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भारतीय छात्रों का विदेशी शिक्षा पर व्यय : चुनौतियां एवं अवसर

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों व राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय)

संदर्भ

वैश्विक भुगतान कंपनी वाइज तथा रेडसीर स्ट्रैटेजी कंसल्टेंट्स की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय परिवार अपने बच्चों की विदेशी शिक्षा पर भारी व्यय कर रहे हैं और यह व्यय वर्ष 2030 तक दोगुना होने की संभावना है।

विदेशी शिक्षा पर व्यय रिपोर्ट के बारे में

  • इस रिपोर्ट में विदेशी शिक्षा पर भारतीय परिवारों के बढ़ते व्यय और इससे जुड़ी लागतों का विश्लेषण किया गया है।
  • यह रिपोर्ट भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सीमा-पार हस्तांतरण की उच्च लागत एवं समय में देरी जैसे मुद्दों को उजागर करती है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • व्यय में वृद्धि : वर्ष 2024 में भारतीय परिवारों ने विदेशी शिक्षा पर 44 बिलियन डॉलर खर्च किए जो वर्ष 2030 तक 91 बिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है।
  • धन हस्तांतरण : वर्ष 2024 में इस खर्च का लगभग 25% (11 बिलियन डॉलर) भारत से विदेशों में हस्तांतरित धन के माध्यम से हुआ, जिसमें से 95% से अधिक पारंपरिक बैंकिंग चैनलों के माध्यम से किया गया।
  • छिपा हुआ मार्कअप : पारंपरिक बैंक विनिमय दर पर 3-3.5% का मार्कअप लगाते हैं, जिसके कारण वर्ष 2024 में भारतीय परिवारों को 200 मिलियन डॉलर (लगभग 1700 करोड़ रुपए) का नुकसान हुआ।
  • छात्रों की संख्या : वर्ष 2024 में लगभग 7.6 लाख भारतीय छात्र विदेश में अध्ययनरत थे और यह संख्या वर्ष 2030 तक 25 लाख को पार कर सकती है।
  • लोकप्रिय गंतव्य : अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन एवं ऑस्ट्रेलिया प्रमुख शिक्षा केंद्र हैं किंतु जर्मनी, आयरलैंड, यू.ए.ई. और सिंगापुर जैसे उभरते गंतव्य भी आकर्षक हो रहे हैं।
  • कड़े नियम : प्रमुख गंतव्यों ने वीजा और प्रवेश नीतियों को कड़ा किया है, जैसे कनाडा में न्यूनतम जीवन-यापन प्रमाण की राशि को दोगुना करना और ऑस्ट्रेलिया में IELTS स्कोर की आवश्यकता बढ़ाना।

RBI के समक्ष मुद्दे

  • उच्च हस्तांतरण लागत: विश्व बैंक के अनुसार, वर्ष 2024 में वैश्विक औसत हस्तांतरण लागत 6.62% थी, जो भारतीय परिवारों के लिए एक बड़ा वित्तीय बोझ है। RBI इस लागत और समय की देरी को कम करने पर ध्यान दे रहा है।
  • LRS में कमी: RBI के उदारीकृत प्रेषण योजना (LRS) के तहत विदेशी शिक्षा के लिए भेजा गया धन अप्रैल 2025 में 21% घटकर 164 मिलियन डॉलर हो गया।
  • आर्थिक प्रभाव: उच्च हस्तांतरण लागत और विनिमय दर मार्कअप भारतीय परिवारों की वित्तीय स्थिति को कमजोर करते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।
  • डिजिटल मुद्रा की खोज: RBI और सरकार सीमा-पार हस्तांतरण को सस्ता और तेज बनाने के लिए डिजिटल मुद्राओं और राष्ट्रीय त्वरित भुगतान प्रणालियों (जैसे UPI-PayNow लिंकेज) की दिशा में काम कर रहे हैं।

चुनौतियाँ

  • सख्त वीजा एवं प्रवेश नियम : अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने वीजा व प्रवेश नीतियों को सख्त किया है, जिसके कारण भारतीय छात्रों की संख्या प्रभावित हो रही है।
  • विनिमय दर मार्कअप : 3-3.5% का मार्कअप परिवारों के लिए अतिरिक्त वित्तीय बोझ बनता है जो उनके बजट को प्रभावित करता है।
  • उभरते गंतव्यों का सीमित बुनियादी ढांचा : जर्मनी, आयरलैंड जैसे उभरते शिक्षा केंद्रों में अभी भी सीमित सुविधाएँ और उनके बारे में जागरूकता की कमी हैं।
  • LRS की सीमाएँ : LRS के तहत प्रति वर्ष 250,000 डॉलर की सीमा कुछ परिवारों के लिए अपर्याप्त हो सकती है।

आगे की राह

  • हस्तांतरण लागत में कमी : RBI एवं सरकार को डिजिटल भुगतान प्रणालियों, जैसे- UPI-PayNow लिंकेज को और विस्तार देना चाहिए।
  • वैकल्पिक गंतव्य : जर्मनी, आयरलैंड, न्यूजीलैंड और सिंगापुर जैसे सस्ती लागत वाले शिक्षा केंद्रों के बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए।
  • शिक्षा ऋणों में सुधार: सरकार को शिक्षा ऋणों की उपलब्धता और शर्तों को और अधिक लचीला करना चाहिए ताकि परिवारों पर वित्तीय बोझ कम हो।
  • वैश्विक सहयोग : RBI एवं सरकार को अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए ताकि सीमा-पार भुगतान प्रणालियों को अधिक कुशल बनाया जा सके।
  • नीतिगत समर्थन : भारतीय छात्रों को वैश्विक शिक्षा मानकों के लिए तैयार करने के उद्देश्य से कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए।
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