(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध) |
संदर्भ
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह मांग उठाई है कि इंडो-भूटान नदी आयोग का गठन किया जाए और इसमें पश्चिम बंगाल को सदस्य बनाया जाए। यह माँग इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भूटान से आने वाली नदियों का पानी उत्तर बंगाल में बाढ़ का बड़ा कारण बनता है।
इंडो-भूटान रिवर कमीशन की मांग
- भूटान की संकोश नदी (अन्य नाम- गदाधर) सहित कई नदियाँ उत्तर बंगाल में प्रवेश करती हैं। हर साल इन नदियों का जलस्तर बढ़ने से पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार जैसे जिले अत्यधिक प्रभावित होते हैं।
- भूटान से निकलने वाली और भारत में प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदियाँ मुख्य रूप से ब्रह्मपुत्र बेसिन में, संकोश (पुना त्सांग चू), रैदक (वांग छू), मानस, मो छू, जलधाका और द्रंगमे छू नदी प्रणालियाँ शामिल हैं।

- पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का कहना है कि केवल तकनीकी समितियों से समस्या का समाधान नहीं हो रहा है और स्थायी समाधान के लिए एक संयुक्त नदी आयोग (River Commission) जरूरी है।
- इस आयोग में पश्चिम बंगाल को सदस्य बनाया जाए ताकि राज्य की वास्तविक स्थिति और जरूरतें सीधे आयोग तक पहुँच सकें।
संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 246 और 262 : इनके तहत संसद को अंतर्राज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय नदियों से जुड़े विवादों पर कानून बनाने का अधिकार है।
- केंद्र सरकार अंतर्राष्ट्रीय नदी समझौतों पर बातचीत कर सकती है और राज्यों को प्रतिनिधित्व देने का निर्णय ले सकती है।
- अभी भारत एवं भूटान के बीच संयुक्त विशेषज्ञ समूह (JGE), संयुक्त तकनीकी टीम (JTT) और संयुक्त विशेषज्ञ टीम (JET) काम कर रहे हैं जो बाढ़ प्रबंधन व पूर्वानुमान पर चर्चा करते हैं।
आवश्यकता
- उत्तर बंगाल में हर साल बाढ़ से जीवन और संपत्ति का नुकसान होता है।
- भूटान की नदियों से आने वाले पानी का बेहतर प्रबंधन न होने से कृषि को भारी क्षति पहुँचती है।
- राज्य का कहना है कि केवल विशेषज्ञ समितियों से समस्या हल नहीं होती है बल्कि स्थानीय जरूरतों और अनुभव को भी शामिल करना आवश्यक है।
- इस आयोग के गठन से जल प्रबंधन पर राज्य की भागीदारी बढ़ेगी और अधिक प्रभावी योजना बन सकेगी।
प्रभाव
- सकारात्मक प्रभाव:
- बाढ़ नियंत्रण के बेहतर उपाय लागू होंगे।
- किसानों और स्थानीय लोगों को राहत मिलेगी।
- भारत-भूटान संबंध अधिक मजबूत होंगे।
- नकारात्मक प्रभाव (यदि न बने):
- हर साल दोहराई जाने वाली बाढ़ की समस्या बनी रहेगी।
- राज्य और केंद्र के बीच विवाद बढ़ सकते हैं।
- आर्थिक और सामाजिक नुकसान जारी रहेगा।
चुनौतियाँ
- भारत-भूटान के बीच समझौते को कानूनी और कूटनीतिक स्वीकृति दिलाना
- वित्तीय संसाधनों की कमी और राज्यों के बीच निधि आवंटन पर विवाद
- आयोग के गठन में समय लगना और इससे तत्काल राहत न मिल सकना
आगे की राह
- केंद्र सरकार को चाहिए कि वह पश्चिम बंगाल और असम जैसे प्रभावित राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल कर स्थायी नदी आयोग पर चर्चा शुरू करे।
- भूटान के साथ जल प्रबंधन और बाढ़ नियंत्रण पर लंबी अवधि का समझौता होना चाहिए।
- स्थानीय प्रशासन, वैज्ञानिक विशेषज्ञ और तकनीकी टीमों को एक साझा प्लेटफॉर्म पर लाकर व्यावहारिक समाधान तैयार किए जाएँ।