(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारत में खाद्य प्रसंस्करण एवं संबंधित उद्योग- कार्यक्षेत्र एवं महत्त्व, देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास) |
संदर्भ
भारत ने E20 पेट्रोल (20% एथेनॉल और 80% पेट्रोल का सम्मिश्रण) का लक्ष्य वर्ष 2025 में ही हासिल कर लिया है, जबकि यह लक्ष्य वर्ष 2030 के लिए निर्धारित था। यह उपलब्धि भारत की ऊर्जा सुरक्षा, किसानों की आय और पर्यावरणीय लक्ष्यों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण वर्ष 2014 में 1.5% से बढ़कर 2025 में 20% हो गया है।
एथेनॉल के बारे में
- एथेनॉल एक जैव ईंधन (Biofuel) है, जिसे मुख्य रूप से गन्ने, मक्का, धान आदि से तैयार किया जाता है।
- यह एक स्वच्छ ईंधन है जो पेट्रोल के साथ मिलकर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है।
क्या है एथेनॉल सम्मिश्रण (ब्लेंडिंग)
- जब एथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिलाया जाता है तो इसे ‘एथेनॉल ब्लेंडिंग’ कहते हैं।
- उदाहरण:
- E10 = 10% एथेनॉल + 90% पेट्रोल
- E20 = 20% एथेनॉल + 80% पेट्रोल
एथेनॉल ब्लेंडिंग के प्रभाव
- सकारात्मक प्रभाव
- कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी (700 लाख टन तक की कमी)
- पेट्रोल आयात पर निर्भरता में कमी → विदेशी मुद्रा की बचत (₹1.40 लाख करोड़ से अधिक)
- किसानों को गन्ना व अन्य फसलों के लिए स्थायी बाजार
- नकारात्मक प्रभाव
- गन्ना आधारित एथेनॉल में पानी का अत्यधिक खपत होता है (1 टन गन्ने के लिए 60-70 टन पानी)
- भूजल स्तर पर दबाव और भूमि क्षरण की समस्या
- भारत के मरुस्थलीकरण एवं भूमि क्षरण एटलस 2021 में पाया गया कि भारत की लगभग 30% भूमि का क्षरण हो चुका है।
- एथेनॉल उत्पादन में मक्का व चावल जैसी खाद्य फसलों के बढ़ते उपयोग से खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव
E20 जनादेश
- वर्ष 2023 से बेची जाने वाली नई गाड़ियाँ E20 स्टिकर के साथ आ रही हैं।
- यह अनिवार्य करता है कि पेट्रोल में 20% एथेनॉल का मिश्रण हो।
- सर्वेक्षण के अनुसार 2 में से 3 पेट्रोल वाहन मालिक E20 का विरोध कर रहे हैं। उनकी संबंधित चिंताएँ हैं : माइलेज में कमी, इंजन पर अतिरिक्त दबाव और मरम्मत की अधिक लागत तथा पुराने वाहनों में ईंधन-संगतता की समस्या
- सरकार का पक्ष है कि इंजन ट्यूनिंग और नई तकनीक से इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
चुनौतियाँ
- गन्ना उत्पादन में अत्यधिक जल की आवश्यकता और भूजल संकट
- एक टन गन्ने के लिए लगभग 60-70 टन पानी की आवश्यकता होती है। भारत में गन्ना उत्पादन वाले कई क्षेत्रों में 1,500 से 3,000 मिमी. वर्षा नहीं होती है, जो फसल के इष्टतम विकास के लिए आवश्यक है।
- केंद्रीय भूजल बोर्ड की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में गन्ना उत्पादक जिले आस-पास के क्षेत्रों की तुलना में अधिक भूजल निष्कर्षण करते हैं।
- खाद्यान्न फसलों का एथेनॉल उत्पादन में उपयोग → आयात निर्भरता बढ़ने का खतरा
- किसानों की गन्ना आधारित आय पर अधिक निर्भरता
- इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) को अपनाने में भारत की धीमी प्रगति
- अंतर्राष्ट्रीय दबाव, विशेषकर अमेरिका द्वारा एथेनॉल आयात प्रतिबंधों को हटाने की मांग
- रबर, इलास्टोमर्स (Elastomers) एवं प्लास्टिक घटकों जैसी सामग्री संरचना, जो सीधे ईंधन के संपर्क में आती है, को भी E20 संगत सामग्रियों में बदलने की आवश्यकता है।
आगे की राह
- गन्ने पर निर्भरता कम कर विविध स्रोतों (मक्का, धान, बायो-वेस्ट) से एथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देना
- पानी बचाने वाली सिंचाई तकनीकों को अपनाना
- उपभोक्ताओं को कर रियायतें देकर E20 अपनाने के लिए प्रेरित करना
- ईवी और एथेनॉल दोनों के संतुलित विकास पर ध्यान देना ताकि दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित हो।