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भारत-चीन विवाद और सिक्किम-तिब्बत अभिसमय की सार्थकता

(प्रारम्भिक परीक्षा: भारत का इतिहास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 2: आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, स्वतंत्रता के पश्चात् देश के अंदर एकीकरण और पुनर्गठन, भारत एवं इसके पड़ोसी- सम्बंध, भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

पृष्ठभूमि

सिक्किम के नाकु ला में भारतीय और चीनी सैनिकों के मध्य झड़प और गतिरोध को सुलझा लिया गया है परंतु इसे चीन द्वारा सीमा क्षेत्रों पर नये दावे के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। रक्षा विशेषज्ञों ने भारत को इस क्षेत्र में स्वामित्व दिखाने के लिये वर्ष 1890 में ऐतिहासिक रूप से सिक्किम (ब्रिटिश भारत) और तिब्बत (चीन) के मध्य सम्पन्न हुई संधि पर ज़ोर दिया है। इसे ‘सिक्किम-तिब्बत अभिसमय’ (Sikkim-Tibet Convention) या संधि भी कहा जाता है। इस संधि द्वारा सिक्किम और तिब्बत के मध्य सीमा को परिभाषित किया गया है। चीन और स्वतंत्रता के बाद भारत ने इस संधि और सीमांकन का पालन किया। वर्ष 1975 में सिक्किम के भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनने से पूर्व तक ऐसी ही स्थिति चलती रही। नाकु ला में चीनी सैनिकों द्वारा अतिक्रमण का मामला इसलिये महत्त्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में इससे पहले कभी विवाद नहीं हुआ था और न ही इसे विवादित क्षेत्र माना जाता है।

सिक्किम-तिब्बत अभिसमय,1890

  • भारत और चीन के मध्य 3,488 किमी. लम्बी सीमा में केवल 220 किमी. का सिक्किम-तिब्बत खंड ही ऐसा भाग है जिस पर दोनों देश सहमत थे और दोनों के बीच कम से कम विवाद है।
  • इसका कारण है वर्ष 1890 की संधि, जिसके तहत सिक्किम-तिब्बत सीमा को लेकर सहमति बनी थी। इसी के अनुसार, वर्ष 1895 में संयुक्त रूप से दोनों पक्षों के मध्य भौतिक रूप से सीमांकन का कार्य किया गया था। इस क्षेत्र में सीमा का निर्धारण जल-विभाजन के सिद्धांत पर आधारित था।
  • यह संधि ब्रिटेन, सिक्किम और तिब्बत (किंग राजवंश- Qing) के मध्य सम्पन्न हुई थी। इस समझौते पर ब्रिटिश भारत की ओर से तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लैंसडाउन तथा शेंग ताय (Sheng Tai) नामक तिब्बती ने हस्ताक्षर किये थे।
  • इस संधि पर वर्ष 1890 में कलकत्ता कन्वेंशन में हस्ताक्षर किया गया था। इस संधि के आठ अनुच्छेदों में से प्रथम अनुच्छेद महत्त्वपूर्ण है।
  • इस संधि के अनुच्छेद (1) के अनुसार, इस बात पर समझौता हुआ था कि सिक्किम और तिब्बत के मध्य सीमा का निर्धारण सिक्किम में तीस्ता व उसकी सहायक नदियों द्वारा होने वाले जल प्रवाह तथा तिब्बत के मोंछु (Mochu) व अन्य उत्तरी नदियों में होने वाले जल के प्रवाह को अलग करने वाली पर्वत श्रृंखला के शिखर द्वारा होगा।
  • चीन के अनुसार, वर्ष 1890 अभिसमय के अनुच्छेद (1) के तहत, सिक्किम, तिब्बत और भूटान के मध्य त्रि-कोणीय जंक्शन माउंट गिपमोची (Mount Gipmochi) है।
  • हालाँकि, तिब्बत ने वर्ष 1890 की संधि को अवैध मानते हुए इसके प्रावधानों को लागू करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद वर्ष 1904 में ल्हासा में ग्रेट ब्रिटेन और तिब्बत के मध्य एक अन्य संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • सन् 1904 के अभिसमय के अनुसार, तिब्बत वर्ष 1890 की संधि को मानते हुए अनुच्छेद (1) में लिखित सिक्किम व तिब्बत के बीच सीमा को मान्यता देने पर सहमत हुआ। अप्रैल 1906 में ब्रिटेन और चीन के मध्य पेकिंग में वर्ष 1904 की संधि की पुष्टि हेतु हस्ताक्षर किये गए।
  • गौरतलब है कि वर्ष 1949 में सत्ता सम्भालने वाली चीन की नई सरकार ने 26 दिसम्बर, 1959 को भारत सरकार के साथ एक औपचारिक नोट के माध्यम से इस संधि की पुष्टि भी की थी।
  • वर्ष 1975 में सिक्किम के भारत में विलय से पूर्व तक चीनी पक्ष जल-विभाजन पर आधारित सीमांकन को अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में स्वीकार करता था।
  • सिक्किम-तिब्बत सीमा को औपचारिक रूप से लम्बे समय तक सीमांकित किया जाता रहा है। साथ ही, दोनों पक्षों के बीच न तो मानचित्रों को लेकर कोई विसंगति थी और न ही व्यवहारिक रूप से कोई विवाद था, जैसा की अन्य क्षेत्रों में देखने को मिलता है।

