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शरीर में रक्त ,रक्त परिसंचरण तंत्र एवं रक्त समूह

रक्त (Blood)क्या है ?

  • रक्त शरीर में एक तरल संयोजी ऊतक (liquid connective tissue) है जो ऑक्सीजन, पोषक तत्व, हार्मोन तथा अपशिष्ट उत्पादों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाने और वहाँ से लाने का कार्य करता है।

रक्त के प्रमुख कार्य:

  • पाचन तंत्र से पोषक तत्वों को शरीर के अन्य भागों तक पहुँचाना।
  • फेफड़ों से ऑक्सीजन को कोशिकाओं तक ले जाना।
  • कोशिकाओं से कार्बन डाइऑक्साइड व अपशिष्ट को हटाने में मदद करना।
  • रोगाणुओं से रक्षा करना (प्रतिरक्षा कार्य)।
  • शरीर में थक्का बनाकर रक्तस्राव को रोकना।

रक्त का संघटन (Composition of Blood)

रक्त दो मुख्य घटकों से मिलकर बना होता है:

1. प्लाज्मा (Plasma):

  • यह रक्त का तरल भाग होता है और इसका रंग भूसा जैसा (straw-coloured) होता है।
  • प्लाज्मा में लगभग 90-92% जल, 6-8% प्रोटीन (जैसे फाइब्रिनोजन, ग्लोब्युलिन, एलब्युमिन) होते हैं।
  • इसमें लवण (Na⁺, K⁺, Ca⁺⁺ आदि), ग्लूकोज़, अमीनो अम्ल, वसा और हार्मोन भी पाए जाते हैं।
  • प्लाज्मा के थक्का बनाने वाले घटकों को हटा देने पर इसे सीरम (serum) कहा जाता है।

2. निर्मित तत्व (Formed Elements):

  • ये रक्त में मौजूद ठोस कोशिकाएँ हैं, जो कुल रक्त का लगभग 45% भाग बनाती हैं। इसमें शामिल हैं:

लाल रक्त कोशिकाएँ (Red Blood Cells - RBC):

  • इन्हें एरिथ्रोसाइट्स भी कहते हैं।
  • इनमें हीमोग्लोबिन नामक लौह युक्त लाल वर्णक होता है जो ऑक्सीजन के साथ जुड़कर उसे शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुँचाता है।
  • इनका औसत जीवनकाल 120 दिन होता है और नष्ट होने पर इन्हें तिल्ली (spleen) में नष्ट किया जाता है।

 श्वेत रक्त कोशिकाएँ (White Blood Cells - WBC):

  • इन्हें ल्यूकोसाइट्स कहते हैं।
  • ये रोग प्रतिरोधक प्रणाली का हिस्सा होती हैं और शरीर की रक्षा करती हैं।
  • दो प्रकार की होती हैं: ग्रैन्युलोसाइट्स (न्यूट्रोफिल, ईओसिनोफिल, बेसोफिल) और एग्रैन्युलोसाइट्स (लिम्फोसाइट्स, मोनोसाइट्स)।
  • न्यूट्रोफिल सबसे अधिक पाए जाते हैं जबकि बेसोफिल सबसे कम।

प्लेटलेट्स (Platelets):

  • इन्हें थ्रॉम्बोसाइट्स भी कहते हैं।
  • ये मेगाकैरियोसाइट्स नामक कोशिकाओं से उत्पन्न होते हैं।
  • प्लेटलेट्स थक्का बनाने में सहायक होते हैं, जिससे रक्तस्राव रुकता है।

रक्त वाहिकाएँ (Blood Vessels)

रक्त वाहिकाएँ शरीर के विभिन्न भागों में रक्त का संचार सुनिश्चित करती हैं। ये मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं:

हृदय (Heart): रक्त को पंप करता है

धमनी (Arteries):

  • यह हृदय से ऑक्सीजन युक्त रक्त को शरीर के विभिन्न भागों में ले जाती हैं।
  • इनकी दीवारें मोटी और लचीली होती हैं क्योंकि इनमें उच्च दबाव का रक्त प्रवाहित होता है।
  • पल्मोनरी धमनी एकमात्र अपवाद है जो हृदय से कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रक्त को फेफड़ों में ले जाती है।

