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कारगिल विजय से पहलगाम तक: भारत की सुरक्षा रणनीति का नया दौर

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन- संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच संबंध)

संदर्भ

26 जुलाई, 2025 को भारत में कारगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ मनाई गई। यह अवसर न केवल भारतीय सशस्त्र बलों की वीरता को याद करने का है, बल्कि इस दिन भारत की सुरक्षा रणनीति में आए ऐतिहासिक बदलावों को समझने का भी है। हाल की पहलगाम आतंकी घटना और उसके प्रत्युत्तर में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब आतंकवाद के खिलाफ नई नीति एवं निर्णायक शक्ति के साथ आगे बढ़ रहा है।

कारगिल विजय दिवस के बारे में

  • प्रतिवर्ष 26 जुलाई को कारगिल युद्ध (1999) में भारत की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • यह दिन भारतीय सैनिकों के साहस, त्याग एवं राष्ट्रभक्ति को सम्मानित करने के लिए समर्पित है।
  • इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तानी सेना को पीछे धकेलते हुए अपने कब्जे वाले इलाकों को पुनः प्राप्त कर लिया था।

कारगिल युद्ध : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • भारत ने मई 1998 में खुद को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र घोषित किया, जिसके जवाब में पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किए।
  • वर्ष 1999 में भारत एवं पाकिस्तान के बीच संबंध सुधारने के प्रयास के तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर यात्रा की।
  • इसी दौरान पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर की ऊँचाइयों में गुप्त रूप से घुसपैठ कर ली।
  • परमाणु हथियारों की मौजूदगी के बावजूद यह एक सीमित युद्ध के रूप में लड़ा गया और भारत ने साहसिक प्रदर्शन से विजय प्राप्त की।

पारंपरिक युद्ध के स्वरूप में परिवर्तन

  • परमाणु छाया में सीमित युद्ध की अवधारणा साकार हुई।
  • खुफिया तंत्र की विफलता, उपकरणों की कमी और अधिक ऊँचाई पर युद्ध की तैयारी में कमजोरी उजागर हुई।
  • युद्ध के बाद कारगिल समीक्षा समिति ने कई सुधारात्मक सिफारिशें कीं, जिनके तहत-
    • रक्षा खुफिया एजेंसी (DIA: 2002) एवं राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO: 2004) की स्थापना हुई।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) एवं राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) जैसी संस्थाओं को अधिक मजबूत किया गया।
    • कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत (Cold Start Doctrine) और माउंटेन कॉर्प्स (Mountain Corps) जैसे सैन्य सिद्धांतों की नींव रखी गई।
    • आधुनिक युद्धक उपकरणों की खरीद एवं स्वदेशीकरण (Make in India Defence) को प्राथमिकता दी गई।

महत्व

  • कारगिल युद्ध ने भारत को यह सिखाया कि सामरिक स्वावलंबन, संयुक्त सैन्य समन्वय और खुफिया सुधार समय की आवश्यकता हैं।
  • इसने भारतीय सेना की साहसिकता एवं दृढ़ इच्छाशक्ति को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित किया।
  • भारत ने यह संदेश दिया कि वह अपनी संप्रभुता और सीमाओं की रक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाएगा।

सुरक्षा रणनीति में बदलाव

  • पठानकोट, उरी एवं पुलवामा जैसे आतंकी हमलों के बाद भारत ने आक्रामक प्रतिरोध नीति अपनाई।
  • सर्जिकल स्ट्राइक (2016) और बालाकोट एयर स्ट्राइक (2019) ने पाकिस्तान को सीधा संदेश दिया।
  • पहलगाम आतंकी हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर (2025) अब तक का सबसे निर्णायक प्रतिशोध रहा, जिसमें:
    • पाकिस्तान में 9 आतंकी अड्डे नष्ट किए गए।
    • 11 सैन्य हवाई ठिकानों को निष्क्रिय किया गया।
    • ब्रह्मोस मिसाइल द्वारा एक संभावित परमाणु हथियार भंडारण केंद्र को भी निशाना बनाया गया।

चुनौतियाँ

  • नवीन सुरक्षा खतरे : आतंकवाद अब केवल सीमित युद्ध तक नहीं रहा, बल्कि हाइब्रिड वॉरफेयर में बदल चुका है।
  • साइबर एवं ड्रोन हमले : आधुनिक युद्ध अब डिजिटल माध्यमों से भी लड़े जा रहे हैं।
  • पड़ोसी देशों की भूमिका : चीन एवं पाकिस्तान की संयुक्त रणनीति एक नया खतरा प्रस्तुत करती है।
  • अंतर्विरोधी राजनीति : रक्षा नीतियों में राष्ट्रीय एकमत की कमी कभी-कभी सुरक्षा तैयारियों को प्रभावित कर सकती है।

आगे की राह

  • सुरक्षा नीतियों का निरंतर अद्यतन : तकनीकी एवं रणनीतिक रूप से हमेशा तैयार रहना होगा।
  • स्वदेशी रक्षा निर्माण : आत्मनिर्भर भारत के तहत रक्षा उत्पादन में अधिक तेज़ी लाई जाए।
  • युवाओं की सैन्य भागीदारी : रक्षा सेवाओं में युवा प्रतिभाओं की भागीदारी बढ़ाई जाए।
  • सांस्कृतिक एवं मानसिक सुरक्षा : समाज में देशभक्ति एवं सुरक्षा जागरूकता बढ़ाई जाए।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग : वैश्विक मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ भारत की स्थिति को अधिक मज़बूत किया जाए।
  • सतर्कता : भारत को आतंकी हमलों व सीमाओं की अवहेलना को रोकने के लिए प्रत्येक स्तर पर सतर्क एवं सजग रहना होगा। 
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