New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM July Exclusive Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 14th July 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 14th July, 8:30 AM July Exclusive Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 14th July 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 14th July, 8:30 AM

50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा सुसंगत या नहीं

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 -भारतीय संविधान, न्यायपालिका)

संदर्भ

उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों से राय माँगी है कि क्या 50 प्रतिशत की अधिकतम आरक्षण सीमा पर पुनर्विचार की ज़रूरत है?

50प्रतिशत की अधिकतम आरक्षण सीमा

  • वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी वाद में 9-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ द्वारा 50% की अधिकतम आरक्षण सीमा निर्धारित की गई थी, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता।
  • हालाँकि, पीठ ने यह भी कहा था कि असाधारण परिस्थितियों में आरक्षण बढ़ाया जा सकता है।

मराठा आरक्षण का मामला

  • न्यायालय यह जानना चाहता है कि क्या महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने वंचित मराठा समुदाय को दिये गए आरक्षण को "असाधारण परिस्थिति" माना था या नहीं?
  • ध्यातव्य है कि बॉम्बे उच्च न्यायालय ने जून 2019 में, गायकवाड़ आयोग द्वारा मराठों के आरक्षण के लिये अनुशंसित 16% आरक्षण को घटाकर शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% कर दिया था।
  • उच्च न्यायालय के इस निर्णय को उच्चतम न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी गई थी, जिसने इसे बड़ी संविधान पीठ के समक्षअग्रेषित कर दिया था।

मराठा कोटा को चुनौती

मराठा कोटा कानून को दी गई चुनौती पर विचार करने के लिये न्यायालय के समक्ष दो महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं:

  1. क्या कोई राज्य किसी विशेष जाति को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा घोषित कर सकता है?
  2. क्या राज्य उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित "ऊर्ध्वाधर कोटे" के लिये 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा का उल्लंघन कर सकते हैं?

क्या है इंद्रा साहनी वाद?

  • वर्ष 1979 में, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करने के लिये आवश्यक मापदंड निर्धारित करने के उद्देश्य से द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग (मंडल आयोग) की स्थापना की गई थी।
  • मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में उस समय की 52 प्रतिशत आबादी को "सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग" (Socially and Economically Backward Classes - SEBCs) के रूप में मान्यता देते हुए, एस.सी. व एस.टी.श्रेणियों के लिये पहले से मौजूद 5 प्रतिशत आरक्षण के अलावा पिछड़े वर्ग के लिये भी 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की थी।
  • वर्ष 1990 में, तत्कालीन सरकार ने मंडल रिपोर्ट को लागू करने की बात की तो इसे न्यायालय में चुनौती दी गई।
  • अंततः यह मामला नौ-न्यायाधीशों की खंडपीठ के समक्ष आया और वर्ष 1992 में 6:3 के अनुपात में मंडल आयोग के पक्ष में फैसला सुनाया गया।
  • इसी वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा था कि संयुक्त आरक्षण के बाद लाभार्थियों की संख्या कुल संख्या की 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिये।
  • 'क्रीमीलेयर' की अवधारणा भी इस निर्णय के माध्यम से ही आई और न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण केवल आरंभिक नियुक्तियों तक ही सीमित होना चाहिये, पदोन्नति में इसका लाभ नहीं मिलना चाहिये।
  • ध्यातव्य है कि संसद द्वारा वर्ष 2019 में 103 वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा अनारक्षित वर्ग में "आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के" व्यक्तियों के लिये सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।
  • इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 15 और16 में संशोधन करके आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण प्रदान करने के लिये आवश्यक खंड जोड़े गए।
  • ध्यातव्य है कियह 10% आर्थिक आरक्षण 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा के ऊपर है। 

संवैधानिक प्रावधान

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 सभी नागरिकों के लिये समानता के अधिकार की बात करता है। अनुच्छेद 15(1) के अनुसार, राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा। अनुच्छेद 15(4) और 15(5) में सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति और जनजाति के लिये विशेष उपबंध की व्यवस्था की गई है।
  • संविधान के अनुच्छेद 16 में सरकारी नौकरियों और सेवाओं में समान अवसर प्रदान करने की बात की गई है। किंतु, अनुच्छेद 16(4), 16(4)(क), 16(4)(ख) तथा अनुच्छेद 16(5) में राज्य को विशेष अधिकार दिया गया है कि वह पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों को सरकारी नौकरियों में आवश्यकता अनुसार आरक्षण दे सकता है।
  • संविधान में 102वाँ संशोधन राष्ट्रपति को पिछड़े वर्गों को अधिसूचित करने की शक्तियाँ प्रदान करता है।न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि क्या राज्यों के पास भी समान शक्तियाँ हैं?

स्थानीय लोगों के लिये कोटा प्रणाली पर उच्चतम न्यायालय के पूर्व फैसले

  • उच्चतम न्यायालय, पूर्व में जन्म स्थान या निवास स्थान के आधार पर आरक्षण के विरुद्ध फैसला सुना चुका है।
  • वर्ष 1984 में, डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ वाद में, ‘सन ऑफ़ द सॉयल (Sons of the Soil)’से जुड़े मुद्दे पर चर्चा की गई थी।
  • न्यायालय ने इस वाद पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा था कि इस तरह की नीतियाँ असंवैधानिक होंगी। किंतु न्यायालय ने इस पर स्पष्ट रूप से कोई निर्णय नहीं दिया था, क्योंकि यह मुद्दा समानता के अधिकार के विभिन्न पहलुओं से जुड़ा हुआ था।
  • वर्ष 1955 के डी.पी. जोशी बनाम मध्य भारत वाद में उच्चतम न्यायालय ने अधिवास या निवास स्थान तथा जन्म स्थान के बीच अंतर बताते हुए स्पष्ट किया था कि व्यक्ति का निवास स्थान बदलता रहता है लेकिन उसका जन्म स्थान निश्चित होता है। अधिवास का दर्जा जन्म स्थान के आधार पर दिया जाता है।
  • सुनंदा रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश (1995) वाद में उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1984 में राज्य सरकार की एक नीति, जिसमें उम्मीदवारों को 5 प्रतिशत अतिरिक्त भारांक दिया गया था, को रद्द करने के लिये निर्णय दिया था।
  • वर्ष 2002 में, उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान में सरकारी शिक्षकों की नियुक्ति को अमान्य करार दिया था, जिसमें राज्य चयन बोर्ड द्वारा ‘संबंधित ज़िले या ज़िले के ग्रामीण क्षेत्रों के आवेदकों’ को वरीयता दी गई थी।
  • वर्ष 2019 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा एक भर्ती अधिसूचना पर भी टिप्पणी करते हुए उसे अमान्य बताया, जिसमें उत्तर प्रदेश की मूल निवासी महिलाओं के लिये प्राथमिकता निर्धारित की गई थी।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR