(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक व सामाजिक विकास) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय) |
संदर्भ
बढ़ती वैश्विक व्यापार अनिश्चितताओं और अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50% टैरिफ लगाए जाने के बीच केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 25,060 करोड़ रुपए के व्यापक निर्यात संवर्धन मिशन (EPM) को मंजूरी दी है।
निर्यात संवर्धन मिशन के बारे में
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने निर्यात संवर्धन मिशन (EPM) को मंजूरी दी है जिसकी घोषणा केंद्रीय बजट 2025-26 में की गई थी।
- यह भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को मजबूत करने के लिए विशेष रूप से एम.एस.एम.ई., पहली बार निर्यात करने वाले और श्रम-प्रधान क्षेत्रों के लिए एक प्रमुख पहल है।
निर्यात संवर्धन मिशन की विशेषताएँ
- यह निर्यात संवर्धन के लिए एक व्यापक, लचीला व डिजिटल रूप से संचालित ढांचा प्रदान करेगा।
- यह वित्त वर्ष 2025-26 से 2030-31 तक की समयावधि के लिए 25,060 करोड़ रुपए के वित्तपोषण से संचालित होगी।
- यह अनेक खंडित योजनाओं से एकल, परिणाम-आधारित व अनुकूलनीय तंत्र की ओर रणनीतिक बदलाव का प्रतीक है।
- इसके सहयोगात्मक ढांचे में वाणिज्य विभाग, एम.एस.एम.ई. मंत्रालय, वित्त मंत्रालय व अन्य प्रमुख हितधारक शामिल हैं। इसकी कार्यान्वयन एजेंसी विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) है।
- यह ब्याज समकारी योजना (Interest Equalisation Scheme: IES) और बाजार पहुंच पहल (MAI) जैसी प्रमुख निर्यात सहायता योजनाओं को समेकित करता है तथा उन्हें समकालीन व्यापार आवश्यकताओं के साथ संरेखित करता है।
- इस योजना के तहत हाल ही में वैश्विक टैरिफ वृद्धि से प्रभावित क्षेत्रों को प्राथमिकता के आधार पर सहायता प्रदान की जाएगी, जैसे- वस्त्र, चमड़ा, रत्न एवं आभूषण, इंजीनियरिंग सामान व समुद्री उत्पाद।
निर्यात संवर्धन मिशन के अंतर्गत उप-योजनाएँ
- निर्यात प्रोत्साहन: यह ब्याज अनुदान, निर्यात फैक्टरिंग, संपार्श्विक गारंटी आदि जैसे विभिन्न साधनों के माध्यम से एम.एस.एम.ई. के लिए किफायती व्यापार वित्त तक पहुंच में सुधार लाने पर केंद्रित है।
- निर्यात दिशा: यह गैर-वित्तीय सक्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करता है जो बाजार की तत्परता और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाते हैं, जैसे- निर्यात गुणवत्ता एवं अनुपालन सहायता, अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडिंग, पैकेजिंग, निर्यात भंडारण व रसद आदि के लिए सहायता।
योजना की पृष्ठभूमि- टैरिफ दबाव और निर्यात में मंदी
- भारत के सबसे बड़े निर्यात गंतव्य अमेरिका ने 27 अगस्त, 2025 से प्रभावी 50% टैरिफ लगा दिया है जिससे भारतीय सामान चीन के बाद विश्व स्तर पर सर्वाधिक कर लगाए जाने वाले सामानों में शामिल हो गए।
- सितंबर 2025 में अमेरिका को भारत का निर्यात 12% घट गया। इंजीनियरिंग सामान में 9.4% की गिरावट आई है।
- कपड़ा एवं परिधान निर्यात का 28% अमेरिका को जाता है जोकि सितंबर 2025 में साल-दर-साल 10.34% कम हो गया।
- निर्यात संवर्धन मिशन (EPM) के रूप में सरकार का यह कदम रोजगार की सुरक्षा, निर्यात की गति को बनाए रखने और नए बाजारों में विविधता लाने के लिए एक रणनीतिक प्रतिक्रिया है।
निर्यात संवर्धन मिशन के उद्देश्य
- निर्यातकों, विशेषकर एम.एस.एम.ई. के लिए ऋण की उपलब्धता बढ़ाना तथा ऋण की लागत कम करना
- गैर-टैरिफ बाधाओं, लॉजिस्टिक्स बाधाओं, ब्रांडिंग व बाजार पहुँच चुनौतियों का समाधान करना
- नए व उच्च जोखिम वाले बाजारों में विविधीकरण को सक्षम बनाना
निर्यात संवर्धन मिशन का कार्यान्वयन ढांचा
- विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) इस मिशन का प्रबंधन करेगा, जिसे दो उप-योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित किया जाएगा-
- निर्यात प्रोत्साहन (₹10,401 करोड़) : वित्तीय हस्तक्षेप पर केंद्रित है और इसमें ब्याज सहायता, निर्यात फैक्टरिंग, ऋण गारंटी, ई-कॉमर्स निर्यातकों के लिए क्रेडिट कार्ड और ऋण संवर्धन उपकरण शामिल हैं। इसका उद्देश्य व्यापार वित्त तक पहुँच और कार्यशील पूंजी की तरलता में सुधार करना है।
