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बाल-विकास में पोषण की भूमिका 

(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

कोविड-19 महामारी के मामले धीरे-धीरे घटने लगे हैं तथा विद्यालयों सहित विभिन्न संस्थान खुलने लगे हैं। ऐसे में, यह चिंता का विषय है कि अभी तक बच्चों का पूर्ण रूप से टीकाकरण नहीं हुआ है। भारत में बाल-पोषण की स्थिति पहले से ही बेहतर नहीं है, ऐसे में आंशिक टीकाकरण स्थिति को और गंभीर बना सकता है। अतः समूचे समाज को बाल-पोषण पर ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि पोषण-युक्त भोजन के माध्यम से ही शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जा सकता है।

भारत में पोषण समस्या संबंधी पहलू

  • भारत पोषण संबंधी 3 प्रमुख समस्याओं से जूझ रहा है, ये हैं–
  1. अल्प-पोषण
  2. अधिक वज़न या मोटापा
  3. लोहा, ज़िंक, कैल्शियम तथा विटामिन जैसे विभिन्न सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी।
  • ये तीनों समस्याएँ बच्चों व किशोरों को अधिक प्रभावित करती हैं क्योंकि इस उम्र में न सिर्फ उनकी शारीरिक वृद्धि तीव्र होती है, बल्कि उनकी खाद्य आदतों का भी विकास होता है। ‘बचपन’ व ‘किशोरावस्था’ दोनों, सतत् संवृद्धि व विकास की संयुक्त समयावधि होती हैं।
  • उदाहरण के लिये, 2 से 10 वर्ष की उम्र के दौरान बच्चों की लंबाई में औसतन 6-7 सेमी. प्रतिवर्ष तथा वज़न में 1.5-3 कि.ग्रा. प्रतिवर्ष की वृद्धि होती है। लेकिन 10-12 वर्ष की उम्र में बालिकाओं की तथा इसके 2 वर्ष बाद बालकों की पोषण आवश्यकताएँ अत्यंत तेज़ी से बढ़ती हैं।
  • विशेषकर, बालिकाओं के मामले में ‘पोषण स्तर’ न सिर्फ उनके, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। किसी भी प्रकार का कुपोषण बच्चों व किशोरों की प्रतिरक्षा प्रणाली को जोखिम में डाल सकता है, इससे वे संक्रमण के प्रति अत्यंत संवेदनशील हो जाएंगे।

सामाजिक कारक

  • बच्चों की प्रतिरक्षा बढ़ाने में सामाजिक ताने-बाने की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वर्तमान में, विघटित होता सामाजिक वातावरण हमारी आहार गुणवत्ता को भी क्षीण कर रहा है। शहरों में तथा उच्च व मध्यम वर्गों में एक सामान्य प्रवृत्ति देखी जा रही है। इसमें आपसी मेल-जोल पर प्रतिबंध, समाजीकरण की प्रकिया पर नियंत्रण आदि शामिल हैं।
  • कोविड-19 के दौरान उपजी परिस्थितियों से भी बच्चों के समक्ष प्रतिरक्षा संबंधी चुनौतियाँ बढ़ी हैं। चूँकि पहले से ही ‘आहार विविधता की कमी’ व्याप्त है, अतः इसके साथ संबद्ध होकर ये चुनौतियाँ असंतुलित सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के सेवन, उच्च कार्बोहाइड्रेट व उच्च चीनी खाद्य पदार्थों की खपत को भी बढ़ाती हैं।
  • परिणामस्वरूप बच्चों का प्रतिरक्षा तंत्र प्रभावित होता है तथा वे संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं, जो अंततः उनके स्वास्थ्य को खतरे में डालता है।

