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केंद्र द्वारा कुछ कीटनाशकों पर प्रतिबंध: प्रभाव, आकलन और विकल्प

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी सम्बंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 3: विभिन्न भागों में प्राथमिक व अन्य क्षेत्र के उद्योगों को स्थापित करने के लिये ज़िम्मेदार कारक, कृषि उत्पाद: सम्बंधित विषय और बाधाएँ, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार कुछ अत्यधिक घातक कीटनाशकों पर काफी समय से लम्बित प्रतिबंध को जल्द ही अंतिम रूप देने की तैयारी में है, जिसके तहत इसके निर्माण, बिक्री और आयात पर प्रतिबंध लगाया जाना है।

पृष्ठभूमि

भारत में, व्यापक रूप से प्रयोग किये जाने वाले 27 कीटनाशकों (Pesticides) पर प्रतिबंध की तैयारी अंतिम दौर में है। इन कीटनाशकों में से 12 कीटनाशी (Insecticides), 8 कवकनाशी (Fungicides) और 7 शाकनाशी (Herbicides) शामिल हैं। केंद्र सरकार ने पहले ही मनुष्यों और जानवरों के लिये गम्भीर जोखिम पैदा करने के आधार पर इनके निर्माण व बिक्री पर प्रतिबंध लगाने हेतु एक मसौदा आदेश जारी किया है। सरकार द्वारा समीक्षा के लिये चुने गए 66 विवादास्पद कीटनाशकों में से इन 27 कीटनाशकों का चुनाव किया गया है। इन विवादास्पद कीटनाशकों की समीक्षा हेतु जुलाई 2013 में अनुपम वर्मा की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। इस समिति को ऐसे कीटनाशकों की समीक्षा का कार्य सौंपा गया था, जिन्हें एक या एक से अधिक देशों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है या उनके प्रयोग पर रोक लगा दी गई है परंतु भारत में उसका प्रयोग जारी रहा हो। हालाँकि, उद्योग जगत इस कदम से खुश नहीं है और निर्माताओं का कहना है कि ये उत्पाद इतने हानिकारक नहीं हैं कि इनको प्रतिबंधित किया जाए। इस संदर्भ में, इन प्रतिबंधों की प्रभावशीलता के साथ-साथ इनके कारण, प्रभाव और अन्य विकल्पों की पहचान का परीक्षण किया जाना आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि पंजाब में सर्वाधिक मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है।

भारत में कीटनाशकों का विनियमन

  • भारत ने केरल में वर्ष 1958 में एक बड़ी कीटनाशक विषाक्तता दुर्घटना के बाद कीटनाशक अधिनियम को वर्ष 1968 में लागू करके कीटनाशकों को विनियमित करना शुरू किया।
  • इस क़ानून के प्रवर्तन होने से पूर्व तक कथित तौर पर 71 कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा था और जिनको इस अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत माना गया था।
  • यदि नियामक शासन प्रत्येक पाँच वर्ष या किसी एक निश्चित अवधि में पंजीकृत कीटनाशकों के बारे में समीक्षा करने की प्रणाली विकसित कर लेता है, तो भारत को उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने या उसके उत्पादन को जारी रखने के लिये अन्य देशों के डाटा पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।
  • इन कीटनाशकों में से कई के सम्बंध में विशेष प्रकार के आवश्यक सुरक्षा डाटा की कमी को अतीत में कई समितियों द्वारा दोहराया गया है। इस प्रकार के डाटा के लिये उद्योग जगत पर निर्भरता चिंताजनक है।

कीटनाशकों का प्रयोग: देश और पंजाब का तुलनात्मक अध्ययन

  • देश के क्षेत्रफल में पंजाब का हिस्सा केवल 1.53% है जबकि कीटनाशकों के उपयोग में वर्ष 2018-19 में इसका हिस्सा 9.2% था और वर्ष 2019-20 में इसमें कुछ कमी देखी गई फिर भी यह 8% से अधिक था।
  • पादप संरक्षण निदेशालय, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, देश में रासायनिक कीटनाशकों की खपत वर्ष 2019-20 में 60,599 मीट्रिक टन (MT) थी, जबकि पंजाब में यह लगभग 4,930 मीट्रिक टन थी।
  • पंजाब में, कीटनाशक की खपत में कमी हो रही है फिर भी अभी यह अत्यधिक है। पंजाब में वर्ष 2014-15 में 5,689 मीट्रिक टन कीटनाशकों का उपयोग किया गया, जो उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद तीसरे स्थान पर था परंतु इन दोनों राज्यों का क्षेत्रफल पंजाब की तुलना में लगभग 6 गुना अधिक है।
  • इसके अलावा, देश में प्रयुक्त होने वाले कुल जैव कीटनाशकों का लगभग 3% पंजाब में प्रयोग किया जाता है। उर्वरकों के प्रति हेक्टेयर उपयोग के मामले में भी पंजाब देश में शीर्ष पर है।