भारतीय पक्ष

  • सीमाओं का भौगोलिक सीमांकन इतना स्पष्ट था कि इसे आसानी से पहचाना और स्वीकार किया जा सकता था। यहाँ तक ​​कि विगत में उपलब्ध गूगल इमेज का विश्लेषण करते हुए नाकु ला की अवस्थिति को जल-विभाजक के रूप में आसानी से देखा जा सकता है।
  • दर्रे की अवस्थिति के सम्बंध में कोई अस्पष्टता नहीं है क्योंकि भौगोलिक स्थिति को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि सिक्किम वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान सुर्खियों में तब आया, जब बिना किसी उकसावे के अचानक चीन ने इस क्षेत्र को लेकर कड़ी आपत्ति की थी।

india-china

  • तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह कहकर इस मुद्दे को दरकिनार कर दिया था कि चीन के तरफ़ बने बंकरों को उन्हें ध्वस्त करने का अधिकार है।
  • चीन इस स्थान को सैन्य से ज्यादा राजनीतिक मामला बनाने के पक्ष में था क्योंकि वह युद्ध के समय पाकिस्तान को आत्मबल प्रदान करना चाहता था। हालाँकि यू.एस.एस.आर. (USSR) और यू.एस.ए. की आपत्ति के साथ-साथ भारत की मज़बूती के कारण सिक्किम-तिब्बत सीमा के मामले में चीन की धमकी का कोई व्यापक असर नहीं हुआ।
  • वर्ष 1967 में, चीन ने सिक्किम-तिब्बत सीमा को पुनः सक्रिय कर दिया। इस दौरान दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष भी देखा गया था।

वर्तमान स्थिति

  • वर्ष 2003 में भी इससे सम्बंधित महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने चीन यात्रा के दौरान स्वीकार किया कि शी-जैंग (तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र- TAR) चीन का हिस्सा है। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि चीन भी सिक्किम को भारत का अंग माने।
  • इसके बाद, अप्रैल 2005 में तत्कालीन चीन के राज्य प्रमुख वेन जियाबाओ और मनमोहन सिंह ने एक संयुक्त बयान के तहत सिक्किम को भारत का अभिन्न अंग माना था। साथ ही, चीन द्वारा सिक्किम को भारत का हिस्सा दिखाते हुए एक मानचित्र भी भारत को सौंपा गया था।
  • सिक्किम-तिब्बत सीमा पर वर्तमान झड़प नई नहीं है। इससे पूर्व डोकलाम क्षेत्र में सड़क निर्माण को लेकर दोनों देशों के बीच झड़प हो चुकी है।
  • सीमा निर्धारण के मामले में चीन द्वारा विवाद किसी छिपे हुए एजेंडें का परिणाम हो सकता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर कई स्थानों पर चीन द्वारा विवाद और दक्षिण चीन सागर व ताइवान जलडमरूमध्य में चल रही आक्रामकता भी इस बात का प्रमाण हैं।

आगे की राह

सीमा के अन्य क्षेत्रों सहित सिक्किम में इस प्रकार की घटनाओं की शुरुआत चीनी सरकार और चीन की सेना के बीच किसी पूर्व नियोजित योजना का हिस्सा मालूम पड़ता है। वर्ष 1967 की तरह, भारत को चीन की माँगों के आगे झुकने का न तो कोई सवाल है न ही कोई कारण। भारतीय सेना का पीछे न हटना चीन के लिये पर्याप्त सबक होगा। चीन की आर्थिक और सैन्य प्रगति की अकड़ से निपटने हेतु भारत द्वारा सेना के प्रयोग व दृढ़ता के साथ-साथ राजनयिक चैनलों व कूटनीति का प्रयोग भी आवश्यक है।

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