New
The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June. The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June.

प्रत्यर्पण एवं प्रत्यर्पण ढांचा

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारतीय राज्यतंत्र, राजनीतिक प्रणाली, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय व वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

हाल ही में, 26/11 मुंबई हमले में आरोपी तहव्वुर राणा को अमेरिका से भारत प्रत्यर्पण किया गया है। भारत में प्रत्यर्पण संधियाँ ‘प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962’ द्वारा शासित होती हैं। 

क्या है प्रत्यर्पण

  • संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (UNODC) के अनुसार, प्रत्यर्पण का अर्थ किसी ऐसे व्यक्ति का आत्मसमर्पण है जिसकी माँग अनुरोधकर्ता राज्य (राष्ट्र) द्वारा प्रत्यर्पण योग्य अपराध के लिए आपराधिक अभियोग के लिए की जाती है।
  • सामान्यतया सैद्धांतिक रूप से जिस कथित अपराध के लिए प्रत्यर्पण की माँग की जा रही है, वह अपराध अनुरोधकर्ता राज्य और जिस राज्य से अनुरोध किया जा रहा है, दोनों में अपराध होना चाहिए।
  • प्रत्यर्पण योग्य अपराध से तात्पर्य उस राज्य (राष्ट्र) के साथ प्रत्यर्पण संधि में उल्लेख किए गए अपराध से है। 
  • प्रत्यर्पण संधि न होने की स्थिति में, ऐसे अपराध, जिनके लिए भारत में या (उस) विदेशी राज्य में कम-से-कम 1 वर्ष के कारावास के दंड का प्रावधान हो, उसे भी प्रत्यर्पण योग्य अपराध माना जाता है

प्रत्यर्पण (Extradition) के सामान्य सिद्धांत

  • दोहरी अपराधिता का सिद्धांत: प्रत्यर्पण के लिए अपराध दोनों देशों (अनुरोध करने वाला और अनुरोध प्राप्त करने वाला) के कानूनों में अपराध के रूप में परिभाषित होना चाहिए।
  • विशिष्टता का सिद्धांत: प्रत्यर्पित व्यक्ति पर केवल उसी अपराध का अभियोग चलाया जा सकता है, जिसके लिए प्रत्यर्पण स्वीकृत हुआ है।
  • न्यूनतम गंभीरता का सिद्धांत: अपराध इतना गंभीर होना चाहिए कि वह प्रत्यर्पण को उचित ठहराए, जैसे- न्यूनतम एक वर्ष की सजा का प्रावधान हो।
  • गैर-राजनीतिक अपराध का सिद्धांत: कुछ अपवादों  (जैसे- आतंकवाद) के अलावा राजनीतिक अपराधों के लिए सामान्यतः प्रत्यर्पण नहीं किया जाता है।
  • मानवाधिकार संरक्षण: प्रत्यर्पण से व्यक्ति के मानवाधिकारों (जैसे- यातना या मृत्युदंड का खतरा) का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
  • नागरिकता का सिद्धांत: कुछ देश अपने नागरिकों का प्रत्यर्पण नहीं करते हैं, बल्कि उनके खिलाफ स्वयं मुकदमा चलाते हैं।
  • प्रमाण का सिद्धांत: अनुरोध करने वाले देश को यह सिद्ध करना पड़ता है कि अपराध के लिए पर्याप्त प्रारंभिक साक्ष्य मौजूद हैं।
  • पारस्परिकता का सिद्धांत: प्रत्यर्पण आमतौर पर उन देशों के बीच होता है, जो एक-दूसरे के साथ पारस्परिक प्रत्यर्पण समझौते रखते हैं।

प्रत्यर्पण ढांचा 

वैश्विक स्तर पर प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय प्रत्यर्पण ढांचे

  • संयुक्त राष्ट्र मॉडल प्रत्यर्पण संधि (1990)
  • संयुक्त राष्ट्र मॉडल प्रत्यर्पण कानून (2004)
  • संयुक्त राष्ट्र राष्ट्रपारीय संगठित अपराध रोधी अभिसमय (2000)
  • लंदन योजना 

भारत में प्रत्यर्पण ढांचा 

  • प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 (1993 में संशोधित) द्वारा शासित
  • नोडल प्राधिकरण : विदेश मंत्रालय 
    • प्रत्यर्पण अनुरोध विदेश मंत्रालय के माध्यम से गृह मंत्रालय को भेजा जाता है
  • प्रत्यर्पण पर अंतिम निर्णय : भारत सरकार द्वारा
    • हालाँकि, उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
  • आवश्यक शर्त : उक्त राष्ट्र के साथ प्रत्यर्पण संधि या पारस्परिक व्यवस्था की आवश्यकता
  • भारत की प्रत्यर्पण संधियाँ : कनाडा, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम, बांग्लादेश, अमेरिका सहित 48 देशों के साथ

प्रत्यर्पण से संबंधित चुनौतियाँ 

  • राजनीतिक अपराध एवं आपराधिक अपराध के बीच का अंतर 
  • नागरिकता संबंधित जटिल कानूनी और कूटनीतिक प्रक्रियाएँ
  • कुछ देशों (जैसे पाकिस्तान) के साथ संधि न होने से प्रत्यर्पण में समस्या 
  • अलग-अलग कानूनी प्रणालियाँ 
  • मानवाधिकार संबंधी विवाद
  • राजनीतिक हस्तक्षेप (जैसे- चीन एवं हांगकांग के बीच विवाद)

इसे भी जानिए!

यूरोपीय संघ में लागू यूरोपीय गिरफ्तारी वारंट (European Arrest Warrant : EAW) ने यूरोपीय संघ के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर लंबी प्रत्यर्पण प्रक्रियाओं को प्रतिस्थापित किया। यह आपराधिक मुकदमा चलाने या हिरासत में सजा या हिरासत में रखने के उद्देश्य से लोगों को आत्मसमर्पण करने के लिए डिज़ाइन की गई न्यायिक प्रक्रियाओं को बेहतर व सरल बनाता है।

लंदन स्कीम एवं भारत 

  • आधिकारिक नाम : London Scheme for Extradition within the Commonwealth या कॉमनवेल्थ स्कीम फॉर एक्सट्राडिशन
  • प्रारंभ : वर्ष 1966 में (यथासमय संशोधित)
  • विशेषता : राष्ट्रमंडल देशों के बीच प्रत्यर्पण के लिए सहकारी एवं मानकीकृत ढांचा
  • समझौता की प्रकृति : गैर-बाध्यकारी समझौता 
    • इसे देश अपने घरेलू कानूनों के तहत लागू करते हैं।
  • उद्देश्य : राष्ट्रमंडल देशों (भारत, यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर आदि) के बीच अपराधियों के प्रत्यर्पण में सहयोग बढ़ाना
  • लाभ : औपचारिक संधि न होने पर भी प्रत्यर्पण को सरल बनाना।
  • उदाहरण : संजीव चावला (क्रिकेट सट्टेबाजी मामले में यू.के. से भारत प्रत्यर्पण)
  • वैश्विक संदर्भ : 54 राष्ट्रमंडल देशों तक सीमित
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR