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समावेशी सामाजिक विकास के लिए AI रोडमैप रिपोर्ट

(प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

नीति आयोग ने ‘समावेशी सामाजिक विकास के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर रोडमैप’ (Roadmap on AI for Inclusive Societal Development) रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में डिजिटल समावेशन, कौशल विकास और सामाजिक सुरक्षा एकीकरण के माध्यम से भारत के विशाल अनौपचारिक क्षेत्र के कार्यबल को सशक्त बनाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के उपयोग की एक रणनीतिक योजना की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।

समावेशी सामाजिक विकास के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर रोडमैप रिपोर्ट के बारे में

भारत के अनौपचारिक क्षेत्र के कार्यबल की प्रवृत्ति एवं संबंधित आँकड़े

  • विशाल कार्यबल आधार: लगभग 49 करोड़ भारतीय (कुल कार्यबल का लगभग 90%) अनौपचारिक कार्यों में संलग्न हैं जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद (MoLE, 2024) में लगभग 50% का योगदान करते हैं। इसमें कृषि से लेकर रेहड़ी-पटरी पर सामान बेचने वाले तक शामिल हैं।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था में प्रभावी: 80% से अधिक ग्रामीण श्रमिकों के पास औपचारिक अनुबंध या सामाजिक सुरक्षा का अभाव है जो निर्माण, खुदरा एवं हस्तशिल्प जैसे क्षेत्रों में मुख्य रूप से केंद्रित हैं।
  • लैंगिक अनौपचारिकता: अनौपचारिक श्रम में महिलाओं की हिस्सेदारी 55% से ज़्यादा है जो विशेषकर घर-आधारित कार्यों और कृषि क्षेत्र में (ILO, 2023) संलग्न हैं।
  • निम्न उत्पादकता और मज़दूरी: अनौपचारिक क्षेत्र की औसत उत्पादकता औपचारिक क्षेत्र की एक-चौथाई है, जिससे निरंतर आय असुरक्षा बनी रहती है।
  • बढ़ती शहरी अनौपचारिकता: गिग व प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों से भारत के ‘नए अनौपचारिक वर्ग’ का विस्तार हुआ है, जिसमें लगभग 7.5 मिलियन प्लेटफ़ॉर्म श्रमिक (नीति आयोग, 2022) बिना श्रम सुरक्षा के कार्यरत हैं।

अनौपचारिक क्षेत्र में वर्तमान चुनौतियाँ

  • वित्तीय असुरक्षा: 75% से ज़्यादा अनौपचारिक श्रमिक 10,000/माह से कम कमाते हैं और उनके पास किफायती ऋण या बीमा तक पहुँच नहीं है (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, 2024)।
  • सीमित बाज़ार पहुँच: छोटे उत्पादक और कारीगर बिचौलियों पर निर्भर हैं और केवल 12% ही सीधे डिजिटल या संगठित बाज़ारों तक पहुँच पाते हैं।
  • डिजिटल एवं कौशल विभाजन: लगभग 70% अनौपचारिक श्रमिकों में बुनियादी डिजिटल साक्षरता का अभाव है जिससे वे AI-सक्षम आर्थिक प्रणालियों के लिए तैयार नहीं हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा अंतराल: केवल एक-तिहाई पात्र अनौपचारिक श्रमिक ही ई-श्रम या पी.एम.-एस.वाई.एम. जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के अंतर्गत पंजीकृत हैं।
  • विखंडित नीति एवं विश्वास की कमी: कल्याण से संबंधित डेटाबेस की ओवरलैपिंग और कमज़ोर संस्थागत समन्वय से श्रमिकों के बीच लाभों की पहुँच व विश्वास में कमी आती है।