प्रतिबंध का कारण

  • वर्ष 2018 में ही सरकार द्वारा समीक्षा के लिये 66 कीटनाशकों में से 18 को प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त, छह अन्य कीटनाशकों की समीक्षा की जा रही है, जबकि शेष 15 अब तक उपयोग के लिये सुरक्षित पाए गए हैं।
  • प्रतिबंधित किये जाने वाले इन कीटनाशकों में, मोनोक्रोटोफॉस, एसीफेट, कार्बोफ्यूरान, 2,4-डी और कार्बेन्डाज़िम जैसे प्रचालित अणु शामिल हैं। इन प्रदूषकों को जल निकायों के साथ-साथ मृदा व भूमिगत जल को प्रदूषित करने वाला पाया गया है।
  • कीटनाशकों से मनुष्यों और जानवरों के साथ-साथ मधुमक्खियों के लिये भी स्वास्थ्य सम्बंधी खतरे पैदा होते हैं, जो पौधों के परागण में मदद करती हैं। साथ ही, इन कीटनाशकों से भारत के सतत विकास की प्रतिबद्धता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
  • कई कीटनाशक तीव्र विषाक्तता के संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्ग-I कीटनाशक (‘बेहद खतरनाक’ और ‘उच्च खतरनाक’) हैं। इनमें से कुछ को सम्भावित रूप से मानव पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले रसायन के रूप में वर्गीकृत किया जाता है तो कुछ को मधुमक्खियों, मछली, केंचुए आदि पर उनकी विषाक्तता के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

प्रभाव

  • भारत फ़सल देखभाल संघ के अध्यक्ष के अनुसार, ये सभी कीटनाशक अत्यधिक प्रभावी हैं। भारत लगभग 20,000 करोड़ रुपये के कीटनाशकों का निर्यात अमेरिका सहित कई देशों को करता हैं, जिसमें से इन 27 कीटनाशकों का हिस्सा 70% हैं।
  • कुछ लोगों का मानना है कि इन रसायनों पर प्रतिबंध लगाने से सरकार, पंजाब और राजस्थान सहित अन्य सीमावर्ती इलाकों में फैल रहे टिड्डियों के हमले से नहीं लड़ पाएगी। अगर इन कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो फसल के नुकसान से किसानों की आय पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।
  • इन प्रतिबंधों के कारण आर्थिक विकास की गति के साथ-साथ उद्योग व बाजार भी प्रभावित होंगे, विशेषकर कोविड -19 महामारी की स्थिति में।
  • इससे मातृभूमि व मृदा की रक्षा और कृषि-रसायनों के उपयोग को कम करने के प्रयास को भी बल मिलेगा।

अन्य विकल्प

  • इन कीटनाशकों का उपयोग लगभग सभी फसलों- चावल, गेहूँ, मक्का, गन्ना, कपास, तिलहन, विभिन्न सब्जियों, फलों आदि में किया जाता है। वर्तमान में, इन 27 कीटनाशकों में से 9 के लिये कोई अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं है।
  • इस कारण से, फसलों को कीटों से बचाने और कीटनाशकों के प्रयोग को कम करने के लिये तीन प्रकार के उपलब्ध विकल्पों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • इसके लिये पहला विकल्प ‘एकीकृत कीट प्रबंधन’ (आई.पी.एम.) तकनीक है, जो प्रभावी लागत यांत्रिक विधियों का उपयोग कर रहा है।
  • दूसरा विचार जैव-कीटनाशकों के प्रयोग का है। नीम आधारित जैव-कीटनाशक पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ ही लागत-वार और उपज-वार बहुत प्रभावी हैं।
  • तीसरे विकल्प के तौर पर एक नए प्रकार का ‘आणविक लक्ष्य-विशेषीकृत निम्न विषाक्त कीटनाशक’ का प्रयोग किया जा सकता है। हालाँकि, इसका उपयोग बेहद कम किया जाता है। साथ ही, यह थोड़ा महँगा विकल्प भी है।
  • इसके अलावा, सही प्रकार के बीज और सटीक तरह से सिंचाई भी फसलों से कीटों को दूर रखने में सहायक सिद्ध हो सकती है। साथ ही, शाकनाशी का छिड़काव करने के बजाय इसके लिये श्रमबल का प्रयोग किया जा सकता है।
  • नियमित निगरानी, जाँच और चौकसी कीटों के हमलों के विरुद्ध सहायता प्रदान करती है। इससे प्रारम्भिक अवस्था में ही कीटों व कीड़ों की उपस्थिति का पता लगाया जा सकता है, जो इन कीटों की उपस्थिति के आर्थिक थ्रेशहोल्ड स्तर (ETL) को पार करने से पहले ही समस्या के समाधान में मदद करता है।

