न्यायाधीश |
वर्ष |
परिणाम |
जस्टिस वी. रामास्वामी |
1993 |
आरोप साबित हुए, लेकिन लोकसभा में 2/3 बहुमत नहीं मिल पाया – हटाए नहीं जा सके। |
जस्टिस सौमित्र सेन (कलकत्ता हाईकोर्ट) |
2011 |
राज्यसभा में प्रस्ताव पारित हुआ, लेकिन जज ने इस्तीफा दे दिया – महाभियोग अधूरा रहा। |
जस्टिस पी. डी. दिनाकरण |
2011 |
आरोप लगने के बाद इस्तीफा दे दिया। |
जस्टिस के. सी. सोमैया और अन्य |
कई मामलों में जांच शुरू हुई लेकिन अधिकांश में जजों ने पूर्व में ही इस्तीफा दे दिया। |
मामला |
विवरण |
निष्कर्ष |
न्यायमूर्ति एस. के. गंगेले मामला (2015) |
यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना। जाँच समिति ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया। |
यह मामला उन दुर्लभ उदाहरणों में से था, जहाँ यौन उत्पीड़न के आरोपों के कारण महाभियोग की कार्यवाही हुई। |
न्यायमूर्ति सी.वी. नागार्जुन मामला (2017) |
दलित न्यायाधीश को प्रताड़ित करना और वित्तीय कदाचार के आरोप। महाभियोग प्रस्ताव संसद में लाया गया, लेकिन सांसदों ने हस्ताक्षर वापस ले लिए। |
महाभियोग कार्यवाही में समर्थन बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा। |
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा मामला (2018) |
भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग प्रस्ताव लाया गया। राजनीतिक आरोप। राज्य सभा के सभापति ने प्रस्ताव खारिज कर दिया। |
इस मामले ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और महाभियोग प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण बहस छेड़ी। |
न्यायमूर्ति पी.डी. दिनाकरन मामला |
सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर किसानों की 300 एकड़ से अधिक भूमि हड़पने के आरोप। त्यागपत्र देने के बाद जाँच नहीं हो सकी। |
इस मामले ने न्यायाधीशों को त्यागपत्र के माध्यम से जवाबदेही से बचने की कमियों को उजागर किया। |
न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की घटना (2024) |
मुस्लिम समुदाय के खिलाफ पूर्वाग्रहपूर्ण भाषण, न्यायालय परिसर में विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में भाषण दिया। |
इस घटना ने उच्च न्यायपालिका के लिए जवाबदेही तंत्र पर नई बहस छेड़ी। |
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