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आंध्र प्रदेश की लोक कलाएं : संरक्षण की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल व समाज, भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू)

संदर्भ 

आंध्र प्रदेश की 80 से अधिक लोक कला परंपराएँ सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये कला परंपराएँ न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि सामाजिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक मूल्यों को संजोए रखती हैं। हालांकि, संरक्षण की कमी एवं आधुनिक मनोरंजन के बढ़ते प्रभाव के कारण ये विलुप्त होने की कगार पर हैं।

प्रमुख संकटग्रस्त लोक कलाएँ

थोलु बोम्मलाटा (Tholu Bommalata)

  • परिचय : यह आंध्र प्रदेश की एक पारंपरिक छाया कठपुतली कला है जिसका नाम तेलुगु भाषा के ‘थोलु’ (चमड़ा/लेदर) और ‘बोम्मलाता’ (कठपुतली नृत्य) से मिला है। 
  • उत्पत्ति : इस प्राचीन लोक कला की उत्पत्ति लगभग तीसरी शताब्दी ईस्वी में मानी जाती है। 
  • प्रमुख विशेषताएँ : इसमें रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्यों एवं पौराणिक कथाओं पर आधारित प्रदर्शन शामिल है। 
  • इस कला में चमड़े से बनी कठपुतलियों का उपयोग होता है जो रंगीन एवं विस्तृत चित्रों से सजी होती हैं। 

जमुकुला पाटा (Jamukula Pata)

  • परिचय : यह पारंपरिक लोक संगीत एवं नाट्य कला है जो यह मुख्यतः दलित व पिछड़ी जातियों के बीच लोकप्रिय है।  
  • मुख्य विषय : यह ग्रामीण जीवन की कहानियाँ, लोक जीवन के संघर्ष, सांस्कृतिक एवं धार्मिक विषयों पर आधारित होता है।
  • विशेषताएँ : जमुकुला पाटा का प्रदर्शन तीन कलाकारों द्वारा किया जाता है जिसमें  एक ‘पटाकुडु’ (मुख्य गायक/कथावाचक) और दो अन्य गायक शामिल होते हैं। 
  • इसमें लोकगीतों, नाटकीय संवादों एवं नृत्य का संयोजन होता है।

तप्पेटा गुल्लु (Tappeta Gullu)

  • परिचय : यह एक पारंपरिक धार्मिक नृत्य कला है जो मुख्यत: स्थानीय आदिवासी एवं ग्रामीण समुदायों द्वारा की जाती है।
  • मुख्य विषय : इसका संबंध वर्षा देवता एवं गंगम्मा देवी की पूजा से है। इसे बारिश के लिए किया जाने वाला लोक नृत्य भी कहा जाता है।
  • प्रमुख विशेषताएँ : इस नृत्य में नर्तक टखने में घंटियां (Ankle Bells) पहनते हैं और छाती पर छोटा ढोल (ड्रम) बांधकर उसका वादन करते हुए नृत्य करते हैं।
  • यह नृत्य सामूहिक रूप से प्राय: गाँवों में धार्मिक त्योहारों एवं विशेष अवसरों पर किया जाता है।

पुली वेशलु (Puli Veshalu)

  • परिचय : इसे बाघ नृत्य के रूप में भी जाना जाता है। यह नृत्य विशेष रूप से दशहरे के अवसर पर आयोजित किया जाता है।  
  • उद्देश्य : इस नृत्य का मुख्य उद्देश्य देवी दुर्गा की पूजा करना और बाघ के रूप में नृत्य करके शक्ति एवं साहस का प्रतीक बनाना है।
  • प्रमुख विशेषताएँ : इस नृत्य में कलाकार अपने शरीर को बाघ जैसी धारियों एवं रंगों से सजाते हैं।
  • नृत्य के साथ पारंपरिक संगीत का उपयोग किया जाता है जिसमें ढोल, नगाड़ा एवं अन्य वाद्ययंत्र शामिल होते हैं।

हरिकथा (Harikatha)