- निर्यात दिशा (₹14,659 करोड़): गैर-वित्तीय हस्तक्षेपों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा तथा इसमें अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडिंग, पैकेजिंग, व्यापार मेले, वेयरहाउसिंग, लॉजिस्टिक्स सहायता, अंतर्देशीय परिवहन प्रतिपूर्ति और क्षमता निर्माण पहल शामिल होंगी।
- डिजिटल और लचीला ढांचा: यह मिशन समकालीन व्यापार आवश्यकताओं को पूरा करने और गतिशील वैश्विक परिस्थितियों के साथ निर्यात समर्थन को संरेखित करने के लिए डिजिटल रूप से संचालित, व्यापक व लचीला ढांचा प्रदान करता है।
इससे संबंधित कैबिनेट के अन्य निर्णय
- निर्यातकों के लिए 20,000 करोड़ रुपए की ऋण गारंटी योजना (CGSE) का उद्देश्य निर्यातकों को स्वीकृत सीमा के 20% तक अतिरिक्त कार्यशील पूंजी और संपार्श्विक-मुक्त ऋण उपलब्ध कराना है।
- इसके कवरेज में ऋणदाता संस्थाओं को राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी (NCGTC) द्वारा 100% गारंटी शामिल है। इसमें एम.एस.एम.ई. सहित निर्यातक लाभार्थी हैं और इसकी समय-सीमा मार्च 2026 तक वैध है।
- इससे तरलता में वृद्धि, विविधीकरण को समर्थन तथा सुचारू व्यावसायिक परिचालन सुनिश्चित होने की उम्मीद है।
क्षेत्रीय प्रभाव और हितधारक प्रतिक्रियाएँ
- कपड़ा एवं परिधान क्षेत्र : भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ (CITI) ने इस मिशन का स्वागत करते हुए कहा है कि यह भारतीय वस्त्रों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाएगा और बाजार विस्तार के लिए मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) का लाभ उठाने में मदद करेगा।
- एम.एस.एम.ई. सशक्तिकरण : भारतीय निर्यात संगठन महासंघ (FIEO) ने ई.पी.एम. के एकीकृत वित्तीय और गैर-वित्तीय ढांचे की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह उच्च अनुपालन लागत, कमजोर ब्रांडिंग और लॉजिस्टिक्स अक्षमताओं जैसी दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान करता है।
- रत्न एवं आभूषण क्षेत्र : रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (GJEPC) ने ब्याज अनुदान और विस्तारित व्यापार मेला समर्थन जैसे उपायों की सराहना की तथा इन्हें पहली बार निर्यात करने वाले निर्यातकों व एम.एस.एम.ई. के लिए महत्वपूर्ण बताया।
भारतीय निर्यात का प्रदर्शन
- समग्र वृद्धि : भारत का कुल निर्यात (माल व सेवाएँ) अप्रैल-अगस्त 2025 में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 5.19% बढ़ा है।
- कुल मूल्य : अप्रैल-अगस्त 2025 में संयुक्त निर्यात मूल्य 346.10 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- व्यापारिक निर्यात : अप्रैल-अगस्त 2025 के दौरान 2.31% की वृद्धि देखी गई जो 183.74 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- गैर-पेट्रोलियम एवं गैर-रत्न व आभूषण निर्यात : यह इसी अवधि में 7.76% की मजबूत वृद्धि दर्शाते हुए 146.70 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया।
- विकास संचालक : विकास में योगदान देने वाले प्रमुख क्षेत्रों में इंजीनियरिंग वस्तुएँ, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स एवं रसायन शामिल हैं।
- चुनौतियाँ : निर्यात की तुलना में आयात में तीव्र वृद्धि के कारण माल व्यापार घाटा (सितंबर 2025 में) बढ़ गया।
आगे की राह
- व्यापार वित्त को मजबूत करना : डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से एम.एस.एम.ई. के लिए समय पर और किफायती ऋण पहुंच सुनिश्चित करना
- बाजार आसूचना को बढ़ाना : नए निर्यात गंतव्यों की पहचान करने के लिए डेटा-संचालित तंत्र का निर्माण करना
- ब्रांड इंडिया को बढ़ावा देना : वैश्विक विपणन, पैकेजिंग एवं ई-कॉमर्स समर्थन में निवेश करना
- संरचनात्मक बाधाओं का समाधान : लॉजिस्टिक्स अवसंरचना में सुधार करना और अनुपालन बोझ को कम करना
- एफ.टी.ए. का लाभ उठाना : निर्यात बाजारों का विस्तार करने के लिए मौजूदा और आगामी व्यापार समझौतों का उपयोग करना