशि की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं, उन्हें ‘व्यक्तिगत पहचान (PR) बॉण्ड’ पर रिहा कर कर दिया जाना चाहिये।
  1. कैदियों के संबंध में सिफारिश
  • कैदियों को प्रभावी कानूनी सहायता प्रदान करने, उनको व्यावसायिक कौशल व शिक्षा प्रदान करने संबंधी कदम उठाए जाने चाहिये।
  • प्रत्येक नए कैदी को जेल में पहले सप्ताह के दौरान परिवार के सदस्यों से बात करने के लिये दिन में एक मुफ्त फोन कॉल की अनुमति दी जानी चाहिये और उनका वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से परीक्षण किया जाना चाहिये।
  • अपराधियों को जेल भेजने के बजाय न्यायालय अपनी ‘विवेकाधीन शक्तियों’ का प्रयोग कर सकता है और यदि संभव हो तो ‘ज़ुर्माना और चेतावनी’ जैसे उपकरणों का प्रयोग कर सकता है।
  1. भोजन संबंधी सिफारिश

जेलों में भोजन पकाने के तरीकों को आदिम तथा कठिन बताया गया है। जेलों में रसोइयाँ काफी छोटी व अस्वास्थ्यप्रद होती हैं और वहाँ वर्षों से एक जैसा आहार ही परोसा जा रहा है। जेलों में आवश्यक वस्तुओं को खरीदने, आधुनिक विधि से खाना पकाने और कैंटीन की व्यवस्था की जानी चाहिये।

 

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X