शिरा (Veins):

  • यह शरीर के अंगों से कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रक्त को हृदय की ओर वापस लाती हैं।
  • इनकी दीवारें पतली होती हैं और इनमें वाल्व पाए जाते हैं जो रक्त को एक ही दिशा में बहने देते हैं।
  • पल्मोनरी शिरा एकमात्र अपवाद है जो ऑक्सीजन युक्त रक्त को फेफड़ों से हृदय तक लाती है।

केशिकाएँ (Capillaries):

  • ये धमनी और शिरा के बीच संपर्क स्थापित करती हैं।
  • इनकी दीवारें अत्यंत पतली होती हैं जिससे गैसों, पोषक तत्वों और अपशिष्टों का आदान-प्रदान संभव हो पाता है।

रक्त का थक्का बनना (Blood Clotting)

थक्का कैसे बनता है?

  • जब किसी अंग पर चोट लगती है, तो प्लेटलेट्स सक्रिय हो जाते हैं और थ्रॉम्बोप्लास्टिन नामक एंजाइम छोड़ते हैं।
  • यह एंजाइम प्रोथ्रॉम्बिन को सक्रिय करके थ्रॉम्बिन बनाता है।
  • थ्रॉम्बिन फाइब्रिनोजेन को फाइब्रिन में परिवर्तित कर देता है, जो एक जाल जैसा ढाँचा बनाता है और रक्त कोशिकाओं को फँसा कर थक्का बना देता है।
  • इस प्रक्रिया में कैल्शियम आयन (Ca²⁺) की विशेष भूमिका होती है।

लसीका या ऊतक द्रव (Lymph / Tissue Fluid)

जब रक्त केशिकाओं से जल और छोटे अणु ऊतक अंतराल में निकलते हैं, तो यह द्रव ऊतक द्रव कहलाता है।

लसीका तंत्र की विशेषताएँ:

  • यह द्रव एक विशेष तंत्र (Lymphatic System) द्वारा एकत्र किया जाता है जिसे लसीका वाहिकाएँ कहते हैं।
  • यह अंततः रक्त में वापस चला जाता है।
  • लसीका में विशेष प्रकार की लसीका कोशिकाएँ (Lymphocytes) होती हैं जो शरीर की प्रतिरक्षा में सहायक होती हैं।
  • आंतों में वसा (fat) का अवशोषण भी लसीका द्वारा ही होता है।

सारांश (Summary)

घटक

कार्य

प्लाज्मा

पोषक तत्वों, हार्मोन, लवणों का परिवहन

RBC

ऑक्सीजन का परिवहन

WBC

रोगों से रक्षा

प्लेटलेट्स

थक्का बनाना

धमनी

हृदय से रक्त बाहर ले जाना

शिरा

शरीर से रक्त हृदय की ओर लाना

लसीका

ऊतक द्रव का परिवहन, वसा का अवशोषण, प्रतिरक्षा

रक्त समूह (Blood Groups):

  • रक्त समूह, लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) की सतह पर पाए जाने वाले विशेष एंटीजन (Antigen) और प्लाज्मा में मौजूद एंटीबॉडी (Antibody) की उपस्थिति या अनुपस्थिति पर आधारित वर्गीकरण है।
  • यह वर्गीकरण रक्त संक्रमण (Blood transfusion), अंग प्रत्यारोपण (Organ transplantation) और गर्भावस्था जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

रक्त समूहों का वर्गीकरण (Classification of Blood Groups)

ABO प्रणाली (ABO System)

रक्त समूह

RBC पर एंटीजन

प्लाज्मा में एंटीबॉडी

विशेषता

A

A

Anti-B

-

B

B

Anti-A

-

AB

A और B

कोई नहीं

सार्वभौमिक ग्राही (Universal recipient)

O

कोई नहीं

Anti-A और Anti-B

सार्वभौमिक दाता (Universal donor)

Rh फैक्टर (Rh Factor)

  • Rh+ (Positive): Rh (D) एंटीजन की उपस्थिति
  • Rh− (Negative): Rh (D) एंटीजन की अनुपस्थिति

इस तरह कुल 8 रक्त प्रकार बनते हैं: A+, A−, B+, B−, AB+, AB−, O+, O−

रक्त समूह के घटक (Components of Blood Group)

