(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत के हितों पर विकसित व विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय) |
संदर्भ
भारत के कॉफ़ी निर्यात क्षेत्र को वैश्विक पर्यावरणीय मानदंडों के अनुरूप बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए कॉफ़ी बोर्ड ने यूरोपीय संघ वनोन्मूलन विनियमन (European Union Deforestation Regulation: EUDR) की आवश्यकताओं को पूरा करने में उत्पादकों की सहायता के लिए व्यापक जागरूकता व क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की है।
क्या है EUDR
- EUDR 31 दिसंबर, 2020 के बाद वन विनाश या वन क्षरण से जुड़ी विशिष्ट वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करता है। कॉफ़ी भी इन वस्तुओं में शामिल है।
- इन विनियमों के अनुपालन के उल्लंघन पर माल की ज़ब्ती, जुर्माना (EU टर्नओवर का 4% तक) और यूरोपीय बाज़ारों से बहिष्कार जैसे दंड शामिल हैं।
- यूरोपीय संघ ने इन विनियमों को लागू करने के लिए एक विस्तारित समय-सीमा प्रदान की है।
- बड़े निर्यातकों को दिसंबर 2025 तक अनुपालन करना होगा, जबकि सूक्ष्म एवं लघु उत्पादकों को जून 2026 तक अतिरिक्त समय मिलेगा।
- इस प्रकार यूरोपीय संघ के बाज़ार तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए उत्पादकों, विशेष रूप से छोटे व सीमांत उत्पादकों को तैयार करना महत्त्वपूर्ण है।
भारत के लिए निहितार्थ
- बाज़ार पहुँच: भारतीय कॉफ़ी के एक प्रमुख गंतव्य यूरोपीय संघ तक पहुँच बनाए रखने के लिए अनुपालन आवश्यक है।
- प्रीमियम स्थिति: सफलतापूर्वक अनुपालन करने वाले उत्पादक वैश्विक ‘वन-कटान-मुक्त’ या ‘टिकाऊ’ क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं।
- नीतिगत प्रोत्साहन की आवश्यकता: सरकारी निकायों को क्षमता अंतराल को पाटने के लिए वित्तीय, तकनीकी एवं संस्थागत सहायता प्रदान करने की आवश्यकता हो सकती है।
- वैश्विक व्यापार पुनर्संरेखण: अनुपालन करने में असमर्थ आपूर्तिकर्ताओं को हटाया जा सकता है जिससे व्यापार मार्ग व आपूर्ति श्रृंखलाएँ बदल सकती हैं।
भारतीय कॉफ़ी बोर्ड की पहल
- भारत अपनी कॉफ़ी का लगभग 70% हिस्सा विदेशों में निर्यात करता है। ऐसे में EUDR के विनियमों के अनुपालन के लिए कुछ पहलों की शुरुआत की है।
- इसका उद्देश्य संक्रमण (Transition) को अधिक सुगम बनाना है, खासकर छोटे किसानों के लिए जिनके पास तकनीकी या वित्तीय संसाधनों की कमी हो सकती है।
- भारतीय कॉफ़ी बोर्ड EUDR के मानदंडों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए किसानों और निर्यातकों के साथ सीधे संपर्क कर रहा है।
- यह अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उत्पादक पंजीकरण और भू-स्थान मानचित्रण (4 हेक्टेयर से अधिक के भूखंडों के लिए अनिवार्य) को लागू कर रहा है।
- बोर्ड हितधारकों के लिए दस्तावेज़ीकरण, पता लगाने और अनुपालन को आसान बनाने के लिए एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म/ऐप विकसित कर रहा है।
- अनुसंधान और प्रौद्योगिकी भागीदारों के सहयोग से निर्बाध आपूर्ति श्रृंखला पता लगाने को सुनिश्चित करने के लिए ब्लॉकचेन, जियोटैगिंग एवं मानचित्रण जैसे इनपुट का परीक्षण किया जा रहा है।
चुनौतियाँ
- संसाधनों की कमी: कई छोटे व सीमांत उत्पादकों को तकनीक, दस्तावेज़ीकरण एवं अनुपालन लागतों से जूझना पड़ सकता है।
- आँकड़ों की कमी व विश्वास: दूरदराज के इलाकों में विश्वसनीय भूमि रिकॉर्ड, स्वामित्व में स्पष्टता और सटीक रजिस्टरों का अभाव हो सकता है।
- अनुरेखण का पैमाना: लाखों छोटे भूखंडों का मानचित्रण, बिचौलियों को एकीकृत करना और डिजिटल बुनियादी ढाँचा सुरक्षित करना जटिल है।
- छोटे किसानों को हतोत्साहित करना: निर्यातक बड़े, अनुरेखण योग्य उत्पादकों के साथ व्यापार करना पसंद कर सकते हैं, जिससे छोटे किसान हाशिए पर चले जाएँगे।
आगे की राह
- कॉफ़ी बोर्ड के जागरूकता कार्यक्रम व्यापार, पर्यावरण, कृषि व प्रौद्योगिकी के अंतर्संबंध को रेखांकित करते हैं जो एक बहुआयामी नीतिगत चुनौती है।
