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प्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि)

चर्चा में क्यों

सर्वोच्च न्यायालय ने ‘प्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम’,1950 (The Emblems and Names (Prevention of Improper Use) Act,) में बी.डी. सावरकर के नाम शामिल करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है। 

अधिनियम के बारे में

  • पारित : यह अधिनियम भारतीय संसद द्वारा वर्ष 1950 में पारित किया गया था। 
  • उद्देश्य : राष्ट्रीय महत्व के प्रतीकों (emblems), चिन्हों, नामों आदि के अनुचित एवं वाणिज्यिक प्रयोग को रोकना।
  • प्रमुख प्रावधान : अधिनियम में यह अनिवार्य किया गया है कि ‘कोई भी व्यक्ति, ऐसे मामलों और ऐसी शर्तों के अधीन, जिन्हें केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाए, को छोड़कर, किसी व्यापार, कारोबार, व्यवसाय या पेशे के प्रयोजन के लिए, या किसी पेटेंट के शीर्षक में, या किसी ट्रेडमार्क या डिजाइन में, अधिनियम की अनुसूची में निर्दिष्ट किसी नाम या प्रतीक का उपयोग नहीं करेगा।
  • प्रमुख लक्ष्य
    • भारत सरकार, राज्य सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, तथा अन्य प्रतिष्ठित संस्थाओं के नामों, प्रतीकों और चिन्हों के अनुचित एवं व्यापारिक उपयोग पर रोक लगाना
    • जनता में भ्रम, धोखाधड़ी या अनुचित लाभ की संभावना को कम करना
    • राष्ट्रीय प्रतीकों और प्रतिष्ठानों की गरिमा एवं सम्मान की रक्षा करना।

अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ

  • प्रतिबंधित प्रतीकों और नामों की सूची: अधिनियम के अंतर्गत एक अनुसूची (Schedule) संलग्न है जिसमें उन नामों और प्रतीकों की सूची है जिनका वाणिज्यिक, विज्ञापन या व्यापारिक प्रयोजनों के लिए उपयोग प्रतिबंधित है।
  • सूची में शामिल नाम/प्रतीक : 
    • भारत सरकार या भारत सरकार का प्रतीक चिन्ह
    • संयुक्त राष्ट्र संघ, WHO, यूनिसेफ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के नाम/प्रतीक
    • महात्मा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, भारत के प्रधानमंत्री, छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम या चित्रात्मक चित्रण शामिल है।
      • कैलेंडरों पर चित्रात्मक उपयोग को छोड़कर, ‘गांधी’, ‘नेहरू’ या ‘शिवाजी’ शब्दों के प्रयोग की अनुमति नहीं है।
    • अशोक चक्र, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय चिह्न आदि।
    • सरकार द्वारा समय-समय पर दिए जाने वाले पदक, बैज या अलंकरणों का भी इसमें उल्लेख है।
    • वर्ष 2004 में, सत्य साईं बाबा द्वारा स्थापित श्री सत्य साईं सेंट्रल ट्रस्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को उन संगठनों में शामिल किया गया जिनके नाम या प्रतीक का उपयोग निषिद्ध है। 
    • वर्ष 2013 में, फेडरेशन इंटरनेशनेल डी फुटबॉल एसोसिएशन (फीफा) का नाम और प्रतीक इस सूची में जोड़ा गया।
  • दंड का प्रावधान : यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम में सूचीबद्ध प्रतीक/नाम का विज्ञापन, व्यापार, लेबल, ब्रांडिंग या किसी अन्य वाणिज्यिक उपयोग के लिए प्रयोग करता है, तो यह दंडनीय अपराध है।
    • इसके लिए पहली बार अपराध पर 500 रुपए तक का जुर्माना लगाया जाएगा एवं बार-बार उल्लंघन पर अधिक दंड निर्धारित किया जा सकता है।
  • सरकार को अधिकार: भारत सरकार को यह अधिकार है कि वह अधिसूचना के माध्यम से किसी नाम, प्रतीक या चिह्न को अधिनियम की अनुसूची में जोड़ सकती है या हटा सकती है।
  • अपवाद (Exception): यदि केंद्र सरकार द्वारा विशेष अनुमति प्रदान की गई हो, तो प्रयोग किया जा सकता है।
    • शैक्षणिक या ऐतिहासिक उद्देश्यों के लिए यदि कोई वैध औचित्य हो।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता

  • आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया, स्टार्टअप्स और विज्ञापन कंपनियाँ कभी-कभी सरकार या प्रतिष्ठित संगठनों के नाम का उपयोग करके लोगों को भ्रमित करने का प्रयास करती हैं।
  • इसलिए यह अधिनियम ब्रांडिंग की नैतिकता सुनिश्चित करने तथा जनहित की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।

इसे भी जानिए!

राष्ट्रीय ध्वज फहराना : एक मौलिक अधिकार

  • वर्ष 1992 में उद्योगपति नवीन जिंदल ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में इस विषय पर एक रिट याचिका दायर की थी।
    • रायगढ़ स्थित जिंदल समूह की एक फैक्ट्री को भारतीय ध्वज संहिता के अनुसार अपने कार्यालय परिसर में राष्ट्रीय ध्वज फहराने से प्रतिबंधित कर दिया गया था।
  • उच्च न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली और कहा कि भारतीय ध्वज संहिता संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर वैध प्रतिबंध नहीं है।
  • भारत संघ ने इस निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की, जिसमें कहा गया कि नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज फहराने की स्वतंत्रता के बारे में दिया गया निर्णय न्यायालय के हस्तक्षेप के अधीन नहीं है।
  • 23 जनवरी 2004 को सर्वोच्च न्यायालय ने संघ की अपील में कोई योग्यता नहीं पाई और फैसला सुनाया कि राष्ट्रीय ध्वज को सम्मान और गरिमा के साथ स्वतंत्र रूप से फहराने का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के अर्थ में एक नागरिक का मौलिक अधिकार है - जो राष्ट्र के प्रति उसकी निष्ठा और भावनाओं और गौरव की अभिव्यक्ति और प्रकटीकरण है।
  • हालांकि, यह स्पष्ट किया कि ध्वज को फहराने का मौलिक अधिकार एक पूर्ण अधिकार नहीं है, बल्कि एक योग्य अधिकार है जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के खंड 2 के तहत उचित प्रतिबंधों के अधीन है, प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950, और राष्ट्रीय सम्मान के अपमान की रोकथाम अधिनियम, 1971, राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग को विनियमित करते हैं।




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