  • एंटीजन (Antigen):
    • RBC की सतह पर पाए जाते हैं।
    • रक्त समूह A में A एंटीजन, B में B एंटीजन, AB में दोनों, और O में कोई नहीं होता।
    • Rh एंटीजन D की उपस्थिति/अनुपस्थिति Rh+ या Rh− को निर्धारित करती है।
  • एंटीबॉडी (Antibody):
    • प्लाज्मा में पाई जाने वाली प्रोटीन होती हैं।
    • यह असंगत रक्त समूह के एंटीजन पर हमला करती हैं।
  • प्लाज्मा (Plasma):
    • रक्त का तरल भाग जो एंटीबॉडी, हार्मोन, पोषक तत्व आदि को वहन करता है।
  • लाल रक्त कोशिकाएँ (RBCs):
    • ऑक्सीजन वहन करती हैं और इन्हीं पर रक्त समूह को निर्धारण करने वाले एंटीजन पाए जाते हैं।

हाल ही में खोजे गए रक्त समूह (Recently Discovered Blood Groups)

नाम

विवरण

Langereis (Lan)

Lan एंटीजन की उपस्थिति/अनुपस्थिति

Junior (Jr)

Jr एंटीजन आधारित, कुछ विशेष जातीय समूहों में अधिक

Vel

Vel-negative व्यक्ति को विशेष रक्त की आवश्यकता

Er

2022 में खोजा गया, PIEZO1 प्रोटीन पर आधारित

FORS

Forssman एंटीजन आधारित, अत्यंत दुर्लभ

  • महत्त्व:
    • इन समूहों की पहचान से दुर्लभ रक्त समूहों वाले व्यक्तियों को सुरक्षित संक्रमण संभव होता है।
    • व्यक्तिगत चिकित्सा में उपयोग बढ़ रहा है।
  • बॉम्बे रक्त समूह (Bombay Blood Group): 
    • इसे hh रक्त समूह भी कहते हैं।
    • इसमें H एंटीजन की अनुपस्थिति होती है।
    • सामान्यतः O समूह में H एंटीजन पाया जाता है, लेकिन hh में नहीं।
  • पहचान:
    • 1952 में डॉ. वाई. एम. भेंडे द्वारा मुंबई में खोजा गया।
    • विश्व में यह लगभग 1/4,000,000 लोगों में पाया जाता है, परंतु भारत में यह 1/7,600 से 10,000 लोगों में देखा गया है।
  • महत्त्व:
    • hh समूह वाले व्यक्ति को केवल hh समूह से ही रक्त दिया जा सकता है।
    • A, B, AB या O समूह का रक्त देने पर गंभीर प्रतिक्रिया हो सकती है।
    • यह रक्त समूह अत्यंत दुर्लभ होने के कारण रक्त बैंक में संग्रहित नहीं रहता।

रक्त समूह अध्ययन का भविष्य 

  • दुर्लभ रक्त समूहों की पहचान के लिए आधुनिक जेनेटिक तकनीक का विकास आवश्यक है।
  • रेयर ब्लड बैंकों, व्यक्तिगत चिकित्सा, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
  • Bombay Blood Group जैसे मामलों में विशेष जागरूकता और आपातकालीन नेटवर्क की जरूरत है।
  • नवीन शोध: आनुवंशिकी आधारित रक्त समूह की पहचान।
  • निजीकृत उपचार: रोग जोखिम के आधार पर दवा और उपचार।
  • दुर्लभ रक्त प्रकार के लिए बायोबैंक: hh या Jr− रक्त के लिए विशेष भंडारण।
  • प्रसव और गर्भावस्था में सावधानी: Rh असंगति से बचाव।

रक्त से जुड़े रोग (Blood Disorders):

रोग

विवरण

एनीमिया

हीमोग्लोबिन की कमी

हीमोफीलिया

थक्का न बनने की अनुवांशिक समस्या

ल्यूकीमिया

WBCs का असामान्य रूप से बढ़ना (ब्लड कैंसर)

थैलेसीमिया

असामान्य हीमोग्लोबिन संरचना (अनुवांशिक)

सिकल सेल एनीमिया

RBCs की अर्धचंद्राकार आकृति, ऑक्सीजन परिवहन में समस्या

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