  • परिचय : हरिकथा एक पारंपरिक भारतीय कला रूप है जो नृत्य, संगीत एवं कथा का एक अद्भुत मिश्रण होता है, जिसमें धार्मिक व नैतिक शिक्षाएँ प्रस्तुत की जाती हैं। 
  • उद्देश्य : हरिकथा का मुख्य उद्देश्य भगवान श्रीकृष्ण एवं अन्य हिंदू देवताओं की कहानियों के माध्यम से भक्ति व ज्ञान का प्रसार करना है।
  • संरचना : हरिकथा का प्रदर्शन आमतौर पर एक कलाकार द्वारा किया जाता है जिसे ‘कथाकार’ कहा जाता है। 
  • इसमें कर्नाटक संगीत शैली का प्रयोग होता है तथा वीणा, मृदंगम, हारमोनियम, कंजिरा जैसे वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है।

लोक कलाओं की विलुप्ति के कारण

  • सरकारी संरक्षण की कमी : सांस्कृतिक कार्यक्रमों की संख्या सीमित है। वर्ष में केवल 3-4 बार विजयनगरम उत्सव और पायडिथल्ली अम्मावारी कल्याणोत्सव के दौरान ही इनका आयोजन होता है।
  • आर्थिक अस्थिरता : युवा पीढ़ी में इन कलाओं के प्रति अरुचि बढ़ रही है क्योंकि उन्हें इनसे आजीविका का कोई ठोस साधन नहीं दिखता है।
  • सामाजिक उपेक्षा : लोक कलाओं को समाज में उपेक्षित दृष्टि से देखा जाता है जिससे कलाकारों को प्रोत्साहन नहीं मिलता है।
  • गुरु-शिष्य परंपरा का टूटना : वृद्ध कलाकारों के पास शिष्य नहीं हैं जिससे पारंपरिक ज्ञान का ह्रास हो रहा है।
  • आधुनिक मनोरंजन का प्रभाव : टी.वी., इंटरनेट एवं पाश्चात्य संस्कृति का बढ़ता प्रभाव युवा पीढ़ी को इन कलाओं से दूर कर रहा है। आधुनिक मनोरंजन के विकल्पों के कारण पारंपरिक कलाओं की लोकप्रियता में कमी आई है।

संरक्षण हेतु सुझाव

  • सरकारी हस्तक्षेप : वरिष्ठ कलाकारों के लिए विशेष पेंशन, राज्य स्तर पर लोककला अकादमियाँ और वार्षिक उत्सवों में नियमित मंच उपलब्ध कराना
  • शिक्षा प्रणाली में एकीकरण : स्कूलों-कॉलेजों में लोककला प्रशिक्षण और आर्ट्स एंड कल्चर विषय के अंतर्गत इन्हें शामिल करना
  • डिजिटल संरक्षण : प्रदर्शन को रिकॉर्ड कर डिजिटल माध्यमों पर प्रचार और यूट्यूब, सोशल मीडिया, ऑनलाइन वर्कशॉप
  • पर्यटन के साथ एकीकरण : राज्य पर्यटन विभाग द्वारा सांस्कृतिक सर्किट बनाना और प्रत्येक पर्यटन स्थल पर सांस्कृतिक प्रदर्शन अनिवार्य करना
  • युवा प्रोत्साहन कार्यक्रम : छात्रवृत्ति, प्रशिक्षण शिविर, प्रमाण-पत्र से लोककलाओं को जीविका से जोड़ने का प्रयास

निष्कर्ष 

लोक कलाएँ केवल मनोरंजन का साधन नहीं होती हैं, वे समाज की आत्मा होती हैं। थोलु बोम्मलाटा से लेकर हरिकथा तक आंध्र प्रदेश की लोक कलाएं हमारे इतिहास, संस्कृति एवं सामूहिक स्मृति की अमूल्य निधि हैं। यदि समय रहते उचित संरक्षण नहीं मिला, तो यह धरोहर इतिहास बन जाएगी। सरकार, समाज एवं नागरिक समाज को मिलकर इन्हें जीवित रखना होगा वरना ये लोक कलाएँ केवल शोधपत्रों और संग्रहालयों तक ही सीमित रह जाएंगी।

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