(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।) |
संदर्भ
हाल ही में डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023 ने सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(j) में संशोधन किया, जिससे व्यक्तिगत जानकारी को छिपाने की प्रक्रिया आसान हो गई है। यह संशोधन पारदर्शिता के मूल सिद्धांत को कमजोर करता है, क्योंकि यह सार्वजनिक जानकारी को "निजी" बताकर रोकने का अधिकार देता है।
सूचना का अधिकार अधिनियम के बारे में
- स्थापना: RTI अधिनियम 2005 में लागू हुआ, जिसका उद्देश्य सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है।
- सिद्धांत: लोकतंत्र में सरकार नागरिकों की ओर से जानकारी की संरक्षक होती है, और सभी जानकारी डिफॉल्ट रूप से नागरिकों की है।
- प्रावधान:
- नागरिक बिना कारण बताए सरकारी जानकारी मांग सकते हैं।
- धारा 8 में 10 छूटें (exemptions) हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा, गोपनीयता आदि को सुरक्षित करती हैं।
- धारा 8(1)(j): व्यक्तिगत जानकारी को छूट देती है, यदि यह सार्वजनिक गतिविधि से असंबंधित हो या गोपनीयता का अनुचित हनन हो।
- विशेष प्रावधान: यदि जानकारी संसद या विधानमंडल को दी जा सकती है, तो नागरिकों को भी दी जानी चाहिए।
- महत्व: RTI ने भ्रष्टाचार उजागर करने, जैसे 2G घोटाला और सरकारी योजनाओं की निगरानी में मदद की।
धारा 8(1)(j) में हालिया संशोधन
- क्या बदला: DPDP अधिनियम ने धारा 8(1)(j) को संशोधित कर इसे कुछ शब्दों तक सीमित कर दिया: "व्यक्तिगत जानकारी जिसका प्रकटीकरण गोपनीयता का हनन करता हो।"
- प्रोविजो हटाया: मूल प्रावधान कि संसद को दी जा सकने वाली जानकारी नागरिकों से नहीं रोकी जा सकती, अब हटा दिया गया।
- प्रभाव: यह संशोधन व्यक्तिगत जानकारी की परिभाषा को अस्पष्ट करता है, जिससे अधिकांश जानकारी को आसानी से छिपाया जा सकता है।
- उद्देश्य: DPDP के तहत डाटा गोपनीयता को प्राथमिकता दी गई, लेकिन RTI की पारदर्शिता कमजोर हुई।
धारा 8(1)(j) क्या है
- परिभाषा का अभाव: संशोधित धारा 8(1)(j) में "व्यक्तिगत जानकारी" की स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई।
- दो व्याख्याएं:
- प्राकृतिक व्यक्ति (Natural Person): व्यक्तिगत जानकारी केवल सामान्य व्यक्ति से संबंधित हो।
- DPDP परिभाषा: इसमें हिंदू अविभाजित परिवार, फर्म, कंपनी, संगठन और राज्य शामिल हैं, जो लगभग सभी जानकारी को "निजी" बना देता है।
- परिणाम: दूसरी व्याख्या अपनाने पर RTI "सूचना देने का अधिकार" से "सूचना रोकने का अधिकार" (Right to Deny Information - RDI) बन सकता है।
- DPDP का प्रभुत्व: DPDP अधिनियम अन्य कानूनों पर हावी है, और उल्लंघन पर ₹250 करोड़ तक का जुर्माना संभव है।
डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम के बारे में
- परिचय: डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम, 2023 डाटा गोपनीयता को नियंत्रित करने के लिए लागू किया गया।
- उद्देश्य: व्यक्तिगत डाटा की सुरक्षा, डाटा उल्लंघन पर नियंत्रण और डिजिटल युग में गोपनीयता सुनिश्चित करना।
