कैबिनेट ने "वंदे मातरम" की 150वीं वर्षगांठ के राष्ट्रव्यापी समारोह को मंजूरी दी
चर्चा में क्यों ?
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय गीत"वंदे मातरम"की 150वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रव्यापी समारोहों को मंजूरी दी है, ताकि इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का सम्मान किया जा सके।
यह निर्णय भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में इस गीत की भूमिका और इसकी स्थायी सांस्कृतिक विरासत को उजागर करता है।
उत्पत्ति और ऐतिहासिक यात्रा
रचना और प्रकाशन
“वंदे मातरम” को बंकिम चंद्र चटर्जी ने संस्कृत में रचित किया।
यह पहली बार 1882 में उपन्यास आनंदमठ में प्रकाशित हुआ।
राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में उदय
इसका पहला प्रमुख सार्वजनिक प्रदर्शन 1896 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा हुआ।
उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष के दौरान यह गीत स्वतंत्रता सेनानियों का एक नारा बन गया।
कानूनी और प्रतीकात्मक स्थिति
भारत का राष्ट्रगान जन गण मन है, लेकिन संविधान सभा ने "वंदे मातरम" को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया।
यह राष्ट्रगान के समान प्रतीकात्मक महत्व रखता है, लेकिन संविधान में राष्ट्रीय गीत के लिए कानूनी अनिवार्यता नहीं है।
यह संतुलन बहुलवादी समाज में भावनात्मक और ऐतिहासिक महत्व के लिए सम्मान को दर्शाता है।
महत्व और प्रतीकवाद
स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक: उपनिवेशकाल में यह गीत स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एकजुट मंत्र था।
सांस्कृतिक एकता:यह गीत मातृभूमि के प्रति श्रद्धा और सभ्यतागत भावनाओं को प्रदर्शित करता है।
चयनात्मक प्रयोग:केवल पहले दो छंदों का सार्वजनिक गायन किया जाता है, क्योंकि अन्य छंदों में धार्मिक चित्रण बहु-धार्मिक समाज में विभाजनकारी हो सकते हैं।
राज्य की प्रतिक्रियाएँ:कुछ क्षेत्रों में गीत के उपयोग पर बहस या प्रतिरोध हुआ है, जिसके कारण वैकल्पिक राज्य गान का प्रयोग भी देखा गया।
150वें समारोह में क्या शामिल है
देशव्यापी कार्यक्रम, शैक्षिक कार्यक्रम और सार्वजनिक स्मरणोत्सव आयोजित किए जाएंगे।
समारोह के दौरान भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गीत की भूमिका और इसके महत्व को उजागर किया जाएगा।