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गोटीपुआ नृत्य

न्यू ब्रिज इंडिया नामक एक गैर-लाभकारी संस्कृतिक संस्था एवं ओडिशा राज्य संग्रहालय द्वारा आयोजित ‘बॉय डांसर’ नामक कला प्रदर्शनी में गोटीपुआ नृत्य और इसके नर्तकों के भविष्य के बारे में चिंता व्यक्त की गई।  

गोटीपुआ नृत्य के बारे में 

  • परिचय : ओडिसी शास्त्रीय नृत्य का अग्रदूत मने जाने वाला ओडिशा का एक पारंपरिक नृत्य रूप 
  • प्रतिभागी : मुख्यतः युवा लड़कों द्वारा
    • ये भगवान जगन्नाथ एवं कृष्ण की स्तुति करने के लिए महिलाओं की तरह कपड़े पहनते हैं।
  • केन्द्रीय विषय : राधा एवं कृष्ण के जीवन से प्रेरित प्रदर्शन  
  • ओडिया भाषा में अर्थ : गोटी का अर्थ ‘अविवाहित’ और पुआ का अर्थ ‘बालक’
  • आयोजन स्थल : पारंपरिक रूप से मंदिर परिसर में और केवल त्योहारों के दौरान 
    • हालाँकि, वर्तमान में यह नृत्य मंदिर के बाहर, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन का एक लोकप्रिय साधन बन गया है।
    • ओडिशा के पुरी के पास रघुराजपुर गाँव इसके लिए प्रसिद्ध है।
  • संगीत एवं वाद्ययंत्र : गोटीपुआ के नृत्य के साथ पारंपरिक ओडिसी संगीत में मुख्य ताल वाद्य ‘मर्दला’ 

गोटीपुआ नृत्य का इतिहास

  • प्राचीन काल में उड़ीसा के मंदिरों में महिला नर्तकियाँ द्वारा यह नृत्य किया जाता था जिन्हें देवदासी या महारी कहा जाता था, जो भगवान जगन्नाथ को समर्पित थीं। 
  • 16वीं सदी के आसपास भोई वंश के दौरान महारी नर्तकियों के पतन के साथ इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए उड़ीसा में बाल नर्तको का वर्ग अस्तित्व में आया।
  • ओडिसी नृत्य का वर्तमान स्वरूप काफी हद तक गोटीपुआ नृत्य से प्रेरित है। ओडिसी नृत्य के अधिकांश वर्तमान गुरु (केलुचरण महापात्र आदि) अपने युवावस्था में गोटीपुआ थे।
  • ऐतिहासिक रूप से गोटीपुआ गुरुकुल राजाओं व ज़मींदारों के संरक्षण में फले-फूले।
  • 20वीं सदी में गोटीपुआ को औपचारिक रूप देने और संरचनागत करने के प्रयास किए गए, जिसने ओडिसी को एक अलग व व्यवस्थित नृत्य शैली के रूप में स्थापित किया।
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