अनौपचारिक कार्यबल में बदलाव लाने में प्रौद्योगिकी की भूमिका

  • वित्तीय समावेशन के लिए एआई: एआई-संचालित क्रेडिट स्कोरिंग (जैसे- एस.बी.आई. योनो, सेतु.एआई) उन श्रमिकों के लिए सूक्ष्म ऋण सक्षम कर सकती है जिनके पास संपार्श्विक (Collateral) या औपचारिक रिकॉर्ड नहीं हैं।
  • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI): आधार, यू.पी.आई. व ई-श्रम जैसे प्लेटफ़ॉर्म ऐसे श्रमिक पहचान (Worker Identities) का निर्माण करते हैं जिसका सत्यापन किया जा सकता हैं और इससे लक्षित लाभ व वेतन पारदर्शिता संभव होती है।
  • स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट व ब्लॉकचेन: पारदर्शी वेतन भुगतान और आपूर्ति-श्रृंखला ट्रेसिबिलिटी (झारखंड में टाटा स्टील फाउंडेशन का पायलट प्रोजेक्ट) शोषण को कम कर सकते हैं।
  • एआई-सक्षम कौशल: अनुकूली शिक्षण प्लेटफ़ॉर्म (जैसे- स्किल इंडिया डिजिटल) श्रमिकों को पुनः कुशल बनाने के लिए स्थानीय एवं आवाज-आधारित सूक्ष्म-शिक्षण मॉड्यूल प्रदान कर सकते हैं।
  • कल्याणकारी वितरण के लिए पूर्वानुमानित विश्लेषण: एआई कल्याणकारी लक्ष्यों (जैसे- पीएम किसान सम्मान निधि डेटा एकीकरण) को अनुकूलित कर सकता है, जिससे समय पर सहायता और डेटा-संचालित प्रशासन सुनिश्चित हो सकता है।

तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता

  • बढ़ती असमानता: अनौपचारिक श्रमिक स्वचालन और आर्थिक आघातों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील बने हुए हैं, जिससे महामारी के बाद आय का अंतर और बढ़ रहा है।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश खिड़की: 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है, इसलिए अगला दशक जनसांख्यिकीय शक्ति को उत्पादकता लाभ में बदलने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • वैश्विक एआई दौड़: तत्काल निवेश के बिना भारत 2035 तक पी.डब्ल्यू.सी. द्वारा अनुमानित 957 बिलियन डॉलर के एआई-संचालित जी.डी.पी. वृद्धि से चूकने का जोखिम उठा रहा है।
  • जलवायु एवं शहरी दबाव: अनौपचारिक श्रमिक जलवायु भेद्यता की अग्रिम पंक्ति में हैं जिसमें गर्मी से प्रभावित निर्माण से लेकर विस्थापित कृषि श्रमिकों तक शामल हैं।
  • नैतिक और समावेशी तकनीकी उपयोग: जिम्मेदार एआई के लिए एक ढांचे के बिना डाटा का दुरुपयोग समावेशन के बजाय पूर्वाग्रह को मजबूत कर सकता है, जिससे सामाजिक विभाजन गहरा हो सकता है।

नीति आयोग की रिपोर्ट की प्रमुख सिफ़ारिशें

  • डिजिटल श्रमसेतु मिशन का शुभारंभ: अनौपचारिक श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा, कौशल विकास और आजीविका संबंधों को एकीकृत करने वाला एक राष्ट्रीय एआई-सक्षम प्लेटफ़ॉर्म।
  • क्षेत्रीय एआई मॉडल विकसित करना: एआई-संचालित उत्पादकता वृद्धि के लिए उच्च-प्रभाव वाले क्षेत्रों, जैसे- कृषि, निर्माण, खुदरा एवं रसद को प्राथमिकता देना 
  • वॉइस-फ़र्स्ट और वर्नाक्यूलर इंटरफ़ेस को बढ़ावा देना: साक्षरता की बाधा को दूर करने के लिए एआई उपकरण को स्थानीय भाषाओं और बोलियों में सुलभ कराना 
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): अनौपचारिक पारिस्थितिकी तंत्र में नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी कंपनियों, स्टार्टअप्स एवं मंत्रालयों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना
  • नैतिक एआई और डेटा गवर्नेंस: सामाजिक क्षेत्रों के लिए एआई परिनियोजन में पारदर्शिता, गोपनीयता एवं समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए एक ज़िम्मेदार एआई चार्टर बनाना
  • एआई कौशल और माइक्रो-क्रेडेंशियल: स्किल इंडिया 2.0 के तहत मॉड्यूलर एआई पाठ्यक्रम के माध्यम से निरंतर अपस्किलिंग को संस्थागत बनाना
  • प्रभाव मूल्यांकन ढाँचा: एआई निवेश पर सामाजिक प्रतिफल को ट्रैक करने के लिए समावेशन, आय वृद्धि एवं सेवा वितरण पर डेटा-आधारित मूल्यांकन को अनिवार्य करना
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