(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास) |
संदर्भ
राजस्थान के अजमेर जिले के बांसेली गांव में रेगिस्तानी भूमि पर पहली बार गेहूं की फसल उगाने का प्रयोग मरुस्थलीकरण रोकने की क्षमता रखता है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान (CUoR) के शोधकर्ताओं ने स्वदेशी बायोफॉर्मूलेशन से संचालित ‘रेगिस्तान मिट्टीकरण’ (Desert Soilification) तकनीक का उपयोग किया, जिससे थार मरुस्थल का विस्तार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की ओर रुक सकता है।
क्या है मरुस्थलीकरण
- मरुस्थलीकरण (डेजर्टिफिकेशन) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शुष्क, अर्ध-शुष्क या शुष्क उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों (ड्राईलैंड्स) में उपजाऊ भूमि धीरे-धीरे बंजर व रेगिस्तानी हो जाती है।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, यह प्राकृतिक और मानवीय कारकों से भूमि की क्षरण है जो जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा एवं मानव आजीविका को प्रभावित करती है।
- विश्व की 41% भूमि ड्राईलैंड्स पर है जहाँ मरुस्थलीकरण से प्रतिवर्ष 12 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि खो जाती है और यह क्षेत्र पुर्तगाल से बड़ा है।
- यह प्रक्रिया सूखा, मृदा क्षरण एवं वनस्पति क्षति से तीव्र होती है जिससे 1.5 बिलियन लोग प्रभावित होते हैं।
मुख्य कारण
- अति चराई और वनों की कटाई: पशुओं की अत्यधिक चराई से वनस्पति नष्ट होती है जिससे मृदा कटाव बढ़ता है। ईंधन व निर्माण के लिए वनों की कटाई भूमि को असुरक्षित बनाती है।
- अनुचित कृषि प्रथाएँ: गहन कृषि, रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग और मृदा की उर्वरता में कमी से भूमि बंजर हो जाती है।
- जलवायु परिवर्तन: अनियमित वर्षा, सूखा व बढ़ते तापमान से मृदा की नमी घटती है। मानव-जनित जलवायु परिवर्तन से विगत 40 वर्षों में 13% ड्राईलैंड्स मरुस्थलीकरण की ओर उन्मुख हुई है।
- अन्य: शहरीकरण, लवणीकरण एवं जंगल की आग जैसे प्राकृतिक आपदाएँ अफ्रीका व एशिया में सबसे घातक कारक हैं, जहाँ प्रतिवर्ष 92,000 हेक्टेयर वन भूमि खो जाती है।
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोधी सम्मेलन
- संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोधी सम्मेलन (UNCCD) 17 जून, 1994 को पेरिस में अपनाया गया और दिसंबर 1996 से लागू है।
- यह रियो सम्मेलन के एजेंडा 21 से उत्पन्न एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय ढांचा है जो शुष्क/अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण और सूखे के प्रभावों से निपटने के लिए स्थापित है।
- इसमें 197 से अधिक देश शामिल हैं जो पर्यावरण व विकास को सतत भूमि प्रबंधन से जोड़ता है।
मुख्य प्रावधान
- मरुस्थलीकरण रोधी राष्ट्रीय कार्य योजना (NAP): स्थानीय समुदायों की भागीदारी से मरुस्थलीकरण रोकने के व्यावहारिक कदम
- क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय कार्यक्रम (SRAP/RAP): सहयोगी प्रयास
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समिति (CST): शोध एवं तकनीकी सहयोग को बढ़ावा
- लिंग समानता: महिलाओं की भूमिका पर जोर, खासकर विकासशील देशों में
- उद्देश्य: भूमि क्षरण रोकना, सूखा लचीलापन बढ़ाना और सतत विकास लक्ष्य 15 को समर्थन। इसके लिए 2025-2030 हेतु प्रतिदिन 1 बिलियन डॉलर निवेश की आवश्यकता है।
मरुस्थलीकरण रोकने के लिए नई कृषि तकनीक
मरुस्थलीकरण रोकने के लिए कई नई कृषि तकनीकें विकसित हो रही हैं जो मृदा के पुनर्जनन और जल संरक्षण पर केंद्रित हैं:
