New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 27 June, 3:00 PM Mid Year Mega Sale UPTO 75% Off, Valid Till : 17th June 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 22 June, 5:30 PM Mid Year Mega Sale UPTO 75% Off, Valid Till : 17th June 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 27 June, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 22 June, 5:30 PM

न्यायाधीशों के लिए आचार संहिता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना)

संदर्भ

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव द्वारा विश्व हिंदू परिषद के विधिक प्रकोष्ठ द्वारा उच्च न्यायालय परिसर में आयोजित एक कार्यक्रम में समुदाय विशिष्ट टिप्पणी की सार्वजनिक रूप से आलोचना की गई है। 

न्यायमूर्ति की हालिया टिप्पणी 

  • न्यायमूर्ति यादव ने कहा है कि देश हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार काम करेगा। 
  • उन्होंने टिप्पणी की कि एक समुदाय के बच्चों को दया और सहिष्णुता सिखाई जाती है, लेकिन "दूसरे समुदाय" के बच्चों से ऐसी ही उम्मीद करना मुश्किल होगा, खासकर तब जब वे पशु वध होते हुए देखते हैं। 
  • समान नागरिक संहिता के संबंध में उन्होंने टिप्पणी की कि हिंदू महिलाओं को देवी के रूप में पूजते हैं, जबकि "दूसरे समुदाय" के सदस्य बहुविवाह, हलाला या तीन तलाक का अभ्यास करते हैं। 

न्यायिक नैतिकता का उद्भव एवं विकास 

  • न्यायपालिका को अपनी शक्ति दो स्रोतों से मिलती है : 
    • न्यायपालिका के प्राधिकार की सार्वजनिक स्वीकृति 
    • न्यायपालिका की ईमानदारी। 

न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन

  • समय के साथ प्राप्त अनुभव ने न्यायपालिका को न्यायालय के अंदर और बाहर न्यायिक आचरण के सर्वोत्तम सम्मेलनों को संहिताबद्ध करने के लिए प्रेरित किया है।
    • ‘न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन’ न्यायिक आचरण को नियंत्रित करने वाली प्राथमिक आचार संहिता है जिसे 7 मई, 1997 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनाया गया था। इसके अनुसार-
    • न्यायाधीश के व्यवहार को ‘न्यायपालिका की निष्पक्षता में लोगों के विश्वास की पुष्टि करनी चाहिए’। 
    • सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का कोई भी कार्य, चाहे वह आधिकारिक या व्यक्तिगत क्षमता में हो, जो इस धारणा की विश्वसनीयता को नष्ट करता है, उससे बचना चाहिए। 
    • संहिता के अंतिम नियम में कहा गया है कि न्यायाधीश को हर समय इस बात का एहसास होना चाहिए कि वह जनता की निगाह में है। 

न्यायिक आचरण का बैंगलोर सिद्धांत

  • न्यायिक आचरण के बैंगलोर सिद्धांत 2002 न्यायिक आचरण को विनियमित करने के लिए एक रूपरेखा प्रस्तुत करता है। 
  • इसमें न्यायाधीश को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है कि अदालत के अंदर और बाहर उसका आचरण न्यायाधीश और न्यायपालिका की निष्पक्षता में जनता, कानूनी पेशे और वादियों के विश्वास को बनाए रखे और बढ़ाए। 
  • इसमें  न्यायाधीश की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता दी गई है लेकिन यह अनिवार्य करता है कि न्यायाधीश को हमेशा इस तरह से आचरण करना चाहिए जिससे न्यायिक कार्यालय की गरिमा और न्यायपालिका की निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता बनी रहे। 
  • इस सिद्धांत में में न्यायाधीश से समाज में विविधता के बारे में “जागरूक एवं  समझने” और सभी के साथ समान व्यवहार करने की अपेक्षा की गई है।

टिप्पणी की आलोचना 

  • न्यायमूर्ति यादव की टिप्पणियों के आलोक में अखिल भारतीय अधिवक्ता संघ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना को पत्र लिखकर कहा है कि न्यायाधीश की टिप्पणियां लोकतंत्र से दूर और “हिंदुत्व राष्ट्र” की ओर झुकी हुई हैं। 
  • अधिवक्ता प्रशांत भूषण के नेतृत्व में न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान ने न्यायमूर्ति की टिप्पणी को उनके पद की शपथ का उल्लंघन बताया है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने कथित तौर पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग की है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव के भाषण पर समाचार पत्रों की रिपोर्टों के आधार पर स्वत: संज्ञान लिया है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने  इलाहाबाद उच्च न्यायालय से विवरण मांगा है और मामला विचाराधीन है। 

न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया 

विधायी प्रक्रिया या महाभियोग 

  • संविधान में यह प्रावधान है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को “सिद्ध कदाचार या अक्षमता” के आधार पर महाभियोग की प्रक्रिया के बाद राष्ट्रपति के आदेश से हटाया जा सकता है। 
  • संवैधानिक न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के प्रस्ताव को सदन की कुल सदस्यता के विशेष बहुमत और सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित होना चाहिए। 
  • महाभियोग के प्रस्ताव को छोड़कर, संविधान विधायिका को किसी अन्य संदर्भ में न्यायाधीशों के कदाचार के आरोपों पर चर्चा करने से रोकता है। 

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित प्रक्रिया

  • सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीर आरोपों का सामना करने वाले न्यायाधीशों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने का अवसर देने के लिए एक आंतरिक प्रक्रिया भी विकसित की है,
    • जिससे वे और न्यायिक संस्थान महाभियोग की सार्वजनिक उपहास से बच सकें।
  • इस प्रक्रिया को औपचारिक रूप से वर्ष 1999 में अपनाया गया था, और वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे सार्वजनिक डोमेन में रखा गया था। 
  • इस प्रक्रिया के तहत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत राष्ट्रपति, CJI या संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित की जा सकती है।
  • उच्च नयायालय के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित शिकायत
    •  यदि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को कोई शिकायत प्राप्त होती है, तो शिकायत की गंभीरता के आधार पर, संबंधित न्यायाधीश से जवाब मांगा जा सकता है। 
    • जवाब मिलने पर यदि गहन जांच की आवश्यकता होती है, तो मुख्य न्यायाधीश शिकायत और न्यायाधीश के बयान को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI)  को भेज सकते हैं।
  • राष्ट्रपति या भारत के मुख्य न्यायाधीश को शिकायत प्राप्त होने पर 
    • राष्ट्रपति को संबोधित शिकायत प्राप्त होने पर राष्ट्रपति इसे भारत के मुख्य न्यायाधीश को भेजते हैं।
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा सीधे शिकायत प्राप्त करने पर या राष्ट्रपति द्वारा संदर्भित होने पर इसे संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भेज सकते हैं। 
      • जो संबंधित न्यायाधीश से बयान एकत्र करने और इसे मुख्य न्यायाधीश को वापस करने की समान प्रक्रिया का पालन करेंगे।  
    • यदि आरोप इतने गंभीर हैं कि जांच की आवश्यकता है तब भारत के मुख्य न्यायाधीश आरोपों की जाँच  के लिए अन्य उच्च न्यायालयों के दो मुख्य न्यायाधीशों और एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा गठित एक तथ्य-खोज समिति नियुक्त कर सकते हैं।
    • यदि समिति न्यायाधीश को हटाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत करती है, तो भारत के मुख्य न्यायाधीश, आरोपों का सामना करने वाले न्यायाधीश को सेवानिवृत्त होने के लिए कह सकते हैं। 
  • यदि न्यायाधीश ऐसा करने से इनकार करते हैं, तो मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को समिति की रिपोर्ट के साथ आरोपों के बारे में सूचित कर सकते हैं जिसके बाद महाभियोग की प्रक्रिया प्रारंभ की जा सकती है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR