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गुंडाराम शिलालेख

(प्रारंभिक परीक्षा : प्राचीन भारत का इतिहास)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल और समाज)

चर्चा में क्यों

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने तेलंगाना के पेड्डापल्ली जिले से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित गुंडाराम रिजर्व फॉरेस्ट में एक व्यापक पुरालेख सर्वेक्षण के दौरान ग्यारह शिलालेखों का दस्तावेजीकरण किया है।

गुंडाराम शिलालेख के बारे में

  • खोज स्थल : शिलालेख गट्टूसिंगारम गांव के निकट ‘सितम्मालोडी’ नामक शिला पर उत्कीर्ण।
    • वर्तमान में यह स्थान गुंडाराम आरक्षित वन क्षेत्र (पेद्दापल्ली जिला, तेलंगाना) में स्थित है।
  • कालखंड (Period) : प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से 6वीं शताब्दी ईस्वी तक (लगभग 700 वर्षों का कालखंड)
  • लिपि : शिलालेख प्रारंभिक ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं, जो मौर्य काल में व्यापक रूप से प्रचलित थी।

शिलालेख में उल्लिखित ऐतिहासिक विवरण

  • राजवंशों का उल्लेख : शिलालेखों में प्रमुख रूप से सातवाहन वंश और चुटु वंश का उल्लेख किया गया है।
    • इसमें 'हारितिपुत्र' वंश का व्यक्ति स्वयं को सातवाहन राजकुमार ‘कुमार हकुसिरी’ का मित्र बताता है, यह दोनों वंशों के बीच राजनीतिक/सामाजिक संबंधों का प्रमाण है।
  • धार्मिक प्रतीक : एक अन्य शिलालेख में त्रिशूल और डमरू जैसे शुभ धार्मिक प्रतीकों का उल्लेख है, जो कि पहाड़ी के पूर्व का क्षेत्र सिरि देवराना से संबंधित था।
  • बौद्ध धर्म से संबंध : एक शिलालेख में एक व्यक्ति द्वारा बौद्ध भिक्षुओं के लिए गुफा का निर्माण का उल्लेख किया गया है। पुरातत्वविदों का अनुमान है कि यह स्थान कभी बौद्ध भिक्षुओं के लिए एक शवदाह स्थल या मठ परिसर रहा होगा।
  • सातवाहन वंशावली : अभिलेखों में कुमार साकसिरी, अकुसिरी, आदि अन्य सातवाहन राजकुमारों के नामों का उल्लेख जिससे सातवाहन काल की वंशावली और क्षेत्रीय प्रशासन की जानकारी मिलती है।
  • तेलंगाना और अस्मक जनपद का संबंध : ये अभिलेख, मक्कूत्राओपेट (वेलगटूर मंडल, करिमनगर) में पूर्व में मिले एक शिलालेख के साक्ष्यों की पुष्टि करते हैं, जिसमें तेलंगाना को ‘अस्मक’ महाजनपद का भाग बताया गया था।
    • यह महाजनपद 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था।

गुंडाराम शिलालेख का महत्व

  • राजवंशीय संबंधों का प्रमाण: हारीतिपुत्र और सातवाहन राजकुमार के बीच मित्रता का उल्लेख सातवाहनों और चुटु राजवंश के बीच पहले अज्ञात संबंधों को दर्शाता है। यह प्राचीन भारत में राजवंशों के बीच जटिल राजनीतिक और सामाजिक गठबंधनों को समझने में मदद करता है।
  • धार्मिक प्रतीकात्मकता का प्रारंभिक साक्ष्य: त्रिशूल और डमरू जैसे धार्मिक प्रतीकों का उपयोग प्राचीन दक्कन में धर्म और सत्ता के बीच संबंध को दर्शाता है, जो भारतीय इतिहास में धार्मिक प्रतीकों के प्रारंभिक उपयोग का एक दुर्लभ उदाहरण है।
  • बौद्ध प्रभाव: शिलालेखों के पास संभावित बौद्ध भिक्षुओं के दफन स्थल का उल्लेख इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म की उपस्थिति और प्रभाव को दर्शाता है, जो सातवाहन काल में धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को रेखांकित करता है।

सातवाहन वंश के बारे में

  • परिचय : यह प्राचीन भारत का एक प्रमुख दक्षिण भारतीय राजवंश था, जिसने मौर्य काल के पश्चात दक्षिण और मध्य भारत के बड़े भूभाग पर शासन किया।
  • शासनकाल: पहली शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ईस्वी।
  • संस्थापक: सिमुक
  • राजधानी: प्रारंभ में प्रतिष्ठान (महाराष्ट्र) तथा बाद में अमरावती (आंध्र प्रदेश)।
  • शासन क्षेत्र: वर्तमान महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और ओडिशा के भागों तक विस्तार
  • शिलालेख: गुंडाराम (तेलंगाना), नासिक, कार्ले; चुटु राजवंश के साथ संबंधों के प्रमाण।

प्रमुख शासक

  • सातकर्णि प्रथम : अश्वमेध यज्ञ किया; वैदिक धर्म का संरक्षण किया
  • गौतमीपुत्र सातकर्णि : सबसे शक्तिशाली शासक; शकों, यवनों और पहलों को पराजित किया
  • वशिष्ठीपुत्र पुलुमावी : अमरावती में बौद्ध संरचनाओं का निर्माण
  • यज्ञश्री सातकर्णि : अंतिम प्रमुख शासक; समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया

सांस्कृतिक योगदान

  • संस्कृत एवं प्राकृत भाषा को संरक्षण।
  • प्रारंभिक ब्राह्मी लिपि में शिलालेखों का उपयोग।
  • बौद्ध धर्म को संरक्षण, विशेषकर महायान परंपरा का विकास।
  • अमरावती और नागार्जुनकोंडा में स्तूप, चैत्य, विहारों का निर्माण।
  • सातवाहन सिक्के: सिल्वर और शीशे के सिक्कों पर लिपियों और धार्मिक चिन्हों का अंकन।

आर्थिक विशेषताएँ

  • रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार (विशेषकर मसाले, रत्न, वस्त्र)।
  • आंतरिक व्यापार के लिए सड़क और नदी मार्गों का विकास।
  • शिलालेखों में व्यापारियों और गिल्डों द्वारा दान का उल्लेख।

राजनीतिक महत्व

  • सातवाहनों ने उत्तर भारत के शकों को चुनौती दी और दक्षिण में स्थायित्व और सांस्कृतिक एकीकरण स्थापित किया।
  • यह वंश मौर्यों के पतन और गुप्तों के उदय के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करता है।
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