- प्रमुख प्रावधान:
- व्यक्तिगत डाटा की विस्तृत परिभाषा, जिसमें व्यक्ति, संगठन और राज्य शामिल।
- डाटा उल्लंघन पर भारी जुर्माना (₹250 करोड़ तक)।
- RTI के साथ टकराव, क्योंकि यह अन्य कानूनों को ओवरराइड करता है।
- RTI पर प्रभाव: DPDP ने धारा 8(1)(j) को संशोधित कर जानकारी प्रकटीकरण को कठिन बना दिया।
- चुनौती: डाटा गोपनीयता और सूचना के अधिकार के बीच संतुलन की कमी।
RTI कानून में संशोधन का प्रभाव
- पारदर्शिता में कमी: व्यक्तिगत जानकारी की व्यापक परिभाषा से 90% से अधिक जानकारी को रोका जा सकता है।
- नागरिक निगरानी पर असर: भ्रष्टाचार पर नजर रखने का सबसे प्रभावी साधन (RTI) कमजोर। उदाहरण: राजस्थान में पेंशन धोखाधड़ी उजागर करने जैसे प्रयास रुक सकते हैं।
- आम जानकारी पर रोक: सुधारी गई मार्कशीट जैसी साधारण जानकारी भी "निजी" मानी जा सकती है।
- भ्रष्टाचार को बढ़ावा: "घोस्ट कर्मचारी" या भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित जानकारी छिपाई जा सकती है।
- PIO का डर: डाटा उल्लंघन पर भारी जुर्माने के डर से सूचना अधिकारी जानकारी देने से बचेंगे।
आलोचना
- सार्वजनिक हित की उपेक्षा: धारा 8(2) में सार्वजनिक हित का प्रावधान है, लेकिन इसका उपयोग 1% से कम मामलों में होता है।
- लोकतंत्र पर हमला: धारा 8(2) और DPDP की धारा 44(3) को मौलिक अधिकारों पर "हमला" माना जा रहा है।
- सार्वजनिक उदासीनता: डाटा संरक्षण के बहाने संशोधन को कम खतरनाक माना गया, जिससे विरोध कम हुआ।
- अस्पष्टता: "व्यक्तिगत जानकारी" की परिभाषा अस्पष्ट है, जिससे मनमानी व्याख्या संभव।
- नौकरशाही सशक्तीकरण: PIO को जानकारी रोकने की शक्ति मिली, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
चुनौतियाँ
- पारदर्शिता का ह्रास: RTI का मूल उद्देश्य कमजोर, क्योंकि अधिकांश जानकारी अब "निजी" मानी जा सकती है।
- कानूनी टकराव: DPDP का RTI पर प्रभुत्व कानूनी अस्पष्टता उत्पन्न करता है।
- PIO की दुविधा: भारी जुर्माने के डर से सूचना अधिकारी पारदर्शिता के बजाय गोपनीयता को प्राथमिकता देंगे।
- सार्वजनिक जागरूकता की कमी: नागरिक और मीडिया में इस संशोधन के प्रति उदासीनता।
- भ्रष्टाचार पर नियंत्रण: अन्य तंत्र (लोकपाल, CBI) अप्रभावी, RTI ही एकमात्र हथियार था।
आगे की राह
- मीडिया और नागरिक भागीदारी: देशव्यापी चर्चा और जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।
- राजनीतिक जवाबदेही: नागरिकों को राजनीतिक दलों से मांग करनी चाहिए कि वे अपने घोषणापत्रों में इस संशोधन को वापस लेने का वादा करें।
- सार्वजनिक राय: मीडिया के समर्थन से मजबूत जनमत बनाया जाए।
- कानूनी सुधार: RTI को DPDP से ऊपर रखा जाए, ताकि पारदर्शिता प्राथमिकता बने।
- स्पष्ट परिभाषा: "व्यक्तिगत जानकारी" की स्पष्ट और सीमित परिभाषा तय की जाए।
- PIO प्रशिक्षण: सूचना अधिकारियों को संतुलित निर्णय लेने के लिए प्रशिक्षित करना।
- नागरिक कार्रवाई: यदि नागरिक चुप रहे, तो लोकतंत्र और स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है। सामूहिक प्रयासों से ही संशोधन को उलटा जा सकता है।