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जी-4 विदेश मंत्रियों की बैठक

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ और मंच-उनकी संरचना, अधिदेश; द्विपक्षीय, क्षेत्रीय व वैश्विक समूह तथा भारत से सम्बंधित अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार; भारत के हितों पर विकसित व विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ग्रुप-4 या जी-4(G4) देशों - भारत,ब्राज़ील,जापान और जर्मनी के विदेश मंत्रियों ने एक आभासी बैठक में भाग लिया।

प्रमुख बिंदु :

  • जी-4 देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद(United Nations Security Council – UNSC)की स्थाई सदस्यता की माँग कर रहे हैं।
  • जी-4 ने एक संयुक्त वक्तव्य के द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र के दौरान ठोस और समयबद्ध परिणामों की तलाश करने की बात की है।
  • ध्यातव्य है कि 24 अक्तूबर,2020 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं।
  • जी-4 विदेश मंत्रियों ने वर्ष 2005 के विश्व शिखर सम्मेलन में राज्य और सरकार के प्रमुखों द्वारा परिकल्पित सुरक्षा परिषद के प्रारंभिक और व्यापक सुधार की दिशा में निर्णायक कदम उठाने के अपने संकल्प को पुनः दोहराया।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005 का विश्व शिखर सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय न्यूयॉर्क में आयोजित किया गया था।
  • इस शिखर सम्मलेन में सभी सरकारों ने वर्ष 2015 तक सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों  (Millennium Development Goals) को प्राप्त करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की थी।
  • इस सम्मलेन द्वारा दो नए निकायों की स्थापना की गई थी,(1) युद्ध के माहौल से शांति की ओर बढ़ने में देशों की मदद करने के लिये शांति निर्माण आयोग और (2)एक मज़बूत मानवाधिकार परिषद।

UNSC सुधारों पर ग्रुप-4 के विचार:

  • अफ्रीका का अधिक -से- अधिक प्रतिनिधित्त्व सुनिश्चित करना: ग्रुप-4 ने अफ्रीका को स्थाई और अस्थाई दोनों श्रेणियों में प्रतिनिधित्व दिये जाने की सलाह दी, ताकि यह महाद्वीप दोनों श्रेणियों में खुद को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा समुचित प्रतिनिधित्त्व न मिलने के अन्याय से उबरकर एक सशक्त स्थिति में पहुँच सके।
  • विकासशील देशों और संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख योगदानकर्ताओं की बढ़ी भूमिका:  ग्रुप-4 ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को अधिक वैध, प्रभावी और प्रतिनिधित्त्व पूर्ण बनाने के लिये स्थाई (5 से 11) और गैर-स्थाई (10 से 14 तक) सीटों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • स्थाई सीटों के बारे में समूह ने कहा कि इन सीटों को निम्न तरीकों से चुना जाना चाहिये: अफ्रीकी देशों में से दो; एशियाई देशों में से दो; लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों में से एक;पश्चिमी यूरोपीय और अन्य देशों में से एक ।
  • जबकि गैर-स्थाई सदस्यों के लिये सुझाई गई विधियाँ हैं :अफ्रीकी देशों में से एक;एशियाई देशों में में से एक; पूर्वी यूरोपीय देशों में से एक; लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों में से एक।
  • पहले से प्रस्तावित UNSC सुधारों का विरोध इसके पाँच स्थाई सदस्यों (P5) द्वारा किया गया था, क्योंकि इन सुधारों में नए सदस्यों के लिये भी वीटो की शक्ति (रिज़ाली प्लान - Rizali Plan) की माँग की गई थी। हालाँकि, बाद में नए देशों के लिये वीटो की शक्ति को वापस लेने का फैसला किया गया, जिसे पी-5 देशों (रिज़ाली रिफॉर्म प्लान) द्वारा स्वीकार कर लिया गया था।
  • पाठ -आधारित वार्ता: ग्रुप-4 देशों ने सुधार चाहने वाले अन्य देशों और समूहों के साथ मिलकर पाठ- आधारित वार्ता (Text-Based Negotiations-TBN) शुरू करने की बात भी दोहराई।
  • भारत संयुक्त राष्ट्र में TBN का एक प्रस्तावक देश है,जबकि सुरक्षा परिषद में किसी सुधार के विरोध में चीन सहित अन्य देश अंतर-सरकारी वार्ताओं (Inter-Governmental Negotiations–IGN) के लिये इस प्रकार की किसी पाठ-आधारित वार्ता करने से यह कहते हुए बच रहे हैं कि यह मामला बहुत संवेदनशील है।
  • अंतर-सरकारी वार्ताओं पर चिंता: सुरक्षा परिषद में सुधारों से जुड़ी अंतर-सरकारी वार्ताओं (IGN) के दो सत्र फरवरी और मार्च 2020 में कोविड-19 के कारण स्थगित कर दिये गए थे,जिनका आयोजन किया जा सकता था।
  • देशों ने चिंता व्यक्त की कि IGN में आवश्यक खुलेपन और पारदर्शिता का अभाव है और इसका कारण संयुक्त राष्ट्र की त्रुटिपूर्ण कार्य-विधियाँ हैं।
  • अंतर-सरकारी वार्ताओं में आम अफ्रीकी स्थिति का एक प्रतिबिम्ब भी दिखना चाहिये, जैसा कि एज़ुल्विनी सहमति(Ezulwini Consensus) और सर्ट घोषणा (Sirte Declaration) में सुनिश्चित किया गया था।

