(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
संदर्भ
भारत में आरक्षण प्रणाली का उद्देश्य सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों, जैसे- अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) एवं अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को शिक्षा, नौकरी व राजनीतिक प्रतिनिधित्व में समान अवसर प्रदान करना है। हाल के वर्षों में आरक्षण के लाभों के वितरण में असमानता को लेकर बहस में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से SC/ST समुदायों के भीतर ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा को लागू करने पर।
हालिया मुद्दा
- सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया, जिसमें SC/ST आरक्षण में OBC की तरह ‘क्रीमी लेयर’ जैसी प्रणाली लागू करने की मांग की गई है।
- जस्टिस सूर्यकांत और जोयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि राज्य को समुदायों के भीतर आर्थिक क्षमता का मूल्यांकन करने की क्षमता है किंतु मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए सावधानी बरतनी चाहिए।
- इस मामले की सुनवाई 10 अक्टूबर को तय की गई, जहां याचिकाकर्ता ने दाविंदर सिंह मामले का हवाला दिया।
केंद्र सरकार का दृष्टिकोण
- केंद्र सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि SC/ST आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ का सिद्धांत लागू नहीं होता है क्योंकि डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान में इसका कोई प्रावधान नहीं है।
- कैबिनेट ने अगस्त 2024 में इसकी पुष्टि की और प्रधानमंत्री ने भाजपा सांसदों को आश्वासन दिया कि SC/ST कोटा पर कोई बदलाव नहीं होगा।
- सर्वोच्च न्यायालय के 2024 फैसले के बावजूद सरकार ने इसे लागू करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह विधायिका एवं कार्यपालिका का फैसला है।
SC/ST आरक्षण में सुधार की मांग का कारण
- SC/ST आरक्षण में वर्तमान नीति से समुदाय के भीतर अपेक्षाकृत संपन्न एवं सामाजिक रूप से मजबूत सदस्यों को अधिक लाभ मिल रहा है, जबकि सबसे वंचित सदस्य गरीबी के चक्र में फंसे रहते हैं।
- इससे अंतर-समुदाय आर्थिक स्तरीकरण (Intra-community Economic Stratification) हो रहा है, जहां कुछ परिवार उच्च पदों पर हैं और वित्तीय स्थिरता व गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
- राजनीतिक आरक्षण से SC/ST का प्रतिनिधित्व बढ़ा है किंतु आर्थिक एवं शैक्षिक लाभ सुविधासंपन्न वर्ग तक सीमित रह गए हैं, जो पूरे समुदाय के विकास में नहीं बदल पा रहे हैं।
आय-आधारित प्राथमिकता तंत्र
- यह SC/ST आरक्षण के भीतर द्वि-स्तरीय प्रणाली है जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को पहले लाभ दिया जाए, उसके बाद अपेक्षाकृत संपन्न सदस्यों को।
- इसका उद्देश्य आरक्षण के प्रतिशत में कमी किए बिना, लाभों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना है।
- यह सुधार जाति-आधारित आरक्षण को समाप्त नहीं करता है बल्कि आय-आधारित मानदंडों के माध्यम से इसे अधिक प्रभावी बनाता है, ताकि लाभ वास्तविक वंचितों तक पहुंच सके।
OBC आरक्षण में क्रीमी लेयर अवधारणा
- इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने OBC के लिए 27% आरक्षण को मंजूरी दी किंतु ‘क्रीमी लेयर’ को बाहर करने का आदेश दिया।
- क्रीमी लेयर में वे सदस्य शामिल हैं जो सामाजिक रूप से उन्नत हैं, जैसे कि जिनकी वार्षिक आय 8 लाख रुपए से अधिक है या जिनके माता-पिता उच्च पदों पर हैं (जैसे- समूह A/B अधिकारी)।
- इसका उद्देश्य आरक्षण के लाभों को वास्तविक पिछड़े सदस्यों तक सीमित रखना है, न कि संपन्नों तक।
SC/ST के लिए क्रीमी लेयर के पक्ष और विपक्ष में तर्क
पक्ष में तर्क
- इससे आरक्षण का लाभ सबसे वंचित सदस्यों तक पहुंचेगा और समुदाय के भीतर असमानता कम होगी।
- वास्तविक समानता हासिल करने के लिए संपन्न सदस्यों को लाभ से बाहर करना आवश्यक है, जैसा कि जस्टिस गवई ने दाविंदर सिंह मामले में कहा।
- यह प्रतिशत में कमी किए बिना आरक्षण को अधिक प्रभावी बनाएगा।
विपक्ष में तर्क
- SC/ST का पिछड़ापन प्राय: अस्पृश्यता एवं सामाजिक भेदभाव पर आधारित है, न कि केवल आर्थिक स्थिति पर आधारित है, इसलिए OBC जैसा क्रीमी लेयर लागू नहीं होना चाहिए।
- यह समानता से समझौता करेगा और आरक्षण के मूल उद्देश्य को कमजोर करेगा क्योंकि कोई ठोस डाटा आधार नहीं है।
- कुछ दलित समुदाय इससे नाराज हैं क्योंकि यह उन्हें आरक्षण को कमजोर करने का प्रयास लगता है।
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय
- इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) : OBC के लिए क्रीमी लेयर की अवधारणा की शुरूआत की गई किंतु SC/ST पर लागू नहीं किया गया।
- पंजाब राज्य बनाम दाविंदर सिंह (2024) : सात न्यायाधीशों की पीठ ने SC/ST में उप-वर्गीकरण की अनुमति दी और जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा कि राज्यों को SC/ST में क्रीमी लेयर की पहचान कर उन्हें बाहर करने की नीति बनानी चाहिए किंतु मानदंड OBC से अलग होंगे।
चुनौतियाँ
- क्रीमी लेयर की पहचान के लिए अलग मानदंड निर्धारित करना मुश्किल है क्योंकि SC/ST का पिछड़ापन जाति-आधारित है।
- विशेष रूप से SC/ST नेताओं की ओर से राजनीतिक प्रतिरोध की संभावना है क्योंकि वे इसे आरक्षण कमजोर करने का प्रयास मानते हैं।
- कार्यान्वयन में डाटा की कमी एवं प्रशासनिक जटिलताएँ, जैसे- आय सत्यापन व समुदाय के भीतर विवाद भी प्रमुख बिंदु हैं।
आगे की राह
- सरकार को SC/ST के लिए अलग क्रीमी लेयर नीति विकसित करनी चाहिए, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाया है, हालाँकि संवेदनशीलता को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- डाटा-आधारित अध्ययन कर उप-वर्गीकरण एवं आय-प्राथमिकता को लागू करना चाहिए, ताकि लाभ वंचितों तक पहुंचे।
- विधायिका एवं कार्यपालिका को संवाद के माध्यम से नया कानून बनाना चाहिए और पायलट प्रोजेक्ट्स से शुरूआत करनी चाहिए।
निष्कर्ष
क्रीमी लेयर की अवधारणा से आरक्षण को अधिक न्यायसंगत बनाया जा सकता है किंतु SC/ST के संदर्भ में इसका कार्यान्वयन सावधानीपूर्वक होना चाहिए ताकि मूल उद्देश्य प्रभावित न हो। यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक कदम है किंतु राजनीतिक इच्छाशक्ति और डाटा-आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। अंततः, आरक्षण का लक्ष्य एक जातिविहीन समाज का निर्माण करना है जहाँ आर्थिक कारक जाति से अधिक महत्वपूर्ण हों।