- EUDR के अनुपालन के लिए भारत को छोटे किसानों को अनुपालन में सहायता प्रदान करने की क्षमता, जलवायु कार्रवाई, किसान कल्याण और व्यापार उद्देश्यों के बीच नीतिगत सुसंगतता की आवश्यकता है।
- यह मामला दर्शाता है कि आयातक देशों में पर्यावरण विनियमन किस प्रकार घरेलू क्षेत्रों में प्रभाव डाल सकता है, जिसके लिए सक्रिय शासन की आवश्यकता होती है।
भारत में कॉफ़ी उत्पादन का विकास
- 1600 ई. में प्रसिद्ध संत बाबा बूदन ने कर्नाटक में ‘बाबा बूदन गिरिस’ पर अपने आश्रम के प्रांगण में ‘मोचा’ के ‘सात बीज’ बोए। ये भारत में कॉफ़ी उगाने की शुरुआत थी।
- 18वीं सदी में कॉफ़ी के व्यावसायिक बागान शुरू हुए, जिसका श्रेय दक्षिण भारत के दुर्गम वन क्षेत्रों पर विजय प्राप्त करने में ब्रिटिश उद्यमियों की सफलता को जाता है।
- इसके बाद से भारतीय कॉफ़ी उद्योग ने तेज़ी से प्रगति की है और दुनिया के कॉफ़ी मानचित्र पर एक विशिष्ट पहचान बनाई है।
- 1860 के दशक तक वर्तमान कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु राज्यों की पहाड़ियों में व्यावसायिक अरेबिका बागानों का प्रसार तेज़ी से हुआ।
- 1940 के दशक में द्वितीय विश्व युद्ध के कारण भारत में कॉफ़ी उद्योग बहुत ही निराशाजनक स्थिति में था, जिसके परिणामस्वरूप कीमतें बहुत कम हो गईं और कीटों व बीमारियों का प्रकोप बढ़ गया।
भारत में उत्पादित कॉफ़ी
- भारत में कॉफ़ी पारंपरिक रूप से कर्नाटक, केरल व तमिलनाडु में फैले पश्चिमी घाटों में उगाई जाती है।
- आंध्र प्रदेश और ओडिशा के गैर-पारंपरिक क्षेत्रों के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्यों में भी कॉफ़ी की खेती तेज़ी से बढ़ रही है।
- कॉफ़ी मुख्यतः निर्यातोन्मुखी वस्तु है और देश में उत्पादित 65% से 70% कॉफ़ी का निर्यात किया जाता है।
- भारतीय कॉफ़ी क्षेत्र छह लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रोज़गार प्रदान करता है।
कॉफ़ी के प्रकार
भारत में कॉफ़ी की दो मुख्य किस्में ‘अरेबिका’ एवं ‘रोबस्टा’ उगाई जाती हैं।
अरेबिका
- भारत की अरेबिका कॉफ़ी को भी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है।
- अरेबिका हल्की कॉफी है किंतु इसके बीज अधिक सुगंधित होने के कारण रोबस्टा बीज की तुलना में इसका बाजार मूल्य अधिक है।
- अरेबिका को रोबस्टा की तुलना में अधिक ऊंचाई पर उगाया जाता है।
- 15 ℃ से 25 ℃ के बीच का ठंडा व सम तापमान अरेबिका के लिए उपयुक्त है।
- अरेबिका को अधिक देखभाल एवं पोषण की आवश्यकता होती है और यह बड़ी जोत के लिए अधिक उपयुक्त है।
- अरेबिका की कटाई नवंबर से जनवरी के बीच होती है।
रोबस्टा
- भारतीय कॉफ़ी, विशेष रूप से भारतीय रोबस्टा अपनी अच्छी मिश्रण गुणवत्ता के लिए अत्यधिक पसंद की जाती है और उच्च प्रीमियम प्राप्त कर रही है।
- रोबस्टा में अधिक शक्ति होती है और इसलिए इसका उपयोग विभिन्न मिश्रण बनाने में किया जाता है।
- रोबस्टा के लिए 20 ℃ से 30 ℃ के बीच का गर्म व आर्द्र जलवायु उपयुक्त है।
- रोबस्टा खेत के आकार के बिना उपयुक्त है। इसकी कटाई दिसंबर से फरवरी तक होती है।
भारतीय कॉफ़ी बोर्ड
- भारत सरकार ने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में एक संवैधानिक अधिनियम ‘कॉफ़ी अधिनियम VII, 1942’ के माध्यम से ‘कॉफ़ी बोर्ड’ की स्थापना की।
- इस बोर्ड में अध्यक्ष, सचिव व मुख्य कार्यकारी अधिकारी सहित 33 सदस्य होते हैं।
- शेष 31 सदस्य विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे- कॉफ़ी उत्पादन उद्योग, कॉफ़ी व्यापार हित, उपचार प्रतिष्ठान, श्रमिक एवं उपभोक्ता हित, प्रमुख कॉफ़ी उत्पादक राज्यों की सरकारों के प्रतिनिधि व संसद सदस्य।
- बोर्ड छह वैधानिक समितियों के माध्यम से कार्य करता है, जिनमें से प्रत्येक का कार्यकाल एक वर्ष होता है। इन 6 समितियों में शामिल हैं :
- कार्यकारी समिति
- प्रचार समिति
- विपणन समिति
- अनुसंधान समिति
- विकास समिति
- गुणवत्ता समिति
- इसके अतिरिक्त बोर्ड में एक गैर-सांविधिक समिति लेखा परीक्षण समिति भी है जो वार्षिक लेखा से संबंधित मामलों पर विचार करती है।
- भारतीय कॉफ़ी बोर्ड का मुख्यालय बेंगलुरु, कर्नाटक में है।
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