- जब पूरी दुनिया प्लास्टिक प्रदूषण के गंभीर संकट से जूझ रही है, तब भारत के नागालैंड राज्य के छोटे किसान पर्यावरणीय सततता की दिशा में एक प्रेरणादायक कदम उठा रहे हैं।
- इन किसानों ने पारंपरिक प्लास्टिक की थैलियों के स्थान पर कैसावा स्टार्च से बनी बायोडिग्रेडेबल थैलियों का उपयोग शुरू किया है, जो प्रदूषण के खिलाफ जमीनी नवाचार का उत्कृष्ट उदाहरण है।

बायोप्लास्टिक क्या होते हैं?
- बायोप्लास्टिक वे प्लास्टिक होते हैं जो या तो जैव-आधारित होते हैं, बायोडिग्रेडेबल होते हैं या दोनों।
- इन्हें नवीकरणीय जैविक स्रोतों से बनाया जाता है, जैसे:
- कैसावा स्टार्च
- मक्का (कॉर्न)
- गन्ना
- वनस्पति तेल
- सेल्यूलोज
- पारंपरिक प्लास्टिक पेट्रोलियम से बनते हैं और सैकड़ों वर्षों तक पर्यावरण में बने रहते हैं, जबकि बायोप्लास्टिक प्राकृतिक प्रक्रियाओं से टूट जाते हैं।
कैसावा आधारित समाधान
- नागालैंड में कैसावा एक प्रमुख कंदीय फसल है जो वहां प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। अब इसे बायोप्लास्टिक बैग बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।
- इन थैलियों की विशेषताएं:
- पूरी तरह कम्पोस्ट हो जाने योग्य
- गैर-विषैली
- पारंपरिक प्लास्टिक जैसी मजबूत और लचीली
- प्रक्रिया: कैसावा से स्टार्च निकाला जाता है और उसे पॉलिमर फिल्म में परिवर्तित कर पैकेजिंग और थैली निर्माण के लिए उपयोग किया जाता है।
बायोप्लास्टिक कैसे विघटित होते हैं?
- बायोप्लास्टिक की प्रमुख विशेषता है उनकी जैविक विघटन क्षमता।
ऑक्सीजन और नमी की उपस्थिति में जब ये प्लास्टिक सूक्ष्मजीवों (फफूंद, जीवाणु, यीस्ट) के संपर्क में आते हैं, तो ये टूटकर बन जाते हैं:
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂)
- जल (Water)
- बायोमास
इस प्रक्रिया से माइक्रोप्लास्टिक या हानिकारक रसायन नहीं बचते।
पर्यावरणीय एवं सामाजिक-आर्थिक लाभ
पर्यावरणीय लाभ:
- जमीन और जल स्रोतों में प्लास्टिक प्रदूषण में कमी
- नवीकरणीय संसाधनों से कम कार्बन उत्सर्जन
- माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण नहीं
- जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को समर्थन
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:
- स्थानीय किसानों और उद्यमियों के लिए रोजगार
- स्थानीय कृषि उत्पादन (कैसावा) का उपयोग
- सर्कुलर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा
- सामुदायिक नवाचार और भागीदारी
चुनौतियाँ Challenges
- लागत: बायोप्लास्टिक का निर्माण अभी भी पेट्रोलियम-आधारित प्लास्टिक से महंगा है।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी: औद्योगिक कम्पोस्टिंग की सुविधाएं अभी सभी क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं हैं।
- जन-जागरूकता: अधिकांश लोग बायोप्लास्टिक के सही निपटान के तरीकों से अनभिज्ञ हैं।
- नियामक मानक: प्रमाणन और लेबलिंग व्यवस्था अभी विकासशील स्थिति में है।
बायोप्लास्टिक बनाम पारंपरिक प्लास्टिक
विशेषता
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बायोप्लास्टिक
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पारंपरिक प्लास्टिक
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स्रोत
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नवीकरणीय (कैसावा, मक्का, गन्ना)
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जीवाश्म ईंधन (पेट्रोलियम, गैस)
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जैव-अपघटन
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हाँ (विशिष्ट परिस्थितियों में)
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नहीं (सैकड़ों वर्षों तक टिके रहते हैं)
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कार्बन उत्सर्जन
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कम
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अधिक
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पारिस्थितिक प्रभाव
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न्यूनतम
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हानिकारक
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अंतिम प्रबंधन
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कम्पोस्टिंग द्वारा नष्ट किया जा सकता है
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लैंडफिल या जलाने की प्रक्रिया
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वैश्विक महत्व और नीति पर प्रभाव
- भारत की प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली (संशोधित 2021) और सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर चरणबद्ध प्रतिबंध ऐसे बायोप्लास्टिक नवाचारों को पूरी तरह समर्थन देते हैं।
- नागालैंड का मॉडल भारत और अन्य देशों के लिए एक प्रेरक उदाहरण बन सकता है।
- यह पहल समर्थन करती है:
- SDG 13 – जलवायु कार्रवाई
- SDG 12 – सतत उपभोग और उत्पादन
- SDG 14 – जल-जीवन की रक्षा
एक हरित भविष्य की ओर कदम
- नागालैंड के छोटे किसानों द्वारा कैसावा आधारित बायोप्लास्टिक अपनाना केवल एक पर्यावरणीय पहल नहीं, बल्कि यह ग्रामीण नवाचार, पारिस्थितिक जिम्मेदारी और आशा का प्रतीक है।
- यदि इस पहल को नीतिगत समर्थन, प्रौद्योगिकीय निवेश और सार्वजनिक जागरूकता मिलती है, तो यह भारत को प्लास्टिक-मुक्त और जलवायु-संवेदनशील भविष्य की ओर ले जा सकती है।