
- गैस फ्लेयरींग वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र में एक पुरानी लेकिन अब तक पर्याप्त रूप से अनदेखी की गई पर्यावरणीय चिंता है।
- विश्व बैंक की ग्लोबल गैस फ्लेयरींग ट्रैकर रिपोर्ट 2024 के अनुसार, वर्ष 2023 में गैस फ्लेयरींग में 7% की वृद्धि हुई, जिससे 2.3 करोड़ टन अतिरिक्त CO₂ उत्सर्जन हुआ।
- यह वृद्धि न केवल अंतर्राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को कमजोर करती है, बल्कि तेल और गैस उद्योग में लगातार बनी ढांचागत और नीतिगत खामियों को भी उजागर करती है।
गैस फ्लेयरींग क्या है?
- गैस फ्लेयरींग वह प्रक्रिया है, जिसमें कच्चे तेल के उत्खनन के दौरान उप-उत्पाद के रूप में निकली प्राकृतिक गैस को जला दिया जाता है।
- यह आमतौर पर उन स्थानों पर किया जाता है जहाँ गैस को संग्रहित, प्रसंस्कृत या परिवहन करने की व्यवस्था नहीं होती — जैसे दूरदराज या समुद्री तेल क्षेत्रों में।
गैस फ्लेयरींग के दो प्रमुख प्रकार:-
- रूटीन फ्लेयरींग: तेल उत्पादन के दौरान नियमित रूप से होने वाला फ्लेयरींग।
- आपातकालीन फ्लेयरींग: जब दबाव बढ़ जाता है या उपकरण विफल होते हैं, तब सुरक्षा के लिए किया जाता है।
गैस फ्लेयरींग क्यों किया जाता है?
सुरक्षा उपाय
- यह गैस संचयन और दबाव वृद्धि को रोकता है जो विस्फोट या आग का कारण बन सकता है।
- गहरे समुद्र या रेगिस्तानी तेल क्षेत्रों जैसे अस्थिर परिवेशों में यह जोखिम प्रबंधन की रणनीति होती है।
आर्थिक बाधाएं
- कई तेल उत्पादक विकासशील देशों में पाइपलाइन या भंडारण सुविधाओं जैसी आधारभूत संरचना की कमी है।
- कंपनियों के लिए दूरस्थ क्षेत्रों में गैस प्रसंस्करण इकाइयाँ बनाना महँगा होता है, इसलिए वे गैस जलाना सस्ता समझती हैं।
लॉजिस्टिक चुनौतियाँ
- दूरदराज और दुर्गम तेल क्षेत्रों से गैस को उपभोक्ता केन्द्रों तक ले जाना कठिन होता है।
- कभी-कभी गैस की मात्रा इतनी कम या अनियमित होती है कि उसके पुनः उपयोग के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे में निवेश औचित्यहीन लगता है।
पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभाव
पर्यावरणीय क्षति
- फ्लेयरींग से CO₂, मीथेन (CH₄), ब्लैक कार्बन (कालिख), और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) निकलते हैं।
- मीथेन, भले ही कम मात्रा में निकलता हो, लेकिन 20 वर्षों में यह CO₂ की तुलना में 84 गुना अधिक प्रभावी होता है।
- ब्लैक कार्बन आर्कटिक में हिमनदों के पिघलने में योगदान देता है।
आर्थिक नुकसान
- विश्व बैंक के अनुसार, हर साल लगभग 140 अरब घन मीटर गैस फ्लेयरींग में नष्ट हो जाती है — जो उप-सहारा अफ्रीका को ऊर्जा देने के लिए पर्याप्त है।
- ऊर्जा की कमी वाले देशों के लिए यह एक बहुमूल्य संसाधन की गंभीर बर्बादी है।
शीर्ष गैस फ्लेयरींग देश (2023 के आंकड़े)
सबसे अधिक गैस फ्लेयरींग करने वाले 5 देश:
- रूस
- ईरान
- इराक
- संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)
- अल्जीरिया
- ये देश वैश्विक फ्लेयरींग का 50% से अधिक योगदान करते हैं।
- इनमें बुनियादी ढांचे की कमी, भू-राजनीतिक संकट और नीति-निर्माण की निष्क्रियता जैसी समस्याएँ मौजूद हैं।
वैश्विक प्रतिक्रिया तंत्र
रूटीन फ्लेयरींग समाप्त करने की 2030 पहल (ZRF)
- विश्व बैंक द्वारा 2015 में शुरू की गई यह पहल 2030 तक सभी नियमित फ्लेयरींग को समाप्त करने का लक्ष्य रखती है।
- इसमें भाग लेने वाले देश और तेल कंपनियाँ वैकल्पिक तकनीकें अपनाने और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं।
उपग्रह निगरानी
- विश्व बैंक और साझेदार एजेंसियाँ अब उपग्रह डेटा का उपयोग करके वैश्विक स्तर पर गैस फ्लेयरींग गतिविधियों की निगरानी और सार्वजनिक रिपोर्टिंग करती हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
कार्बन बाजार और दंड
- कुछ देशों ने फ्लेयरींग को हतोत्साहित करने के लिए कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र या उत्सर्जन व्यापार योजनाएँ (ETS) लागू की हैं।
- कार्बन क्रेडिट प्रणाली कंपनियों को गैस को जलाने के बजाय उसका उपयोग करने के लिए प्रेरित कर सकती है।
फ्लेयरींग के तकनीकी विकल्प
- गैस पुनः-इंजेक्शन: गैस को फिर से तेल भंडार में पंप करना ताकि दबाव बना रहे और तेल की निकासी बेहतर हो।
- ऑन-साइट विद्युत उत्पादन: गैस का उपयोग पास के समुदायों या तेल क्षेत्र संचालन के लिए बिजली उत्पादन में।
- CNG और LNG रूपांतरण: गैस को संपीड़ित या तरल रूप में परिवर्तित कर स्थानीय या निर्यात उपयोग हेतु।
- मिनी-GTL (गैस टू लिक्विड) संयंत्र: फ्लेयरींग गैस को डीजल जैसे तरल ईंधन में परिवर्तित करना।
कार्यान्वयन की चुनौतियाँ
- गैस को संग्रहित करने और परिवहन करने के बुनियादी ढांचे की स्थापना में अत्यधिक प्रारंभिक लागत।
- तेल-उत्पादक विकासशील देशों में कमजोर विनियामक तंत्र।
- भ्रष्टाचार और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, जो अक्सर अल्पकालिक मुनाफे से प्रेरित होती है।
- इराक, लीबिया और वेनेजुएला जैसे देशों में भू-राजनीतिक संघर्ष, जो निवेश को रोकते हैं।
भारत की स्थिति और अवसर
- भले ही भारत प्रमुख तेल उत्पादक देश नहीं है, फिर भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है:
- ONGC और रिलायंस जैसी भारतीय कंपनियाँ विदेशी परियोजनाओं में फ्लेयरींग को कम करने वाली तकनीकों में निवेश कर सकती हैं।
- इंटरनेशनल सोलर अलायंस और मीथेन प्रतिज्ञा के सदस्य के रूप में भारत वैश्विक स्तर पर मीथेन और फ्लेयरींग में कटौती के लिए प्रतिबद्धताओं को प्रोत्साहित कर सकता है।
- भारत फ्लेयरींग-नियंत्रित परियोजनाओं से गैस का आयात करके अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ बना सकता है।