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मानवीय दिमाग से संबंधित अध्ययन

(प्रारंभिक परीक्षा : सामान्य विज्ञान, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन)

संदर्भ

हाल ही में प्रकाशित एक नए अध्ययन में पूर्व-प्रचलित इस धारणा पर सवाल उठाया गया कि ‘बड़े आकार वाले दिमाग’ अधिक बुद्धिमत्ता के संकेतक है।

हालिया अध्ययन

  • साइंस एडवांसेज नामक जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन में व्यावहारिक और सामान्य बुद्धि को लेकर प्रश्न उठाया गया है। मानव सदैव से ही स्वयं को पृथ्वी का सबसे असाधारण और बुद्धिमान प्राणी होने का दावा करता आया है। 
  • पिछले 150 मिलियन वर्षों के 1,400 जीवित और विलुप्त स्तनपायी प्रजातियों के मस्तिष्क और शरीर के आकार की जाँच करने वाले शोधकर्ताओं ने इस बात की संभावना जताई है कि स्तनपायी प्रजातियों की उत्पत्ति बड़े आकार वाले दिमाग के साथ नहीं हुई बल्कि ‘दिमाग की तुलना में शरीर के छोटे आकार’ के साथ उनका विकास हुआ। इससे उनको पर्यावरणीय परिवर्तनों के साथ अनुकूलन स्थापित करने में सहायता मिली। अर्थात् मानव प्रजातियों के विकास का संबंध दिमाग के आकार के बड़े होने और अनुभूति के स्तर में वृद्धि से संबंधित नहीं है।
  • आत्मज्ञान की प्राप्ति एवं शिक्षा के विकास के बाद मनुष्यों ने अपनी बुद्धि व तर्क का उपयोग प्रकृति के साथ समायोजन, धन सृजन और राष्ट्रों के निर्माण को औचित्यपूर्ण ठहराने के लिये किया। हालाँकि, उपर्युक्त अध्ययन इस तर्क को एक प्रकार के पूर्वाग्रह का प्रतीक मानता है।

दिमाग और मानवीय विशेषताएँ

  • मनुष्य, पृथ्वी पर स्थित सभी प्राणियों में स्वयं को सर्वाधिक बुद्धिमान मानता है। साथ ही, होमो-सैपियन्स में सम्मुख अंगूठे (Opposable Thumbs- लिखने में प्रयुक्त होने के कारण विशेष) और सीधे चलने की क्षमता होती है तथा मनुष्यों का दिमाग उसके शारीरिक आकार की तुलना में बड़ा होता है। ये लक्षण मानवों को अन्य प्रजातियों से अलग करतें है।
  • बड़े आकार वाले दिमाग को अधिक बुद्धिमत्ता का संकेतक माना जाता है। साथ ही, यह माना जाता है कि उसके दिमाग के आकार का बड़ा होना प्रकृति द्वारा बेहतर चयन का ही एक प्रमाण है।

विकासवादी तर्क की सीमाएँ

  • हालाँकि, विकासवादी तर्क को बुद्धिमत्ता के बारे में कुछ तथ्यों पर विचार करना चाहिये। रोगाणुओं (जैसे- विषाणु, जीवाणु, प्रोटोजोआ आदि) का निरंतर बने रहना उन्हें योग्यतम की उत्तरजीविता (Survival of the Fittest) में अधिक मदद करने की स्थिति को दर्शाता है।
  • इसके विपरीत, पृथ्वी के संसाधनों के अनियंत्रित दोहन, सभी प्रकार की सहायता और मानव बुद्धि के उपयोग ने प्रकृति को क्षति ही पहुँचाई है और पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन को जोखिम में डाल दिया है।
  • उदाहरण के तौर पर यदि कोविड- 19 महामारी के संदर्भ में देखा जाए तो कोरोना वायरस ने मानव शरीर का उपयोग अपने को गुणित करने एवं अपने आनुवंशिक कोड के प्रसार के लिये किया है। दिमाग रहित यह सूक्ष्म रोगाणु मानव जीवन को भारी क्षति पहुँचाने के साथ-साथ उनके जीवन व अस्तित्व के तरीकों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पर बल देता है।
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