New
The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June. UPSC PT 2025 (Paper 1 & 2) - Download Paper & Discussion Video The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June. UPSC PT 2025 (Paper 1 & 2) - Download Paper & Discussion Video

मातृभाषा व अधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी का अस्तित्त्व

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारत का इतिहास; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र:2, विषय:संघीय ढांचे से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ)

चर्चा में क्यों?

  • पूर्व इसरो प्रमुख के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने हाल ही में नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार किया था, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने बाद में मंज़ूरी दे दी थी। नई शिक्षा नीति में स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किये गए हैं।
  • विगत कुछ दिनों से लगातार इस नीति के एक प्रमुख अवयव पर चर्चा हो रही है। नई शिक्षा नीति में पाँचवी कक्षा तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। इसे कक्षा आठ या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है।विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी/द्वितीयक स्तर से होगी। हालाँकि नई शिक्षा नीति में यह भी कहा गया है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा।
  • इसके बाद से तमाम माध्यमों से विभिन्न संगठनों द्वारा इसके पक्ष में अपनी बात रखी गई है, और लोग मातृभाषा को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने की बात जोर शोर से उठा रहे हैं।हिंदीको शिक्षा की भाषा और आधिकारिक भाषा बनाए जाने की लिये पूर्व में भी अनेकों आंदोलन हुए हैं।

पृष्ठभूमि:

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार-

  • दुनिया की लगभग6,000 भाषाओं में से 43% लुप्तप्राय हैं।
  • दुनिया की आबादी की 60% (~4.8 बिलियन)से अधिक आबादी मात्र 10 भाषाओं को ही बोलती है।

ऑनलाइन डेटाबेस एथ्नोलॉग के अनुसार वैश्विक स्तर पर, वर्ष 2019 में लगभग1 अरब 13 करोड़ वक्ताओं के साथ अंग्रेज़ी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बनी हुई है, इसके बाद चीन की मंदारिन (1 अरब 11 करोड़) भाषा है।हिंदी 61 करोड़ 50 लाख वक्ताओं के साथ तीसरे जबकि बंगाली 26 करोड़ 50 लाख वक्ताओं के साथ सातवें स्थान पर है।

भारत में,

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में लगभग 52 करोड़से अधिक वक्ताओं के साथ हिंदी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
  • बंगाली बोलने वाले लगभग 9 करोड़ 72 लाखतथा मराठी बोलने वाले लगभग 8 करोड़ 30 लाख के आस पास लोग थे।
  • 5 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोले जाने वाली अन्य भाषाएँ तेलुगु (8 करोड़10 लाख), तमिल (6 करोड़ 90 लाख), गुजराती (5 करोड़ 55 लाख) और उर्दू (5 करोड़ 8 लाख) हैं।

भारत संघ में 'आधिकारिक भाषा' की बहस :

जब संविधान सभा में भारतीय संविधान के प्रारूप पर बहस हो रही थी तो संविधान निर्माताओं के मन में राजभाषा के रूप में एक भाषा को चुनने का प्रश्न उत्पन्न हुआ। केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा क्या रखी जाए यह संविधान सभा में सबसे अधिक विभाजनकारी आधिकारिक मुद्दा था क्योंकि इस मुद्दे पर विभिन्न लोगों के अलग अलग मत थे। हिंदी को राजभाषा घोषित किये जाने के सम्बंध में दो प्रमुख समस्याएँ थीं: क) हिंदी की बोलियाँ; और b) भारत में विद्यमान अन्य भाषाएँ।

