- जलीय ऑक्सीजन क्षरण (AD) को वैश्विक स्तर पर बढ़ती चिंता के रूप में देखा जा रहा है, और वैज्ञानिकों व पर्यावरणविदों ने इसे नई ग्रहीय सीमा (Planetary Boundary) के रूप में मान्यता देने की मांग की है।
- यह शब्द दुनिया भर के महासागरों और तटीय जल निकायों में घुले हुए ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट को दर्शाता है, जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं के साथ-साथ मानवीय गतिविधियों के कारण हो रहा है।
- यह केवल पारिस्थितिक मुद्दा नहीं है, बल्कि पृथ्वी की जीवन बनाए रखने की क्षमता और संतुलन से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।

जलीय ऑक्सीजन क्षरण क्या है?
- यह समुद्री और मीठे जल की पारिस्थितिकी प्रणालियों में ऑक्सीजन की सांद्रता में समग्र कमी को दर्शाता है।
- यह तब होता है जब ऑक्सीजन की खपत की दर उसकी पुनःपूर्ति की दर से अधिक हो जाती है।
- ऑक्सीजन की उपलब्धता में यह असंतुलन जलीय जीवों, पारिस्थितिकी तंत्रों और जैव-भू-रासायनिक चक्रों को प्रभावित करता है।
मुख्य विशेषताएं:
- यह तटीय जल और खुले समुद्र दोनों में होता है।
- इससे हाइपॉक्सिया (कम ऑक्सीजन स्तर) और एनोक्सिया (ऑक्सीजन की पूर्ण अनुपस्थिति) उत्पन्न होती है।
- यह समुद्री जैव विविधता में भारी गिरावट और पारिस्थितिकीय तनाव को जन्म देता है।
कारण:
1. वैश्विक तापवृद्धि (Global Warming):
- ग्रीनहाउस गैसों के कारण समुद्री सतह का तापमान बढ़ रहा है, जिससे समुद्री जल में ऑक्सीजन की घुलनशीलता घटती है।
- गर्म पानी में कम ऑक्सीजन घुलती है, जिससे समुद्री जीवों पर ऑक्सीजन तनाव बढ़ता है।
- समुद्री जल की परतों में स्तरीकरण बढ़ने से सतही ऑक्सीजन युक्त जल, गहरे जल में नहीं मिल पाता।
2. पोषक तत्व बहाव से यूट्रोफिकेशन (Eutrophication):
- कृषि में अत्यधिक उर्वरकों (नाइट्रोजन व फास्फोरस) के उपयोग से जल निकायों में पोषक तत्वों का बहाव होता है।
- इससे शैवाल की अत्यधिक वृद्धि (Algal Bloom) होती है, जो सड़ते समय ऑक्सीजन का अत्यधिक उपयोग करती है।
- इससे "डेड ज़ोन" बनते हैं, जहाँ अधिकांश समुद्री जीव नहीं जीवित रह सकते।
3. प्रदूषण और अपशिष्ट जल का निर्वहन:
- बिना उपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट से जल में जैविक पदार्थ बढ़ते हैं, जिन्हें विघटित करने में अधिक ऑक्सीजन लगती है।
- यह ऑक्सीजन की मांग को बढ़ाकर ऑक्सीजन क्षरण को और अधिक गंभीर बनाता है।
प्रभाव:
1. समुद्री डेड ज़ोन:
- वे क्षेत्र जहाँ ऑक्सीजन का स्तर इतना कम हो जाता है कि अधिकांश जीव नहीं बच पाते।
- उदाहरण: बंगाल की खाड़ी, मैक्सिको की खाड़ी, अरब सागर।
2. आवास संकुचन (Habitat Compression):
- मछलियाँ व अन्य जीव सतही ऑक्सीजन-समृद्ध क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं।
- इससे भीड़, प्रतिस्पर्धा और शिकारी-शिकार संबंधों में बदलाव आता है।
3. खाद्य जाल में विघटन:
- ऑक्सीजन की कमी फाइटोप्लवक और ज़ूप्लवक को प्रभावित करती है, जो खाद्य श्रृंखला की नींव हैं।
- इससे मत्स्य पालन, खाद्य सुरक्षा और प्रोटीन की वैश्विक आपूर्ति पर असर पड़ता है।
4. जलवायु फीडबैक का परिवर्तन:
- कम ऑक्सीजन वाले क्षेत्र कार्बन और नाइट्रोजन चक्रों को प्रभावित करते हैं।
- इससे महासागर की CO₂ अवशोषण क्षमता घटती है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और तेज हो सकते हैं।
जलीय ऑक्सीजन क्षरण और ग्रहीय सीमाएँ (Planetary Boundaries):
- ग्रहीय सीमाओं का ढाँचा स्टॉकहोम रेज़िलिएंस सेंटर के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया था।
- यह धरती की 9 प्रमुख प्रणालीगत प्रक्रियाएँ चिन्हित करता है जिनकी कुछ सुरक्षित सीमाएँ होती हैं, जिनके भीतर मानवता को कार्य करना चाहिए।
उद्देश्य:
- ऐसे पर्यावरणीय मोड़ों (tipping points) से बचना जो अपूरणीय क्षति का कारण बन सकते हैं।
- यह पृथ्वी के "सुरक्षित संचालन क्षेत्र" का मात्रात्मक मानदंड प्रदान करता है।
पहले से स्वीकृत 9 ग्रहीय सीमाएँ:
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जलवायु परिवर्तन
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नवीन इकाइयाँ (जैसे प्लास्टिक, सिंथेटिक रसायन)
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समतापमंडलीय ओजोन ह्रास
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वायुमंडलीय एरोसोल भार
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महासागर अम्लीकरण
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जैव-भू-रासायनिक प्रवाह (नाइट्रोजन व फास्फोरस)
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मीठे जल का उपयोग
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भूमि प्रणाली परिवर्तन
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जीवमंडल की अखंडता (Biosphere Integrity)
वर्तमान स्थिति:
- नवीनतम आकलनों के अनुसार, इनमें से 6 सीमाएँ पहले ही पार हो चुकी हैं:
- जलवायु परिवर्तन
- जीवमंडल की अखंडता
- जैव-भू-रासायनिक प्रवाह
- भूमि प्रणाली परिवर्तन
- नवीन इकाइयाँ
- मीठे जल का उपयोग
AD को 10वीं सीमा के रूप में जोड़ने का प्रस्ताव:
- वैज्ञानिकों का तर्क है कि जलीय ऑक्सीजन क्षरण एक स्वतंत्र, विशिष्ट प्रक्रिया है।
- यह अनेक पारिस्थितिक प्रणालियों को प्रभावित करता है और पृथ्वी की फीडबैक प्रणालियों (जैसे जलवायु नियंत्रण व महासागरीय रसायन) को बदलता है।
- इसलिए इसे 10वीं ग्रहीय सीमा के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।
भारतीय संदर्भ:
- बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में पहले से ही डेड ज़ोन विकसित हो रहे हैं, जो समुद्री जैव विविधता और तटीय आजीविका को प्रभावित कर रहे हैं।
- केरल, आंध्र प्रदेश और ओडिशा जैसे तटीय राज्य पोषक तत्व बहाव और महासागरीय गतिशीलता में बदलाव के कारण विशेष रूप से संवेदनशील हैं।
आगे की राह:
- पोषक तत्व प्रदूषण में कमी:
- उन्नत कृषि पद्धतियाँ और अपशिष्ट जल प्रबंधन अपनाना।
- जलवायु परिवर्तन शमन:
- समुद्री तापवृद्धि को रोकने के प्रयास।
- समुद्री निगरानी कार्यक्रम:
- ऑक्सीजन क्षरण की प्रवृत्तियों को ट्रैक करना।
- वैश्विक समझौतों में AD को शामिल करना:
- जैसे UNFCCC (जलवायु परिवर्तन) और CBD (जैव विविधता) में।
- वैश्विक सहयोग:
- समुद्री प्रदूषण नियंत्रण और अनुसंधान निधि के लिए साझेदारी।