New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 5 May, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 11 May, 5:30 PM Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back GS Foundation (P+M) - Delhi: 5 May, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 11 May, 5:30 PM Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back

क्लाउड सीडिंग

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

दिल्ली मंत्रिमंडल ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक महत्त्वाकांक्षी एवं वैज्ञानिक पहल के तहत ‘मेघ बीजन’ (Cloud Seeding) या ‘कृत्रिम वर्षा’ (Artificial Rain) परीक्षणों को स्वीकृति दी है। 

हालिया निर्णय से संबंधित प्रमुख बिंदु  

  • उद्देश्य एवं संभावित प्रभाव : दिल्ली में वायु प्रदुषण में सुधार करने के लिए पारंपरिक उपायों के साथ-साथ तकनीकी समाधानों की आवश्यकता है। क्लाउड सीडिंग इस दिशा में एक अभिनव प्रयोग है जिसका उद्देश्य निम्नलिखित है:
    • वायुमंडल में उपस्थित महीन कणों (PM 2.5 एवं PM 10) को वर्षा द्वारा धरातल पर लाना
    • वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में तात्कालिक सुधार लाना
    • भविष्य में स्थायी समाधान के लिए वैज्ञानिक मूल्यांकन उपलब्ध कराना
  • परीक्षण एवं प्रस्तावित व्यय : दिल्ली सरकार ने तीन करोड़ इक्कीस लाख रुपए की लागत से पांच क्लाउड-सीडिंग परीक्षणों को मंजूरी दी है। इन परीक्षणों पर दो करोड़ पचहत्तर लाख रुपए का अनुमानित खर्च है, जिसमें प्रत्येक क्लाउड सेटिंग की लागत 55 लाख रुपए होगी।
    • पहला परीक्षण मई से जून 2025 के बीच होने की संभावना है और यह लगभग 100 वर्ग किमी. क्षेत्र (विशेष रूप से दिल्ली के बाहरी इलाकों) को कवर करेगा।
  • क्रियान्वयन : इन परीक्षणों को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर (IIT Kanpur) के सहयोग से क्रियान्वित किया जाएगा। 
    • यह संस्थान विमान संचालन व रसायन वितरण की निगरानी के साथ-साथ वैज्ञानिक मॉडलिंग, योजना निर्माण एवं पूरे अभियान की लॉजिस्टिक्स की भी जिम्मेदारी निभाएगा।

क्लाउड सीडिंग के बारे में 

  • यह एक मौसम संशोधन तकनीक है जो बादलों में संतृप्तता लाने में सहायक पदार्थों का वायु में प्रसार करके वर्षा में वृद्धि करती है। इस कृत्रिम विधि का प्रयोग इच्छानुसार वर्षा के लिए किया जाता है। 
    • सर्वप्रथम 1940 के दशक में अमेरिका ने कुछ विशेष क्षेत्रों में वर्षा कराने के लिए इस विधि का प्रयोग किया था।
  • यह प्रक्रिया विमान या स्थल-आधारित जनरेटर का उपयोग करके मौसम विश्लेषण के माध्यम से उपयुक्त बादलों की पहचान करने से शुरू होती है। 
  • इसके बाद सीडिंग एजेंट या कणों को लक्षित बादलों में छोड़ा जाता है जो जल की बड़ी बूंदों के निर्माण में मदद करते हैं जिससे वर्षा में वृद्धि होती है।
  • क्लाउड सीडिंग के लिए बीजकारक पदार्थ (सीडिंग एजेंट) के रूप में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या शुष्क बर्फ (ठोस कार्बन डाइ-ऑक्साइड) जैसे लवण व अमोनियम नाइट्रेट और यूरिया से मुक्त द्रावक प्रयोग में लाए जाते हैं। 
  • इन लवणों का प्रसार अतिरिक्त नाभिक प्रदान करने के लिए किया जाता है जिसके चारों ओर अधिक जलवाष्प की बूंदें बन सकती हैं।

प्राकृतिक वर्षा

  • जलवाष्प छोटे कणों के चारों ओर संघनित होकर बूंदें बनाकर बादल का निर्माण करती हैं। 
  • जब ये बूंदें आपस में टकराती हैं तो इनका आकार बढ़ता हैं और जैसे ही ये भारी हो जाती हैं तथा बादल संतृप्त हो जाते हैं तो वर्षा होने लगती है।