- नैनोक्ले तकनीक: तरल नैनोक्ले को रेत में मिलाकर मृदा जैसी संरचना बनाई जाती है जो जल धारण क्षमता बढ़ाती है। यह मिस्र व उत्तर अफ्रीका में सफल रही है।
- चक्रीय कृषि (सर्कुलर फार्मिंग): अपशिष्ट जल को पुनर्चक्रण से सिंचाई, वृक्षारोपण व चारा उत्पादन के लिए उपयोग। सऊदी अरब की तनमिया कंपनी ने वर्ष 2025 तक 5.5 लाख वृक्ष लगाकर 1.14 लाख टन CO2 अवशोषित किया।
- किसान-प्रबंधित प्राकृतिक पुनर्जनन (FMNR): नाइजर में 7 मिलियन हेक्टेयर पर 2.8 करोड़ वृक्ष लगाए, जो कम लागत वाली तकनीक है।
- बायोफॉर्मूलेशन और पॉलीमर: CUoR की तकनीक की तरह है जो रेत कणों के संयोजन से मृदा निर्माण करती है और सूक्ष्मजीवों को उत्तेजित करती है।
- स्मार्ट इरिगेशन और सैटेलाइट मॉनिटरिंग: फार्मोनॉट जैसी तकनीकें मृदा में नमी की निगरानी से जल बचाती हैं। ये तकनीकें जल संरक्षण, उपज वृद्धि और लागत में कमी लाती हैं।
हालिया शोध के बारे में
- CUoR प्रयोग: नवंबर 2024 में 1,000 वर्ग मीटर रेगिस्तानी भूमि पर 13 किग्रा गेहूं-4079 बीज बोए गए और केवल 3 बार की सिंचाई से अप्रैल 2025 में 26 किग्रा/100 वर्ग मीटर उपज (1:20 अनुपात) हुई।
- बायोफॉर्मूलेशन: तीन बायोफॉर्मूलेशनों से रेत कणों को जोड़ा गया, जल धारण बढ़ाया गया और सूक्ष्मजीव सक्रियता से फसल प्रतिरोध बढ़ाया गया।
- दूसरा चरण: जैसलमेर की 100 टन रेत पर बाजरा, ग्वार गम व चना का परीक्षण तथा 54% अधिक उपज।
- सहयोग: कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और बागवानी विभाग की मदद से क्षेत्रीय परीक्षण।
- विस्तार: बाजरा व मूंग जैसी अन्य फसलों पर राजस्थान और अन्य शुष्क क्षेत्रों में।
महत्व
- खाद्य सुरक्षा: बंजर भूमि को उत्पादक बनाकर अफ्रीका और एशिया जैसे क्षेत्रों में भुखमरी रोक सकती है।
- जल संरक्षण: सामान्य 5-6 सिंचाइयों के मुकाबले 3-4 से 50% जल की बचत जल संकट वाले क्षेत्रों के लिए क्रांतिकारी है।
- आर्थिक लाभ: उपज दोगुनी, किसानों की आय बढ़ती है; वैश्विक स्तर पर 42 बिलियन डॉलर की कृषि हानि को कम करती है।
- पारिस्थितिक संतुलन: CO2 अवशोषण, जैव विविधता संरक्षण और मरुस्थल विस्तार रोकना
- सामाजिक प्रभाव: प्रवासन में कमी, स्थानीय समुदायों का सशक्तिकरण। UNCCD के तहत यह सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक।
चुनौतियाँ
मरुस्थलीकरण रोकने की नई तकनीकों के कार्यान्वयन में कई बाधाएं हैं:
- जलवायु अस्थिरता: अनियमित वर्षा और सूखे से तकनीक की प्रभावशीलता पर प्रभाव
- लागत व पहुँच: प्रारंभिक निवेश अधिक व छोटे किसानों के लिए कठिन तथा प्रशिक्षण की कमी
- मृदा की गुणवत्ता: रासायनिक अवशेषों से दीर्घकालिक क्षरण
- सामाजिक-आर्थिक: गरीबी, प्रवासन एवं संघर्ष में वृद्धि और स्थानीय प्रतिरोध
- नीतिगत: योजनाओं का अपर्याप्त कार्यान्वयन, जैसे- ग्रेट ग्रीन वॉल में देरी, वर्ष 2025 तक 1.5 बिलियन हेक्टेयर भूमि पुनर्स्थापना का चुनौतीपूर्ण लक्ष्य
आगे की राह
मरुस्थलीकरण रोकने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी:
- तकनीकी विस्तार: CUoR जैसी तकनीकों को राष्ट्रीय स्तर पर वितरण, नैनोक्ले और FMNR का एकीकरण
- नीतिगत समर्थन: UNCCD के NAP को मजबूत करना, 2025-2030 के लिए 1 बिलियन डॉलर/दिन निवेश
- समुदाय भागीदारी: किसानों को प्रशिक्षण और महिलाओं की भूमिका बढ़ाना
- अनुसंधान: जलवायु मॉडलिंग और स्थानीय पौधों पर फोकस, जैसे- डेजर्ट प्लांट्स
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: ग्रेट ग्रीन वॉल और मिडिल ईस्ट ग्रीन इनिशिएटिव को तेज करना
- ये कदम भूमि पुनर्स्थापना को ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बना सकते हैं।