(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध) |
संदर्भ
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि भारत में श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी दीर्घकालिक वीज़ा (LTV) के लिए पात्र नहीं हैं।
भारत में श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी
- श्रीलंकाई गृहयुद्ध (वर्ष 1983-2009) के दौरान सिंहली-बहुल सरकार और लिट्टे के बीच जातीय हिंसा के कारण बड़ी संख्या में शरणार्थी भारत आए थे।
- लगभग 60,000 शरणार्थी तमिलनाडु के शिविरों और बाहर के कई अन्य शिविरों रहते हैं।
- भारत ने इन शरणार्थियों को मानवीय सहायता प्रदान की, किंतु अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत उन्हें शरणार्थी का दर्जा देने से परहेज किया।
दीर्घकालिक वीज़ा के लिए अपात्र होने के कारण
- भारत द्वारा दीर्घकालिक वीज़ा अफगानिस्तान, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश के उन अल्पसंख्यकों (जैसे- हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध, जैन) को प्रदान किए जाते हैं जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए थे।
- श्रीलंकाई तमिल इस श्रेणी में नहीं आते हैं क्योंकि उनका प्रवासन धार्मिक उत्पीड़न के बजाय गृहयुद्ध एवं जातीय संघर्ष से जुड़ा है।
- नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) भी उन्हें इससे बाहर रखता है।
- नागरिकता के लिए आवश्यक दीर्घकालिक वीज़ा एक से पाँच वर्ष की अवधि के लिए जारी किए जाते हैं।
तमिल शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता
- यद्यपि श्रीलंकाई तमिल दीर्घकालिक वीजा (LTV) के लिए आवेदन करने के पात्र नहीं हैं किंतु विदेशी नागरिक ‘नागरिकता अधिनियम, 1955’ के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।
- वर्ष 1986 के गृह मंत्रालय के एक पत्र के अनुसार जुलाई 1983 या उसके बाद भारत आए किसी भी श्रीलंकाई शरणार्थी को नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता नियम, 1956 के प्रावधानों के तहत नागरिक/पंजीकृत नहीं किया जाना चाहिए।
- ये निर्देश अभी भी लागू हैं।
परिणाम
- श्रीलंकाई तमिल भारतीय नागरिकता के बिना राज्य द्वारा संचालित कल्याणकारी योजनाओं के तहत ‘शरणार्थी’ के रूप में रह रहे हैं।
- यह मानवाधिकारों, एकीकरण एवं पुनर्वास संबंधी चिंताएँ उठाता है।
- यह समुदाय तमिलनाडु सरकार पर दबाव डालता है जिसने उनके लिए स्थायी समाधान की माँग की है।