  • हिंदी बोली को अपनाने का प्रश्न:  हिंदी भाषा लगभग 13 विभिन्न बोलियों में बोली जाती है। इसलिये यह बहस भी शुरू हुई कि किस बोली को आधिकारिक हिंदी बोली के रूप में चुना जाए। बाद में दिल्ली-आगरा क्षेत्र में संस्कृत शब्दावली के साथ बोली जाने वाली हिंदी बोली को अपनाया गया।
  • महात्मा गांधी का एक राष्ट्रीय भाषा का सपना:  संविधान सभा के अधिकांश सदस्य महात्मा गांधी के सपने को पूरा करना चाहते थे, जिन्होंने कहा था कि भारत में एक राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिये जो राष्ट्र को एक विशेष पहचान दे। संविधानसभा के कुछ प्रमुख सदस्यों ने भारत संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को देश की सबसे लोकप्रिय भाषा के रूप में स्वीकार किया। जब यह प्रस्ताव सम्पूर्ण संविधान सभा के समक्ष रखा गया तोसभा के कई सदस्यों ने इसका विरोध इस आधार पर किया कि यह गैर-हिंदी भाषी आबादी के लिये अनुचित है, क्योंकि गैर-हिंदी पृष्ठभूमि कि वजह से वे लोग रोज़गार के अवसरों, शिक्षा और सार्वजनिक सेवाओं को यथोचित रूप में प्राप्त नहीं कर पाएँगे।
  • क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने की माँग:  हिंदी भाषा शामिल करने तथा इसके विरोध में कई तर्क दिये गए। संविधान सभा के कुछ सदस्यों जैसे एल.के.मित्रा. और एन.जी.अय्यंगर आदि ने माँग की कि क्षेत्रीय भाषाओं को भी मान्यता दी जानी चाहिये (राज्य स्तर पर) और चुनी हुई राष्ट्रीय भाषा को एक मात्र विशेष भाषा नहीं बना दिया जाना चाहिये। लोकमान्य तिलक, गांधीजी, सी. राजगोपालाचारी, सुभाष बोस और सरदार पटेल आदि इस बात के पक्षधर थे कि पूरे भारत में बिना किसी अपवाद के हिंदी का उपयोग किया जाना चाहिये और राज्यों को भी हिंदी के उपयोग का सहारा लेना चाहिये क्योंकि इससे एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
  • विधानसभा में दो समूह:  पूरी संविधान सभा दो समूहों में विभाजित हो गई थी, एक जो हिंदी का समर्थन करते थे और वह चाहते थे कि हिंदी को आधिकारिक भाषा बना दिया जाए और दूसरे जो हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाये जाने के पक्ष में नहीं थे।
  • अम्बेडकर के विचार:  कई भाषाओं को आधिकारिक भाषाओं के रूप में प्रस्तुत करना सम्भव नहीं था, इस परिप्रेक्ष्य में  डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने यह भी कहा था कि ''एक भाषा लोगों को एकजुट कर सकती है। दो भाषाएं लोगों को निश्चित रूप से विभाजित कर देंगी। चूँकि भारत कि संस्कृति भाषा द्वारा संरक्षित है तो सभी भारतीय अगर एक सर्वमान्य संस्कृति को विकसित करना चाहते हैं, तो यह सभी भारतीयों का कर्तव्य है कि वे हिंदी को अपनी आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाएँ।”
  • मुंशी-अय्यंगर सूत्र:  अंततः, जब संविधान सभा कि एकता भंग होने के कगार पर थी, तब मुंशी-अय्यंगर सूत्र नामक समझौता बिना किसी विरोध के अपनाया गया। यह एक प्रकार का अपूर्ण समझौता ही था क्योंकि किसी भी समूह को वह नहीं मिला, जो वह चाहता था। इस सूत्र के अनुसार, अंग्रेज़ी को पंद्रह वर्षों की अवधि के लिये हिंदी के साथ-साथ भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रखा जाएगा, लेकिन इस सीमा का विस्तार संसद द्वारा कभी भी किया जा सकता है।यह 15 वर्षों कि अवधि जब समाप्त होने वाली थी तो गैर-हिंदी भाषी राज्यों में प्रदर्शनों को रोकने के लिये 'आधिकारिक भाषा अधिनियम, 1963 'नाम से एक क़ानून लाया गया लेकिन अधिनियम के प्रावधान प्रदर्शनकारियों के विचारों को संतुष्ट नहीं कर सके।
  • लाल बहादुर शास्त्री नीति: प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू के उत्तराधिकारी लाल बहादुर शास्त्री ने गैर-हिंदी समूहों की राय पर कभी भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया। उन्होंने गैर-हिंदी समूहों की आशंकाओं को प्रभावी ढंग से शांत करने(कि हिंदी एकमात्र आधिकारिक भाषा बन जाएगी) की बजाय,घोषित किया कि वे लोक सेवा कि परीक्षाओं में हिंदी को वैकल्पिक माध्यम बनाने पर विचार कर रहे हैं, जिसका सीधा अर्थ यह था कि गैर-हिंदी भाषी छात्र हालाँकि इन परीक्षाओं में भाग ले सकेंगे लेकिन हिंदी भाषी छात्रों को इस वजह से अतिरिक्त लाभ ज़रूर मिलेगा।। इससे गैर-हिंदी समूहों का रोष बढ़ गया तथा वे और अधिक हिंदी विरोधी हो गए और बाद में उन्होंने 'हिंदी नेवर, अंग्रेज़ी एवर' के नारे के साथ इसका विरोध भी किया। इस प्रकार लाल बहादुर शास्त्री ने हिंदी के खिलाफ गैर-हिंदी समूहों के धधकते आंदोलन को मात्र हवा ही दी इसके लिये कुछ कारगर कदम नहीं उठाए।
  • आधिकारिक भाषाओं में संशोधन अधिनियम:  आधिकारिक भाषा अधिनियम को अंततः वर्ष1967 में इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा संशोधित किया गया था,जिसके द्वारा देश की आधिकारिक भाषाओं के रूप में अंग्रेज़ी और हिंदी के अनिश्चित कालीन उपयोग को अधिनियमित कर दिया गया।

