
- औद्योगिक क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है — यह रोजगार, उत्पादन और निर्यात का प्रमुख स्रोत है।
- लेकिन यही क्षेत्र भारत के ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने और “नेट ज़ीरो उत्सर्जन” के लक्ष्य की दिशा में भारत के लिए औद्योगिक क्षेत्र का डीकार्बोनाइज़ेशन (Decarbonisation) अत्यंत आवश्यक हो गया है।
औद्योगिक क्षेत्र से उत्सर्जन की वर्तमान स्थिति
भारत की चौथी द्विवार्षिक अपडेटेड रिपोर्ट (BUR) के अनुसार:
- औद्योगिक प्रक्रियाओं और उत्पाद उपयोग (IPPU) का देश के कुल उत्सर्जन में योगदान 8.06% है।
- इस्पात उद्योग अकेले भारत के कुल CO₂ उत्सर्जन का लगभग 12% जिम्मेदार है — यह दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन-उत्सर्जक विनिर्माण क्षेत्रक भी है।
- औद्योगिक ऊर्जा खपत का करीब 60% हिस्सा पारंपरिक ईंधन (कोयला, तेल, गैस) पर आधारित है।
- CCUS (Carbon Capture, Utilisation and Storage) जैसी अत्याधुनिक तकनीकें अभी प्रारंभिक अवस्था में हैं, जिनका व्यापक रूप से अपनाया जाना आवश्यक है।
डीकार्बोनाइज़ेशन की प्रमुख चुनौतियाँ
- ग्रीन फाइनेंस की सीमाएँ: हरित परियोजनाओं में निवेश को उच्च जोखिम वाला माना जाता है, जिससे वित्तीय प्रवाह सीमित रहता है।
- तकनीकी और अवसंरचनात्मक अड़चनें: ईवी चार्जिंग स्टेशन, हरित हाइड्रोजन वितरण नेटवर्क और औद्योगिक अपग्रेडेशन जैसी सुविधाएँ अभी अपर्याप्त हैं।
- दुर्लभ भू-तत्वों की कमी: इलेक्ट्रिक वाहनों और ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों में प्रयुक्त लिथियम, कोबाल्ट जैसे खनिजों का घरेलू भंडार सीमित है।
- नीतिगत समन्वय का अभाव: ऊर्जा, कोयला, और औद्योगिक मंत्रालयों के बीच बेहतर तालमेल की आवश्यकता है ताकि नीति क्रियान्वयन सुचारू रूप से हो सके।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
भारत न केवल घरेलू स्तर पर बल्कि वैश्विक मंच पर भी औद्योगिक डीकार्बोनाइज़ेशन को लेकर सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
- Industrial Deep Decarbonisation Initiative (IDDI) – 2021: यूनाइटेड किंगडम और भारत के सह-नेतृत्व में आरंभ यह पहल ऊर्जा-गहन उद्योगों को स्वच्छ तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
- Global Matchmaking Platform (GMP): उद्योगों, निवेशकों और नीति-निर्माताओं को जोड़ने वाला मंच, जो सहयोग और नवाचार को बढ़ावा देता है।
- Energy Transition Expert Group: औद्योगिक ऊर्जा संक्रमण पर नीतिगत सुझाव देने वाला एक वैश्विक विशेषज्ञ समूह।
भारत में अपनाई गई प्रमुख पहलें
- Perform, Achieve and Trade (PAT) योजना: ऊर्जा दक्षता बढ़ाने हेतु उद्योगों को लक्ष्य-आधारित सुधार के लिए प्रोत्साहन देने वाला कार्यक्रम।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन: हरित हाइड्रोजन उत्पादन को प्रोत्साहन देकर इस्पात, उर्वरक और रसायन उद्योगों में जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाना।
- ग्रीन स्टील रणनीति: इस्पात निर्माण में नवीकरणीय ऊर्जा और हाइड्रोजन आधारित प्रक्रियाओं का उपयोग।
- SWAGRIHA मॉडल: लघु उद्यमों और निर्माण क्षेत्र में पर्यावरण-अनुकूल, किफायती आवास को बढ़ावा देने की पहल।
आगे की राह
- मंत्रालयीय समन्वय: नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE), विद्युत मंत्रालय और कोयला मंत्रालय के बीच एक साझा ‘ग्रीन ट्रांजिशन कोऑर्डिनेशन फ्रेमवर्क’ विकसित किया जाना चाहिए।
- विनियामक सुधार: उत्सर्जन करने वाले उद्योगों के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) और पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) को अधिक पारदर्शी और सख्त बनाया जाना चाहिए।
- हरित निवेश प्रोत्साहन: ग्रीन बॉन्ड, टैक्स इंसेंटिव और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से वित्त पोषण के वैकल्पिक स्रोत सृजित करने होंगे।
- तकनीकी नवाचार: स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहन देकर CCUS, हाइड्रोजन स्टोरेज और ऊर्जा दक्षता तकनीकों का स्वावलंबी ढांचा तैयार किया जाए।
निष्कर्ष
- भारत के औद्योगिक क्षेत्र का डीकार्बोनाइज़ेशन न केवल जलवायु लक्ष्यों की पूर्ति का माध्यम है, बल्कि यह आर्थिक अवसरों, तकनीकी नवाचार और हरित रोजगार सृजन का भी साधन बन सकता है।
- “ग्रीन इंडस्ट्रीज़, ग्रीन जॉब्स और ग्रीन इकोनॉमी” — यही वह त्रिकोण है जो भारत को एक सतत औद्योगिक भविष्य की ओर अग्रसर करेगा।