संतुलित आहार की आवश्यकता

  • यह आवश्यक है कि सिर्फ न्यूनतम कैलोरी आवश्यकताओं की परिपूर्ति तक ही सीमित ना रहा जाए, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि बच्चों को सभी आवश्यक पोषक तत्त्व मिलने के साथ-साथ पर्याप्त विविधता वाला संतुलित आहार भी मिले।
  • बच्चों को सभी आवश्यक पोषक तत्त्वों से भरपूर संतुलित आहार प्रदान करना, उन्हें सक्रिय और स्वस्थ जीवन के लिये एक ठोस आधार प्रदान करता है।
  • बेहतर प्रतिरक्षा प्रणाली और स्वस्थ संवृद्धि व विकास के लिये एंज़ाइम, हार्मोन और अन्य पदार्थों की भूमिका होती है और इनके उत्पादन के लिये सूक्ष्म पोषक तत्त्व अत्यंत आवश्यक होते हैं, किंतु अक्सर इसकी अनदेखी की जाती है।
  • शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का प्रत्येक चरण कई सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की उपस्थिति पर निर्भर करता है। प्रच्छन्न भुखमरी से निपटने के लिये पूरे भारत में किफ़ायती, सुलभ और विविध खाद्य स्रोत उपलब्ध कराए जाने चाहिये।
  • शरीर का आदर्श वज़न बनाए रखना, शारीरिक गतिविधियों का नियमन करना, पर्याप्त पानी का सेवन करना, पर्याप्त नींद लेना आदि प्रतिरक्षा के निर्माण और विनियमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

पोषक तत्त्वों के स्रोत

  • सूक्ष्म पोषक तत्त्व, जो मुख्यतः फलों, सब्जियों, साग, नट, फलियों, साबुत अनाज आदि से प्राप्त होते हैं, न सिर्फ प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूत बनाते हैं, बल्कि 'प्रतिरक्षा स्मृति' (immune memory) के निर्माण में भी सहायक होते हैं। 
  • विशेषज्ञों के मतानुसार, आयु वर्ग के आधार पर प्रत्येक बच्चे को प्रति दिन लगभग 300-500 ग्राम ताजे फल और सब्जियों का सेवन करना चाहिये। ये दही और नट्स के साथ आँत में फायदेमंद प्रोबायोटिक बैक्टीरिया को बढ़ा सकते हैं।
  • अच्छी तरह से पका हुआ माँस और समुद्री मछली प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं। समुद्री मछली आवश्यक वसा भी प्रदान करती है। लगभग 300-400 मिली. दूध या दही आवश्यक कैल्शियम, गुणवत्तापरक प्रोटीन और अन्य पोषक तत्त्व प्रदान कर सकता है।
  • शहरी और संपन्न समूहों द्वारा उच्च कैलोरी युक्त स्नैक्स और मीठे पेय पदार्थों का अत्यधिक उपयोग किया जाता है। इन खाद्य पदार्थों में लाभकारी पोषक तत्त्वों का अभाव होता है, अतः इन्हें हतोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • हालाँकि, वसा को सदैव हानिकारक अवयव के रूप में ही नहीं देखा जाना चाहिये, क्योंकि बच्चों और किशोरों को एक दिन में लगभग 25-50 ग्राम वसा की आवश्यकता होती है।

प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना 

  • मिड-डे-मील योजना का नाम बदलकर ‘प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना’ (PM POSHAN) कर दिया गया है। इसमें पूर्व-प्राथमिक स्तर के बच्चे, सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के बच्चे शामिल किये गए हैं।
  • पी.एम. पोषण योजना के तहत आहार विविधता को ध्यान में रखते हुए प्राथमिक स्तर पर बच्चों को 450 किलो कैलोरी ऊर्जा और 12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर बच्चों को 700 किलो कैलोरी ऊर्जा और 20 ग्राम प्रोटीन प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया है।
  • इसके अलावा, स्कूली बच्चों के हीमोग्लोबिन स्तर की निगरानी व ​​हीमोग्लोबिन और विकास की स्थिति सुनिश्चित करने के लिये पोषण विशेषज्ञों की नियुक्ति भी की जाती है। अब जब हम पुनः विद्यालय खोलने की तैयारी कर रहे हैं, तो पोषक तत्त्वों की आपूर्ति पर ध्यान देना स्वागत योग्य कदम है।
  • इसमें एनीमिया के उच्च प्रसार वाले ज़िलों में बच्चों के लिये पोषण संबंधी खाद्य पदार्थ  प्रदान करना, किसान उत्पादक संगठनों और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से बाल-पोषण को बढ़ावा देना आदि शामिल हैं।

निष्कर्ष

कोविड-19 की स्थिति हो या सामान्य स्थिति, बेहतर प्रतिरक्षा बच्चों का दीर्घकालिक कल्याण सुनिश्चित कर सकती है। अंततः अच्छा पोषण, सुरक्षित भोजन और सकारात्मक जीवन शैली बेहतर प्रतिरक्षा प्रणाली के आधारभूत तत्त्व हैं। यह सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि सभी बच्चों का पालन-पोषण अच्छे ढंग से हो।

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