हिंदी से जुड़ी विडंबना:

भाषा किसी भी समुदाय की पहचान और उसके सामाजिक इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। भारत के औपनिवेशिक इतिहास केबाद से ही देश कि लगभग सभी प्रमुख भाषाएं अपनी वैधानिक जगह के लिये "वैश्विक" भाषा अंग्रेज़ी के साथ लगातार जूझती आई हैं। मातृभाषाओं की प्रासंगिकता और भाषाई वर्चस्व का सवाल लगातार विवादों में रहा है। दैनिक जीवन के अनेक ऐसे सवाल हैं जो भाषाओँ कि महत्ता दर्शाते हैं-

  • हम किस भाषा में सोचते और सपने देखते हैं?
  • क्या हम खुद को वास्तव में द्विभाषी या बहुभाषी भी कह सकते हैं?
  • हममें से कितने लोग अपनी मातृभाषाओं में सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं?

यद्यपि स्कूल और उच्च शिक्षा में शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषाओं का उपयोग स्वतंत्रता-पूर्व काल से ही किया जाता रहा है, लेकिन विचारणीय बात यह है कि अंग्रेज़ी में अध्ययन करने के इच्छुक लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसके आलावा अंग्रेज़ी भाषा द्वारा शासित मोनोलिंगुअल (एक भाषी) शिक्षण संस्थानों ने इस विभेद को और ज़्यादा बढ़ा दिया है और एक ऐसे समाज की आधारशिला रख रहा है, जो किसी भी दृष्टि से संवेदनशील या न्यायसंगत नहीं है।

अन्य सभी मातृ भाषाओं पर अंग्रेज़ी के प्रभुत्व के हिसाब से ही छात्रों की स्थिति और पहचान आदि को जोड़ा जा रहा है। विभिन्न मातृ भाषाओं को बोलने वाले छात्र एक शैक्षिक संस्थान में अध्ययन करने के लिये एक साथ आते हैं, जहाँ वे एक दूसरे के साथ स्कूल और उच्च शिक्षा स्तर पर किसी भी कठिनाइयों के बिना बातचीत करते हैं। फिर भी उन्हें मात्र अंग्रेज़ी के द्वारा ही शिक्षा प्रदान की जा रही है, जिससे सभी छात्र आसानी के साथ नहीं जुड़ पाते। इस पूरी प्रक्रिया से छात्रों के बीच मातृ भाषाओं के प्रति अज्ञानता और आपस में विभेद की भावना पैदा हुई है।

आगे की राह:

अंग्रेज़ी का ज्ञान युवाओं को अच्छी नौकरी पाने में बहुत मदद करता है, लेकिन केवल अंग्रेज़ी का ज्ञान ही सार्थक नहीं है, अन्य सभी चीज़ों को समझने और मौलिक जानकारी हासिल करने के लिये मातृभाषा का कुशल ज्ञान भी ज़रूरी है अधिकांश भारतीय स्कूलों में इस्तेमाल की जाने वाली अंग्रेज़ी बहुत ही कृत्रिम किस्म कि होती है, जो मौलिकता से बहुत दूर होती है।

  • सरकार को लोगों की आकांक्षाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिये और इच्छा के विरुद्ध उन पर किसी भाषा का बोझ ज़बरदस्ती नहीं डालना चाहिये। भाषाई अल्पसंख्यकों और अल्पसंख्यक भाषाओं की रक्षा के लिये समुचित विधायी उपबंध किये जाने चाहियें।
  • हमें तीन-भाषा-सूत्र का पालन करने की आवश्यकता है और सभी भाषाओं को बड़े पैमाने पर विकसित करने की भी आवश्यकता है।
  • भाषा को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी और नए संसाधनों का उपयोग करने की आवश्यकता है और बड़े पैमाने पर नागरिकों को सभी भाषाओं के प्रति सहिष्णु और जागरूक करने कि भी आवश्यकता है।
  • सरकार की एक भारत-श्रेष्ठ भारत जैसी पहल को जितना हो सके उतना बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
  • निम्न बातों पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है-

(१) भाषा के शिक्षकों के प्रशिक्षण और उनकी भर्ती पर।
(२) भाषा और साहित्य पर गुणवत्ता कार्यक्रमों का विकास।
(३) भाषाओं पर विस्तृत शोध।

(स्रोत: ई.पी.डब्ल्यू.)

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR