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भारत में प्रथम रेड लिस्ट सर्वेक्षण

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र)

चर्चा में क्यों

भारत में पौधों और जानवरों की प्रजातियों का पहला सर्वेक्षण किया जाएगा, जो यह मूल्यांकन करेगा कि ये प्रजातियाँ विलुप्त होने के कितने जोखिम में हैं। 

प्रथम रेड लिस्ट सर्वेक्षण के बारे में

  • यह पहल, जिसे ‘भारतीय वनस्पतियों और जीवों की राष्ट्रीय लाल सूची मूल्यांकन’ कहा जाता है, भारत की जैव विविधता की सुरक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण कदम है। 
  • इस पहल के अंतर्गत लगभग 11,000 प्राथमिकता वाली प्रजातियों का मूल्यांकन किया जाएगा और यह वर्ष 2030 तक पूरी होने की उम्मीद है। 

उद्देश्य 

  • पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य एक समन्वित, विज्ञान-आधारित रेड लिस्टिंग प्रणाली स्थापित करना है, जो भारतीय प्रजातियों की संरक्षण स्थिति को सटीक रूप से दर्शाए। 
  • योजना के तहत 2030 तक वनस्पतियों और जीवों पर राष्ट्रीय रेड डाटा पुस्तकें प्रकाशित करने का लक्ष्य है। 
    • इस पुस्तक के माध्यम से संरक्षण योजना और खतरे के शमन के लिए एक केंद्रीय संसाधन तैयार किया जाएगा।

कार्यप्रणाली 

  • भारत के प्रमुख संगठन भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) और भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) इस परियोजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। 
  • इसके अलावा, IUCN इंडिया, सीएसएस: इंडिया - डब्ल्यूटीआई और IUCN स्पीशीज सर्वाइवल कमीशन नेटवर्क भी इसमें सहयोग करेगा।

वित्तीय सहयोग

  • इस परियोजना के लिए 95 करोड़ रुपये का अनुमानित बजट तय किया गया है, जिसमें से 80 करोड़ रुपये BSI और ZSI द्वारा प्रदान किए जाएंगे।
  • साथ ही, 15 करोड़ रुपये अन्य गतिविधियों जैसे प्रशिक्षण, कार्यशालाओं, विशेषज्ञ परामर्श आदि के लिए आवंटित किए गए हैं।

महत्त्व

  • भारत ने पहले से ही कई लुप्तप्राय प्रजातियों को अपनी विभिन्न 'अनुसूचियों' में सूचीबद्ध किया है, लेकिन यह नया मूल्यांकन विधि इन प्रजातियों के सामने आने वाले खतरों का सबसे सटीक आकलन प्रदान करेगी। 
  • यह आकलन न केवल इन प्रजातियों की वर्तमान स्थिति को समझने में मदद करेगा, बल्कि संरक्षण उपायों को भी सटीक रूप से निर्देशित करेगा। 
  • इस प्रक्रिया की कार्यप्रणाली अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की लाल सूची के अनुरूप होगी, जो दुनिया भर में प्रजातियों के विलुप्त होने के जोखिम का आकलन करती है और उन्हें सूचीबद्ध करती है। 
  • इसके माध्यम से भारत अपने जैविक संसाधनों की सुरक्षा के लिए एक विज्ञान-आधारित और समन्वित प्रणाली स्थापित करेगा।

अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के बारे में

  • वर्ष 1948 में स्थापित, IUCN अब दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे विविध पर्यावरण नेटवर्क है, जो हमारे 1,400 से ज़्यादा सदस्य संगठनों और 17,000 विशेषज्ञों के ज्ञान, संसाधनों और पहुँच का उपयोग करता है। 
  • यह विविधता और विशेषज्ञता, IUCN को प्राकृतिक दुनिया की स्थिति और उसकी सुरक्षा के लिए आवश्यक उपायों पर एक वैश्विक प्राधिकरण बनाती है। 
  • IUCN लाल सूची ने अब तक 1,69,420 प्रजातियों का मूल्यांकन किया है, और वर्ष 2030 तक 94,000 अतिरिक्त प्रजातियों का आकलन करने की योजना बनाई है। 
  • यह सूची संकटग्रस्त प्रजातियों के विलुप्त होने के जोखिम का वैज्ञानिक रूप से सुदृढ़ आकलन प्रदान करती है और इसका उद्देश्य वैश्विक जैव विविधता की रक्षा के लिए एक मानक स्थापित करना है।

जैव विविधता का संकट

  • लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट (2024) के अनुसार, वैश्विक जैव विविधता में गंभीर गिरावट आई है। 1970 और 2020 के बीच 5,495 कशेरुकी प्रजातियों की औसत जनसंख्या में 73% की कमी आई है, जिसमें मीठे पानी की प्रजातियों में 85% की गिरावट सबसे गंभीर है। इसके साथ ही, 40% से अधिक पादप प्रजातियाँ अब विलुप्त होने के कगार पर हैं। 
  • यह रिपोर्ट यह दर्शाती है कि प्रजातियों के विलुप्त होने की वर्तमान दर प्राकृतिक पृष्ठभूमि दर से 1,000 से 10,000 गुना अधिक है, जो मानव गतिविधियों द्वारा उत्पन्न जैव विविधता के अभूतपूर्व नुकसान का संकेत देती है।

भविष्य की राह

  • भारत की इस पहल का उद्देश्य जैव विविधता की रक्षा करना और विलुप्त होने की कगार पर खड़ी प्रजातियों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाना है।
  • यदि यह परियोजना सफल होती है, तो यह न केवल भारत के जैविक संसाधनों को संरक्षित करने के लिए एक ठोस कदम होगा, बल्कि यह दुनिया भर में अन्य देशों के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत बनेगा, जो जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में समान प्रयास कर रहे हैं। 
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