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एंटीबायोटिक प्रदूषण: एक उभरता पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य संकट

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव-विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण व क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार भारत की नदियों की कुल लंबाई का 80% भाग एंटीबायोटिक प्रदूषण के कारण गंभीर पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य संकट का सामना कर रही है। 

अध्ययन के बारे में 

  • यह अध्ययन कनाडा के McGill विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया है जिसमें 72 देशों की 877 नदी स्थलों पर 21 सामान्य एंटीबायोटिक दवाओं की उपस्थिति की जाँच की गई। 
  • यह अध्ययन विशेष रूप से जल संसाधनों के प्रदूषण से संबंधित है, जो न केवल लोगों के लिए, बल्कि समग्र पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी खतरा उत्पन्न करता है।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष

  • शोधकर्ताओं के अनुसार एंटीबायोटिक प्रदूषण, विशेष रूप से विकासशील देशों में, अत्यधिक बढ़ गया है। भारत, पाकिस्तान, नाइजीरिया, इथियोपिया और वियतनाम जैसे देशों में एंटीबायोटिक प्रदूषण का उच्च स्तर पाया गया है।
    • यह प्रदूषण न केवल पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करता है बल्कि पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य संकटों को भी जन्म देता है।
  • प्रमुख प्रदूषक दवाएँ : अध्ययन के अनुसार कुछ विशेष एंटीबायोटिक दवाएँ भारतीय नदियों में प्रदूषण का प्रमुख कारण बन रही हैं। 
    • इनमें अमॉक्सिसिलिन, सेफ्ट्रिआक्सोन एवं सेफिक्सिम जैसी दवाएँ प्रमुख हैं। विशेष रूप से सेफिक्सिम भारतीय नदियों में प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत बनकर उभरी है। 
    • इन दवाओं के अत्यधिक उत्सर्जन से न केवल जल जीवन को नुकसान हो रहा है, बल्कि ये मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा उत्पन्न कर रही हैं।
  • उत्सर्जन की मात्रा और उसका प्रभाव : इन एंटीबायोटिक दवाओं का जल स्रोतों में अत्यधिक उत्सर्जन हो रहा है। इससे जल में इनकी मात्रा बहुत बढ़ गई है जो प्रदूषण के स्तर को और अधिक बढ़ाती है। 
    • नदियों में इन दवाओं के लंबे समय तक रहने से जलीय जीवों की जैविक विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यह जल चक्र को भी प्रभावित कर सकता है। 
    • इससे कृषि पर भी प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि प्रदूषित जल का उपयोग खेती में किया जाता है, जिससे खाद्य सुरक्षा संकट उत्पन्न हो सकता है।

क्या है एंटीबायोटिक प्रदूषण (Antibiotic Pollution) 

पर्यावरण में एंटीबायोटिक दवाओं के अनियंत्रित, अव्यवस्थित एवं अनावश्यक रूप से उत्सर्जन या रिसाव के कारण होने वाले जल, मृदा एवं वायु प्रदूषण को एंटीबायोटिक प्रदूषण कहते हैं।

भारत की स्थिति 

  • भारत में लगभग 31.5 करोड़ लोग ऐसी नदियों के पास रह रहे हैं जो एंटीबायोटिक अवशेषों से दूषित हैं और इसका मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
  • दिल्ली, लखनऊ, गोवा व चेन्नई की नदियों में 2 से 5 गुना अधिक एंटीबायोटिक अवशेष पाए गए हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष लगभग 58,000 नवजातों की मौत एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण होती है।

एंटीबायोटिक प्रदूषण के कारक  

  • फार्मास्युटिकल उद्योग से उत्सर्जन : दवाइयां बनाने वाली फैक्ट्रियों से उपचारित या अपशोधित अपशिष्ट जल सीधे नदियों, नालों या भूजल स्रोतों में छोड़ा जाता है, जिसमें बड़ी मात्रा में एंटीबायोटिक्स होते हैं।
  • अत्यधिक एवं अनियंत्रित उपयोग : मनुष्यों व पशुओं में एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध इस्तेमाल होता है, जिनका कुछ अंश शरीर से निकलकर मल-मूत्र के साथ बाहर आता है और सीवेज के जरिए जल स्रोतों में मिल जाता है।
  • असंगठित चिकित्सा प्रणाली : भारत जैसे देशों में बिना चिकित्सक की सलाह के दवा खरीदना एवं स्वयं चिकित्सा करना सामान्य है। इससे दवाओं की खपत बढ़ती है और उनका अपशिष्ट बढ़ता है।
  • कृषि एवं पशुपालन में उपयोग : कई बार एंटीबायोटिक्स का उपयोग पशुओं का तेजी से विकास करने या बीमारियों से बचाने के लिए किया जाता है जिससे ये दवाएँ उनके मल के साथ मृदा व जल स्रोतों में पहुँच जाती हैं।

एंटीबायोटिक प्रदूषण के प्रभाव 

  • एंटीबायोटिक प्रतिरोध (Antibiotic Resistance): जब बैक्टीरिया लगातार एंटीबायोटिक्स के संपर्क में रहते हैं, तो वे इनके खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं। इसका मतलब है कि सामान्य संक्रमणों का उपचार भी कठिन या असंभव हो सकता है।
  • पर्यावरणीय असंतुलन: जलीय जीवों, सूक्ष्मजीवों एवं मृदा स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ने से खाद्य श्रृंखला व पारिस्थितिक तंत्र अव्यवस्थित हो सकते हैं।
  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव : दूषित पानी या भोजन के जरिए ये एंटीबायोटिक अवशेष शरीर में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे एलर्जी, आंतों की समस्याएँ एवं दवा प्रतिरोध जैसी गंभीर स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।

आगे की राह 

  • उद्योगों में सुधार: फार्मास्युटिकल कंपनियों को अपनी उत्पादन प्रक्रियाओं में सुधार लाने की आवश्यकता है, ताकि एंटीबायोटिक अवशेषों का उत्सर्जन नियंत्रित किया जा सके। इसके लिए सरकार को सख्त पर्यावरणीय नियमों को लागू करने की जरूरत है।
  • जल प्रदूषण नियंत्रण: सरकार एवं संबंधित एजेंसियों को नदियों व जल स्रोतों के प्रदूषण पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को एंटीबायोटिक प्रदूषण के लिए विशेष मानक एवं दिशा-निर्देश विकसित करने की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक जागरूकता: जनता को एंटीबायोटिक दवाओं के सही उपयोग एवं अव्यवस्थित रूप से इनका सेवन करने से बचने के लिए शिक्षित करना बेहद महत्वपूर्ण है। स्व-चिकित्सा और अनावश्यक उपयोग को रोकने के लिए व्यापक जन जागरूकता अभियान की जरूरत है।
  • वन हेल्थ दृष्टिकोण: ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण अपनाते हुए मानव, पशु एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य को जोड़ते हुए एक समग्र समाधान पर विचार किया जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण के तहत एंटीबायोटिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सभी स्तरों पर समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।
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