प्रारंभिक परीक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण तथ्य:

  • एज़ुल्विनी सहमति (Ezulwini Consensus): अंतर्राष्ट्रीय सम्बंधों और संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिये अफ्रीकी संघ ने एज़ुल्विनी सहमति (2005) पर हामी भरी थी। यह सहमति अधिक प्रतिनिधित्त्व वाली और लोकतांत्रिक सुरक्षा परिषद की बात करती है,जिसमें विश्व के अन्य भागों की तरह अफ्रीका को भी उसके हिस्से का प्रतिनिधित्त्व देने की बात की गई थी।
  • सर्ट घोषणा (Sirte Declaration): सर्ट घोषणा (1999) अफ्रीकी संघ की स्थापना के लिये अपनाया गया संकल्प था।

जी-4 देश:

  • जी-4 जापान, जर्मनी, भारत और ब्राज़ील देशों का एक समूह है। ये सभी देश सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिये एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।
  • इस समूह ने बहुपक्षवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता लगातार व्यक्त करते हुए सुरक्षा परिषद की संरचना में सुधार की माँग भी हमेशा उठाई है।

कॉफी क्लब या यू.एफ.सी. (Coffee Club or Uniting for Consensus- UFC)

  • यह उन देशों का समूह है जो सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता में विस्तार और G-4 देशों की स्थाई सदस्यता के प्रयासों का विरोध करते हैं।
  • इटली, पाकिस्तान, मेक्सिको, मिस्र, स्पेन, अर्जेंटीना और दक्षिण कोरिया जैसे 13 देश सक्रिय रूप से इस समूह में शामिल हैं।
  • इस क्लब के देश अस्थाई सदस्यता के विस्तार की बात करते हैं और इन देशों की आशंका मूलतः व्यक्तिगत हितों पर अधिक टिकी हुई है। जैसे- पाकिस्तान भारत की स्थाई सदस्यता का विरोध करता है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC):

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक महत्त्वपूर्ण इकाई है, जिसका गठन वर्ष 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान किया गया था । अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन इसके पाँच स्थाई सदस्य हैं।
  • सुरक्षा परिषद के सभी स्थाई सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है। इन स्थाई सदस्य देशों के अतिरिक्त 10 अन्य देशों को दो वर्ष के लिये अस्थाई सदस्य के रूप में भी चुना जाता है।
  • सुरक्षा परिषद के स्थाई और अस्थाई सदस्यों को एक-एक महीने के लिये बारी-बारी से सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष बनाया जाता है।
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