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हांगकांग के नए स्टेबलकॉइन नियम: भारत के लिए प्रेरणा और चुनौतियाँ

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास एवं रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

हांगकांग ने स्टेबलकॉइन के लिए एक नियामक ढांचा स्थापित करके वर्चुअल एसेट इकोसिस्टम को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह कदम 1 अगस्त, 2025 को लागू हुए स्टेबलकॉइन्स ऑर्डिनेंस के साथ प्रभावी हुआ, जिसका उद्देश्य हांगकांग की वित्तीय ताकत को और बढ़ाना है।

स्टेबलकॉइन के बारे में

  • परिभाषा: यह एक प्रकार की क्रिप्टोकरेंसी है जो अपनी कीमत को स्थिर रखने के लिए किसी फिएट मुद्रा (जैसे- हांगकांग डॉलर) या अन्य परिसंपत्तियों से जोड़ी जाती है।
  • उद्देश्य: यह डिजिटल लेनदेन में स्थिरता प्रदान करता है, जिससे यह पारंपरिक वित्त और ब्लॉकचेन-आधारित प्रणालियों के बीच एक सेतु का काम करता है।
  • प्रकार: फिएट-समर्थित, क्रिप्टो-समर्थित और कमोडिटी-समर्थित स्टेबलकॉइन।

प्रमुख विशेषताएँ

  • मूल्य स्थिरता: फिएट मुद्राओं से जुड़े होने के कारण इनका मूल्य अपेक्षाकृत स्थिर रहता है।
  • भुगतान माध्यम: स्टेबलकॉइन डिजिटल भुगतानों के लिए एक विश्वसनीय माध्यम के रूप में कार्य करते हैं।
  • पारदर्शिता व सुरक्षा: ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित होने के कारण लेनदेन पारदर्शी एवं सुरक्षित होते हैं।
  • वैश्विक पहुँच: ये सीमा पार लेनदेन को तेज और लागत प्रभावी बनाते हैं।

हांगकांग के नए स्टेबलकॉइन नियम

  • लाइसेंसिंग तंत्र: हांगकांग मौद्रिक प्राधिकरण (HKMA) ने स्टेबलकॉइन जारी करने के लिए लाइसेंस अनिवार्य किया है। हांगकांग में फिएट-समर्थित स्टेबलकॉइन या हांगकांग डॉलर से जुड़े स्टेबलकॉइन जारी करने वाली संस्थाओं को लाइसेंस प्राप्त करना होगा।
  • छूट अवधि: मौजूदा जारीकर्ताओं को अनुपालन के लिए छह महीने की अवधि दी गई है और पहला लाइसेंस वर्ष 2026 की शुरुआत में जारी होने की उम्मीद है।
  • वैश्विक रुचि: 50 से अधिक कंपनियों, जिनमें प्रमुख तकनीकी और वित्तीय संस्थान शामिल हैं, ने हांगकांग में स्वीकृत स्टेबलकॉइन जारी करने की योजना बनाई है।
  • नियामक दृष्टिकोण: हांगकांग का दृष्टिकोण सख्ती और लचीलेपन का संतुलन बनाए रखता है जिससे विभिन्न क्षेत्रों की योग्य संस्थाएँ लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकती हैं।

नए नियमों का प्रभाव

  • वित्तीय संस्थानों का परिवर्तन: स्टेबलकॉइन क्षेत्र का विकास बैंकों, बीमा कंपनियों और अन्य पारंपरिक वित्तीय संस्थानों को डिजिटल परिसंपत्तियों में विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
  • नए उत्पादों का उदय: टोकनाइज्ड वास्तविक परिसंपत्तियों जैसे नए वित्तीय उत्पादों की शुरुआत होगी।
  • वैश्विक नेतृत्व: हांगकांग का नियामक ढांचा इसे डिजिटल परिसंपत्ति विनियमन में अग्रणी बनाता है, जिससे उच्च-गुणवत्ता वाली संस्थाएँ आकर्षित होंगी।
  • आर्थिक प्रोत्साहन: स्टेबलकॉइन से संबंधित कंपनियों के शेयर की कीमतों में वृद्धि और बाजार में रुचि बढ़ी है।

भारत के लिए सीख

  • नियामक ढांचे की आवश्यकता: भारत को स्टेबलकॉइन और क्रिप्टोकरेंसी के लिए स्पष्ट व संतुलित नियामक ढांचा विकसित करना चाहिए।
  • वित्तीय समावेशन: स्टेबलकॉइन का उपयोग भारत में डिजिटल भुगतानों को बढ़ावा देने और वित्तीय समावेशन को मजबूत करने में किया जा सकता है।
  • नवाचार को प्रोत्साहन: हांगकांग की तरह भारत को तकनीकी और वित्तीय नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए लचीले नियम बनाने चाहिए।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा: स्टेबलकॉइन नियम भारत को वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में मजबूत स्थान दिला सकते हैं।

चुनौतियाँ

  • नियामक जटिलता: स्टेबलकॉइन के लिए नियम बनाना जटिल है क्योंकि यह वित्तीय स्थिरता और उपभोक्ता संरक्षण को प्रभावित करता है।
  • जोखिम प्रबंधन: मनी लॉन्ड्रिंग और धोखाधड़ी जैसे जोखिमों को रोकने के लिए मजबूत निगरानी की आवश्यकता है।
  • तकनीकी बुनियादी ढांचा: भारत में ब्लॉकचेन और डिजिटल परिसंपत्तियों के लिए तकनीकी बुनियादी ढांचे को अधिक मजबूत करने की जरूरत है।
  • जागरूकता की कमी: आम जनता व वित्तीय संस्थानों में स्टेबलकॉइन के लाभों और जोखिमों के बारे में जागरूकता की कमी है।

आगे की राह

  • स्पष्ट नीति निर्माण: भारत को स्टेबलकॉइन और अन्य डिजिटल परिसंपत्तियों के लिए एक व्यापक नियामक ढांचा विकसित करना चाहिए।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर ब्लॉकचेन तकनीक और स्टेबलकॉइन को बढ़ावा देना चाहिए।
  • शिक्षण एवं प्रशिक्षण: स्टेबलकॉइन और डिजिटल परिसंपत्तियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए।
  • वैश्विक सहयोग: भारत को हांगकांग जैसे देशों के साथ सहयोग करके वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना चाहिए।
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