एकीकृत कीट प्रबंधन (आई.पी.एम.) तकनीक

I. आई.पी.एम. के अंतर्गत, कीटों के नियंत्रिण हेतु मान्यतया हाथ से चुनाव करना (Hand-Picking), प्रकाश जाल (Light Traps), फेरोमोन जाल (Pheromone Traps), चिपचिपे पदार्थो से युक्त जाल (Sticky Traps) और गोंद लगी तक्तीयों (Glue Boards) आदि का उपयोग किया जाता है।
II. प्रकाश जाल में, खेतों के निकट रात के दौरान कुछ समय (एक घंटे) के लिये एक बल्ब जला देते हैं और इसके अंदर पानी से भरा एक खुले मुँह वाला बर्तन रखते हैं, जिसमें 20 से 30 मिलीलीटर डीज़ल या पेट्रोल मिलाया जाता है।
III. रात में कीट आकर्षित होकर प्रकाश के पास आ जाते हैं और फिर बल्ब को बंद कर दिया जाता है। इस प्रकार, आकर्षित हुए कीट डीजल/पेट्रोल मिश्रित पानी में गिरकर मर जाते हैं।
IV. काफी किफायती माना जाने वाला फेरोमोन जाल कीट नियंत्रण हेतु जनन प्रक्रिया में रुकावट पैदा करता हैं। इस तरह के जाल धीरे-धीरे कृत्रिम आकर्षकों को मुक्त करते हैं जो एक ही प्रजाति के कीटों का पता लगाने में मदद करते हैं।
V. आई.पी.एम. का उद्देश्य मिट्टी और पर्यावरण को जहरीले तत्त्वों से बचाना है।

प्रभावशीलता

  • ‘कीट और रोग प्रबंधन प्रथाओं’ को भारतीय कृषि में कीट प्रबंधन के समकालीन विज्ञान के अनुसार स्वयं को बदलना होगा।
  • कीट प्रबंधन के मामले में आधुनिक विज्ञान के बाद की मान्यता की कमी है जिसके कारण उद्योग समूह यह तर्क देते है कि इसके ‘विकल्प’ महंगे हैं। उद्योग समूह वास्तविक कृषि-पारिस्थितिक, सस्ती, सुरक्षित व कृषक-नियंत्रित विकल्पों के बारे में बात नहीं करते हैं।
  • कीटनाशकों के प्रयोग से पूर्व जैव-सुरक्षा (मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये सुरक्षा) सम्बंधी आकलन और प्रभावकारिता का मूल्यांकन किया जाना चाहिये। कई खाद्य आपूर्तियों में कीटनाशकों के अवशेषों के कारण निर्यात किये गए खेप को खारिज कर दिया जाता है। साथ ही, ऐसे अवशेष भारत की घरेलू खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में भी पाए जाते हैं।
  • जैव-कीटनाशकों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये क्योंकि अभी भी किसानों के पास विभिन्न प्रकार की कीटनाशक प्रणालियाँ उपलब्ध हैं।

आगे की राह

इन कीटनाशकों के हानिकारक प्रभावों के बारे में भारत सहित अन्य जगहों से कई उदाहरण मिले हैं। हालाँकि, उद्योग जगत की पैरवी के कारण इन प्रतिबंधों की अधिसूचना में देरी की गई है। निर्यात के लिये सुविधानुसार इन कीटनाशकों के निर्माण की अनुमति दी जा सकती है। अंतत: बाजार में इनके शेयर और आर्थिक विकास के आधार पर विषाक्त पदार्थों पर प्रतिबंध के फैसले नहीं किये जाने चाहिये। महत्त्वपूर्ण रूप से, घातक कीटनाशकों के निरंतर उपयोग के कारण नागरिकों के जीवन के अधिकार को दांव पर लगाकर बाजार को प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिये।

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