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कृत्रिम बुद्धिमत्ता, गीता और आत्म का प्रश्न

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-4: भारत तथा विश्व के नैतिक विचारकों तथा दार्शनिकों के योगदान; मानवीय क्रियाकलापों में नीतिशास्त्र का सार तत्त्व)

परिचय

मानव सभ्यता के सबसे गहरे दार्शनिक प्रश्नों में से एक है- ‘मैं कौन हूँ’? यह प्रश्न केवल आध्यात्मिक या धार्मिक विमर्श तक सीमित नहीं है बल्कि आधुनिक तकनीकी युग में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) ने इसे नए सिरे से प्रासंगिक बना दिया है। हाल ही में ‘AI-पावर्ड भगवद्गीता प्रोजेक्ट’ के माध्यम से यह प्रश्न अधिक गहरा हुआ है कि क्या कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारी पहचान, आत्म एवं चेतना को समझ सकती है?

गीता के अनुसार आत्म

  • भगवद्गीता के अनुसार आत्मा शाश्वत, अविनाशी एवं ब्रह्म के साथ अभिन्न है।
  • ‘अहंकार’ और ‘इन्द्रिय अनुभव’ केवल अस्थायी भ्रांतियाँ हैं।
  • सच्चा आत्मज्ञान तभी है जब व्यक्त ‘मैं और तू’ के भेद से परे होकर सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय एकता का अनुभव करे।
  • गीता सिखाती है कि आत्मा कर्तृत्व और भोक्तृत्व से परे है; यह केवल शुद्ध साक्षी है।

गौतम बुद्ध के अनुसार आत्म

  • बुद्ध ने ‘अनात्म’ (Anatman) का सिद्धांत दिया। उनके अनुसार स्थायी आत्म का कोई अस्तित्व नहीं है।
  • जीवन पाँच स्कंधों (रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार एवं विज्ञान) का समुच्चय है जो निरंतर परिवर्तनशील हैं।
  • आत्म की खोज का समाधान बुद्ध ने ‘मध्य मार्ग’ और निर्वाण में बताया– जहाँ ‘मैं’ की धारणा समाप्त होकर करुणा एवं प्रज्ञा का उदय होता है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अनुसार आत्म

  • AI के पास आत्म नहीं है बल्कि केवल एल्गोरिदम एवं डाटा-प्रोसेसिंग की क्षमता है।
  • AI वस्तुनिष्ठ तथ्यों एवं पैटर्न को पहचान सकता है किंतु वह अनुभव की आंतरिक अनुभूति को नहीं समझ सकता है।
  • उदाहरण: AI लाल रंग की तरंगदैर्घ्य (650 नैनोमीटर) पहचान सकता है किंतु वह ‘लाल’ की मानवीय अनुभूति (रक्त, प्रेम या पीड़ा से जुड़ी स्मृतियाँ) नहीं समझ सकता है।
  • इस प्रकार AI चेतना का अनुकरण कर सकता है किंतु आत्मानुभूति से वंचित है।

AI-सक्षम गीता का प्रभाव 

  • सकारात्मक पक्ष:
    • युवाओं को गीता की शिक्षाएँ सरलता से उपलब्ध होंगी।
    • संवादात्मक (Interactive) शिक्षा से गहरे प्रश्न पूछने और समझने का अवसर मिलेगा।
  • नकारात्मक पक्ष:
    • AI आधारित ‘क्लोन’ पहचान और प्रामाणिकता के संकट को जन्म देगा।
    • यह भ्रम हो सकता है कि कृत्रिम स्वर ही ‘सत्य’ बोल रहा है।
    • व्यक्तिगत निजता, भावनाओं एवं आत्म की मौलिकता पर खतरा बढ़ सकता है।

नैतिकता और दर्शन

  • प्रामाणिकता (Authenticity):
    • क्या AI द्वारा उत्पन्न विचार वास्तव में मेरे विचार हैं या केवल नकल?
  • पहचान का संकट (Identity Crisis):
    • ‘क्लोन आवाज़’ और ‘वास्तविक मैं’ के बीच अंतर धुंधला हो जाता है।
  • कर्तव्य और जिम्मेदारी:
    • यदि AI गलत जानकारी दे तो उत्तरदायी कौन होगा?
  • दार्शनिक प्रश्न:
    • आत्म की खोज केवल जीवित अनुभव से संभव है, मशीन इसे प्रतिस्थापित नहीं कर सकती है।

AI संबंधी द्वंद

मानव अपने AI ‘क्लोन’ को लेकर दुविधा में हैं; एक ओर उन्हें इसमें सीखने का अवसर दिखता है, दूसरी ओर वे अपनी मौलिकता और पहचान खोने की चिंता करते हैं। यह द्वंद्व आधुनिक मानव की स्थिति को दर्शाता है, जहाँ सुविधा और अस्तित्वगत प्रश्न एक साथ टकराते हैं।

सिविल सेवक दृष्टिकोण

  • नवाचार को अपनाना : तकनीक का प्रयोग जनता तक ज्ञान पहुँचाने में सहायक है।
  • नैतिक संवेदनशीलता : नीति निर्माण में यह ध्यान रखना कि तकनीक से व्यक्ति की गोपनीयता एवं आत्मसम्मान न प्रभावित हो।
  • दार्शनिक दृष्टि : निर्णय लेते समय ‘प्रामाणिकता बनाम सुविधा’ का संतुलन साधना आवश्यक है।
  • मानव-केंद्रित दृष्टिकोण : तकनीक का उद्देश्य मानव जीवन को बेहतर बनाना है, न कि पहचान और आत्म का संकट उत्पन्न करना है।

निष्कर्ष:  ‘मैं कौन हूँ’ ?

गीता कहती है- आत्म शाश्वत है, अहंकार मात्र माया है। बुद्ध कहते हैं- आत्म स्थायी नहीं है, केवल एक परिवर्तनशील प्रवाह है। AI कहता है- आत्म का कोई डाटा-संचालित उत्तर नहीं है।
सत्य यह है कि ‘मैं कौन हूँ’? का उत्तर बाहरी मशीनों में नहीं, बल्कि आत्मचिंतन, अनुभव एवं करुणा में छिपा है। एक सिविल सेवक, एक नागरिक और एक मानव के रूप में हमारी जिम्मेदारी यही है कि हम तकनीक का उपयोग करते हुए भी आत्म व नैतिक मूल्यों की खोज न भूलें।

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