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वैश्विक ऊर्जा संक्रमण सूचकांक, 2025

(प्रारंभिक परीक्षा : महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट एवं सूचकांक)

संदर्भ 

18 जून, 2025 को विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी वैश्विक ऊर्जा संक्रमण सूचकांक (Global Energy Transition Index) में भारत पिछले वर्ष से 63वें स्थान से खिसककर 71वें स्थान पर पहुँच गया है। हालाँकि, ऊर्जा निवेश क्षमता एवं दक्षता में उल्लेखनीय सुधार भी हुआ है।

वैश्विक ऊर्जा संक्रमण सूचकांक (ETI) के बारे में 

  • परिचय : यह एक डाटा-संचालित विश्लेषणात्मक ढांचा है, जो विभिन्न देशों की ऊर्जा क्षेत्र में हो रहे वैश्विक बदलावों को समझने, अनुकूलित करने व उसका नेतृत्व करने की स्थिति का मूल्यांकन करता है। 
  • रिपोर्ट का शीर्षक : ‘प्रभावी ऊर्जा संक्रमण को बढ़ावा देना 2025’ (Fostering Effective Energy Transition 2025)
  • जारीकर्ता : एक्सेंचर के सहयोग से विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा 
  • प्रदर्शन के तीन आयाम : सुरक्षा, स्थिरता एवं समानता 
  • पाँच तत्परता कारक : राजनीतिक प्रतिबद्धता, वित्त, नवाचार, बुनियादी ढाँचा एवं मानव पूंजी

सूचकांक के प्रमुख निष्कर्ष 

  • कई वर्षों की धीमी गति के बाद 2025 में समग्र ETI स्कोर में 1.1% का सुधार हुआ, जो पिछले तीन वर्षों की औसत दर से दोगुना से भी अधिक है और ऊर्जा संक्रमण प्रगति में तेजी से सुधार को दर्शाता है।
  • हालाँकि, भारत की रैंकिंग में कमी आई है किंतु भारत व चीन ने बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सर्वाधिक समग्र सुधार प्रदर्शित किया है, विशेष रूप से ऊर्जा तक पहुंच बढ़ाने व संक्रमण की तैयारी को मजबूत करने में।
  • रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष पाँच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ चीन, अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान एवं भारत अपने विशाल आकार के कारण अंततः वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन की गति व दिशा निर्धारित करेंगी।
  • शीर्ष प्रदर्शनकर्ता देश : 118 देशों की सूची में स्वीडन शीर्ष पर है। दूसरे स्थान पर फिनलैंड, तीसरे पर डेनमार्क और चौथे व पांचवें स्थान पर क्रमश: नॉर्वे एवं स्विट्जरलैंड का स्थान हैं।
  • चीन 12वें, अमेरिका 17वें तथा पाकिस्तान 101वें स्थान पर है। 
  • कांगो सबसे निचले स्थान पर है।

प्रमुख चुनौतियाँ 

  • ऊर्जा सुरक्षा ठहराव : वर्ष 2024 में $2 ट्रिलियन से अधिक स्वच्छ ऊर्जा निवेश के बावजूद वैश्विक उत्सर्जन रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया और ऊर्जा सुरक्षा स्थिर रही है, जो आपूर्ति श्रृंखला कमजोरियों व भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण है।
  • भू-राजनीतिक एवं आर्थिक जोखिम : बढ़ते व्यापार शुल्क एवं आर्थिक अनिश्चितताएँ निवेश प्रवाह को खतरे में डाल सकती हैं और अल्पकालिक प्राथमिकताओं की ओर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं, जिससे प्रगति धीमी हो सकती है।
  • लचीलापन की आवश्यकता : ग्रिड को आधुनिक बनाने, डिजिटल बुनियादी ढांचे को बढ़ाने और लक्षित पूंजी प्रवाह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

भारत की ऊर्जा संक्रमण में स्थिति

  • ऊर्जा दक्षता : भारत ने ऊर्जा दक्षता उपायों को आगे बढ़ाया है जिससे ऊर्जा तीव्रता कम हुई व उपभोग पैटर्न अनुकूलित हुआ।
  • निवेश क्षमता : सौर व पवन जैसे स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं में वित्तीय प्रवाह बढ़ा है, जिसने भारत की परिवर्तन तत्परता को मजबूत किया है।
  • नीतिगत पहलें : राष्ट्रीय सौर मिशन एवं पी.एम. सूर्यघर मुफ्त सौर बिजली योजना जैसे कार्यक्रमों ने नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने में तेजी प्रदान किया है।
  • चुनौतियाँ
    • ऊर्जा सुरक्षा : आयातित जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता इसे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों के प्रति संवेदनशील बनाती है।
    • बुनियादी ढांचा अंतराल : पुराने ग्रिड बुनियादी ढांचे और सीमित भंडारण क्षमता नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण में बाधा डालती है।
    • समानता चिंताएँ : ग्रामीण एवं हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए किफायती ऊर्जा पहुँच सुनिश्चित करना एक प्राथमिकता है।

ऊर्जा परिवर्तन को तेज करने के लिए पाँच प्राथमिकताएँ

ETI रिपोर्ट पाँच वैश्विक प्राथमिकताओं को रेखांकित करती है, जो भारत सहित विभिन्न देशों के लिए प्रासंगिक हैं:

  • स्थिर एवं अनुकूलनीय नीति ढांचे : देशों को दीर्घकालिक पूंजी आकर्षित करने के लिए नीतियों को मजबूत करना चाहिए, जैसे- नवीकरणीय परियोजनाओं की मंजूरी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
  • आधुनिक बुनियादी ढांचा : ग्रिड को अपग्रेड करना, भंडारण समाधान विकसित करना एवं इंटरकनेक्टर्स का विस्तार करना ऊर्जा विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • कुशल कार्यबल : शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश से स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में नवाचार की वृद्धि करने वाले कार्यबल का निर्माण हो सकता है।
  • स्वच्छ प्रौद्योगिकी व्यावसायीकरण : स्वच्छ प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण में तेजी लाना, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां इसे कम करना कठिन है।
  • विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में पूंजी निवेश बढ़ाना : स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिए वित्तीय प्रवाह को बढ़ाने की आवश्यकता है।
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