क्लाउड सीडिंग की विधियाँ या प्रकार

  • हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग : इस विधि में बादलों के निचले हिस्सों में फ्लेयर्स या विस्फोटकों के माध्यम से लवणीय रसायन का प्रसार करके जलवाष्प के संघनन बढ़ाया जाता है। इसके बाद लवण के आकार में वृद्धि होती है और वे संघनित होते हैं तथा बादलों का निर्माण करते हैं। इस विधि में प्राय: टेबल साल्ट का उपयोग किया जाता है। 
    • दक्षिण अफ्रीका व मैक्सिको जैसे देशों द्वारा किए गए शोध में हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग के सकारात्मक परिणामों की पुष्टि हुई है।
  • स्टैटिक (स्थैतिक) क्लाउड सीडिंग : इसे सबसे सामान्य विधि कहा जाता है जिसमें सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और शुष्क बर्फ जैसे रसायनों को विमान या भूमि पर स्थित उपकरणों का उपयोग करके बादलों में प्रसार किया जाता है।
    • वर्ष 2010 में जिनेवा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बर्लिन के ऊपर हवा में इन्फ्रारेड निर्देशित किया। इस प्रयोग से पता चला कि इन्फ्रारेड वायुमंडलीय सल्फर डाइ-ऑक्साइड एवं नाइट्रोजन डाइ-ऑक्साइड को ऐसे कण बनाने में मदद कर सकता है जो क्लाउड सीड के रूप में कार्य करते हैं और वर्षा का कारण बनते हैं।
  • डायनेमिक (गतिशील) मेघ बीजन : इसका उद्देश्य ऊर्ध्वाधर वायु धाराओं (राशियों) को बढ़ावा देना है जिसमें अधिक पानी को जलवाष्प के रूप में बादलों तक पहुँचाने का प्रयास होता है, जिससे अधिक बारिश होती है। इस प्रक्रिया को स्टैटिक क्लाउड सीडिंग की तुलना में अधिक जटिल माना जाता है क्योंकि यह अनुकूल स्थितियों के अनुक्रम पर निर्भर करता है।

क्लाउड सीडिंग के अनुप्रयोग 

  • कृषि : क्लाउड सीडिंग से सूखाग्रस्त क्षेत्रों को राहत मिल सकती है। उदाहरण के लिए, कर्नाटक सरकार ने वर्ष 2017 में ‘प्रोजेक्ट वर्षाधारी’ लॉन्च किया जिसमें वर्षा को प्रेरित करने के लिए रसायनों का छिड़काव करने के लिए विमान का उपयोग किया गया।
    • क्लाउड सीडिंग पर्याप्त वर्षा सुनिश्चित करके, विशेषकर शुष्क एवं अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में फसल उत्पादन को बढ़ाता है।
  • वर्षा में वृद्धि एवं सूखा शमन : जल की कमी वाले क्षेत्रों में जलाशयों को भरने में सहायक होता है और है। यह दीर्घकालीन सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए एक संभावित समाधान प्रदान करता है।
  • कोहरा छँटना, ओला वर्षण एवं चक्रवात की स्थिति में परिवर्तन : शीतकाल के दौरान पहाड़ी बर्फ के आवरण को बढ़ाने के लिए क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया जाता है। अमेरिका के वर्ष 1962 के प्रोजेक्ट स्काई वॉटर का उद्देश्य दृश्यता में सुधार के लिए कोहरे को छँटना, ओलावृष्टि दमन और चक्रवात की स्थिति में परिवर्तन करना था।
  • विद्युत उत्पादन : विगत 40 वर्षों के दौरान ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया में पनबिजली उत्पादन को बढ़ाने के लिए क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया गया है।
  • जल प्रदूषण नियंत्रण : क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया न्यूनतम नदी प्रवाह को बनाए रख सकती है और उद्योगों से निकलने वाले उपचारित अपशिष्ट जल के प्रभाव को कम कर सकती है।
  • वायु प्रदूषण पर नियंत्रण : क्लाउड सीडिंग द्वारा कृत्रिम वर्षा से जहरीले वायु प्रदूषकों को कम किया जा सकता है।

