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बुद्ध के पवित्र अवशेष की प्रदर्शनी 

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ और भारत का इतिहास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू)

संदर्भ

11-18 अक्तूबर, 2025 तक रूसी गणराज्य में कलमीकिया (काल्मिकिया) की राजधानी एलिस्टा में बुद्ध के पवित्र अवशेष की प्रदर्शनी आयोजित की गयी। इन पवित्र अवशेषों को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में बौद्ध भिक्षुओं के प्रतिनिधिमंडल के साथ भेजा गया है। 

प्रमुख बिंदु

  • रूसी गणराज्य में पहली बार आयोजित होने वाली पवित्र अवशेष प्रदर्शनी का आयोजन भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC), राष्ट्रीय संग्रहालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) के सहयोग से आयोजित की गयी। 
  • पवित्र अवशेषों को एलिस्टा के मुख्य बौद्ध मठ में स्थापित किया गया जिसे गेडेन शेडुप चोइकोरलिंग मठ के नाम से जाना जाता है। इसे ‘शाक्यमुनि बुद्ध का स्वर्णिम निवास’ भी कहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण तिब्बती बौद्ध केंद्र है जिसे 1996 में जनता के लिए खोला गया था और यह कलमीक मैदानों से घिरा हुआ है।
  • कलमीकिया क्षेत्र की विशेषता विशाल घास के मैदान हैं। हालाँकि, इसमें रेगिस्तानी क्षेत्र भी शामिल हैं और यह रूस के यूरोपीय क्षेत्र के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित है जो कैस्पियन सागर की सीमा से लगा हुआ है।
  • इसमें अन्य गतिविधियों, जैसे- शाक्य संप्रदाय के प्रमुख, 43वें शाक्य त्रिज़िन रिनपोछे के उपदेश व प्रवचन; तिब्बती भाषा से मूल रूप से अनुवादित 108 खंडों के एक सेट के साथ पवित्र ‘कंजूर’ का प्रस्तुतीकरण शामिल है। 
    • ‘कंजूर’ मंगोलियाई धार्मिक ग्रंथ है। अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ द्वारा यह कंजूर नौ बौद्ध संस्थानों और एक विश्वविद्यालय को भेंट किया गया। ये संस्कृति मंत्रालय के पांडुलिपि प्रभाग से हैं।

काल्मिक समुदाय

  • काल्मिक लोग ओइरात मंगोलों के वंशज हैं जो 17वीं सदी के आरंभ में पश्चिमी मंगोलिया से आकर बसे थे। उनका इतिहास खानाबदोश जीवन शैली से गहराई से जुड़ा है जिसका उनकी संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
  • वे यूरोप में एकमात्र जातीय समूह हैं जो महायान बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। कलमीकिया में तीसरा अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध मंच 24 से 28 सितंबर, 2025 तक राजधानी एलिस्टा में आयोजित किया गया था।

क्या आप जानते हैं?

19वें कुशोक बकुला रिनपोछे लद्दाख के श्रद्धेय बौद्ध भिक्षु और राजनयिक थे जिन्होंने मंगोलिया में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

इसके बाद रूस के तीन क्षेत्रों अर्थात् बुर्यातिया, कलमीकिया और तुवा में बुद्ध धर्म में रुचि को पुनः शुरू करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

हाल के दिनों में अवशेष प्रदर्शनियां

  • हाल ही में बुद्ध के पवित्र अवशेषों को मंगोलिया, थाईलैंड एवं वियतनाम ले जाया गया है। राष्ट्रीय संग्रहालय में स्थित पिपरहवा अवशेषों को वर्ष 2022 में मंगोलिया ले जाया गया, जबकि साँची में स्थित बुद्ध और उनके दो शिष्यों के पवित्र अवशेषों को वर्ष 2024 में थाईलैंड में प्रदर्शनी के लिए ले जाया गया।
  • वर्ष 2025 में सारनाथ से बुद्ध के पवित्र अवशेषों को वर्ष वियतनाम ले जाया गया। रूस के लिए ये अवशेष नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय की ‘बौद्ध गैलरी’ में पूजा के लिए रखे गए हैं। कलमीकिया ले जाए जा रहे पवित्र अवशेष राष्ट्रीय संग्रहालय में स्थित इसी परिवार के अवशेष हैं।

पिपरहवा अवशेष

  • जुलाई के अंत में भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष 127 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद स्वदेश (भारत) आ गए हैं। उल्लेखनीय है कि भारत हांगकांग से पिपरहवा अवशेषों से जुड़े रत्नों को सफलतापूर्वक वापस लाने में सफल रहा, जहां उनकी नीलामी की जा रही थी। 
  • वर्ष 1898 में एक उत्खनन के दौरान विलियम क्लैक्सटन पेप्पे ने उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले (वर्तमान सिद्धार्थनगर जिला) में बर्डपुर के पास पिपरहवा में एक लंबे समय से विस्मृत स्तूप में अस्थियों के टुकड़े, राख एवं रत्नों से भरे पांच छोटे कलश खोजे।
  • बाद में केएम श्रीवास्तव के नेतृत्व में एक टीम ने वर्ष 1971 व वर्ष 1977 के बीच पिपरहवा स्थल पर और उत्खनन किया। टीम को जली हुई अस्थियों के टुकड़ों से भरा एक संदूक मिला और इसे चौथी या पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व का बताया गया। इन उत्खननों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने पिपरहवा को कपिलवस्तु के रूप में पहचाना है।
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