क्लाउड सीडिंग में चुनौतियाँ 

  • दुष्प्रभाव : क्लाउड सीडिंग में उपयोग किए जाने वाले रसायन पौधों, जानवरों, मनुष्यों व पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
  • असामान्य मौसम प्रतिरूप : क्लाउड सीडिंग से जलवायु प्रतिरूप में बदलाव हो सकता है क्योंकि इस विधि में वर्षा में को प्रोत्साहित करने के लिए कृत्रिम प्रक्रिया द्वारा वातावरण में रसायनों का प्रसार किया जाता है जिससे सूखे की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। 
  • उच्च लागत : क्लाउड सीडिंग में विमान या फ्लेयर शॉट्स का उपयोग करके आकाश में रसायनों का प्रसार किया जाता है जिसमें अत्यधिक व लॉजिस्टिक तैयारी शामिल है।
  • नैतिक मुद्दे : प्राकृतिक मौसम प्रतिरूप में परिवर्तन के अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं जिससे संभावित विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, पड़ोसी क्षेत्रों में वर्षा में कमी आना।
  • प्रदूषण : क्लाउड सीडिंग द्वारा होने वाली बारिश में सिल्वर आयोडाइड एवं शुष्क बर्फ जैसे सीडिंग एजेंट हानिकारक हो सकते हैं। इन परियोजनाओं के निकट स्थानों में पाए गए अवशिष्ट सिल्वर को विषाक्त माना जाता है।
  • अन्य चुनौतियाँ :
    • क्लाउड सीडिंग का लाभ मानसून के मौसम में पर्याप्त बादल की उपस्थिति में ही मिल पाता है। 
    • वर्षा की बूँदों का सतह तक पहुँचना कई कारकों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, भारत में उष्णकटिबंधीय स्थितियाँ मौजूद हैं जिससे वर्षा की बूँदें सतह तक आते-आते वाष्पित हो सकती है। 

वैश्विक परिदृश्य एवं भारत में क्लाउड सीडिंग का उपयोग 

भारत में क्लाउड सीडिंग

  • भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्रों में वर्षा के उद्देश्य से क्लाउड सीडिंग या कृत्रिम बारिश करवाई गई है किंतु केवल प्री-मानसून एवं मानसून की अवधि में जब नमीयुक्त मेघ या बादल मौजूद होते हैं।
  • वर्ष 1983, 1984-87 एवं 1993-94 में तमिलनाडु सरकार और वर्ष 2003 व 2004 में कर्नाटक सरकार ने गंभीर सूखे से निपटने के लिए क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया था।
  • महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त क्षेत्र सोलापुर में क्लाउड एरोसोल इंटरेक्शन एंड प्रेसिपिटेशन एन्हांसमेंट एक्सपेरिमेंट (CAIPEEX-IV) के चौथे चरण का आयोजन वर्ष 2018 एवं 2019 के मानसून सीज़न में किया गया था जिससे वर्षा में 18% की सापेक्ष वृद्धि हुई थी। 
    • CAIPEEX पर आधारित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) के अध्ययन का उद्देश्य गहरे संवहनी बादलों में क्लाउड सीडिंग की प्रभावकारिता की जांच करना और क्लाउड सीडिंग प्रोटोकॉल विकसित करना है।
    • यह प्रयोग हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग पर केंद्रित था। वर्षा में वृद्धि के लिए इन संवहनशील बादलों में कैल्शियम क्लोराइड के कण छोड़े गए थे।
    • वैज्ञानिकों ने बर्फ एवं जल दोनों प्रकार के बादलों में ग्लेशियोजेनिक सीडिंग का भी प्रयास किया। हालाँकि, ग्लेशियोजेनिक सीडिंग से वर्षा पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।

विश्व में क्लाउड सीडिंग

  • इजराइल : इज़राइल 1950 के दशक से क्लाउड सीडिंग का उपयोग कर रहा है और यहाँ हवाई जहाजों एवं ग्राउंड स्टेशनों से सिल्वर आयोडाइड का प्रयोग किया जाता है।
  • थाईलैंड : नवंबर 1955 में थाईलैंड ने गंभीर सूखे से निपटने के लिए थाईलैंड रॉयल रेनमेकिंग नामक क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट शुरू किया था।
  • चीन : चीन के पास सबसे बड़ी क्लाउड सीडिंग प्रणाली है जहाँ आकाश में सिल्वर आयोडाइड रॉकेट दागकर कृत्रिम वर्षा कराई जाती है। 
  • अन्य देश : रूस, ऑस्ट्रेलिया एवं संयुक्त अरब अमीरात जैसे कई अन्य देशों ने क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR