New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 22nd August, 3:00 PM Independence Day Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 15th Aug 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 24th August, 5:30 PM Independence Day Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 15th Aug 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 22nd August, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 24th August, 5:30 PM

भारतीय लोकतंत्र में लोकसभा उपाध्यक्ष पद का महत्त्व

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2; भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।)

संदर्भ

भारतीय संसद में उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) का पद भारतीय लोकतंत्र की संस्थागत मजबूती और संसदीय जवाबदेही का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। हालाँकि, संविधान में यह पद अनिवार्य रूप से निर्धारित है, परंतु वर्तमान लोकसभा में यह पद कई वर्षों से रिक्त है। यह स्थिति संविधान की भावना और संसदीय परंपराओं के विरुद्ध है।

हालिया संदर्भ

  • 17वीं लोकसभा (2019-2024) में उपाध्यक्ष का पद लगातार रिक्त रहा। इस स्थिति ने संसद की सांस्थानिक कार्यप्रणाली और जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं।
  • इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें उपाध्यक्ष की नियुक्ति में देरी को चुनौती दी गई थी।

संवैधानिक प्रावधान

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार, लोकसभा अपने दो सदस्यों को अध्यक्ष (Speaker) और उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) के रूप में निर्वाचित करेगी।
    • इससे यह स्पष्ट है कि यह पद वैकल्पिक नहीं है, बल्कि संसद का एक आवश्यक हिस्सा है।
  • संविधान में यह समयसीमा नहीं दी गई है कि उपाध्यक्ष का चुनाव कब तक होना चाहिए, लेकिन लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुसार यह पहले कुछ सत्रों में कर लिया जाता था।
  • अनुच्छेद 94 के अनुसार उपाध्यक्ष तब तक पद पर बना रहता है जब तक : 
    • वह इस्तीफा नहीं दे देता 
    • पदच्युत नहीं किया जाता 
    • संसद सदस्य नहीं रहता

अन्य प्रावधान 

लंबे समय से चली आ रही परंपरा  के अनुसार उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को दिया जाता है। इसने सदन के भीतर शक्ति संतुलन के साथ ही विश्वास और सहयोग बनाने में भी मदद की। 

उपाध्यक्ष की भूमिका 

  • अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन की कार्यवाही संचालित करना।
  • संसदीय कार्यों में तटस्थता बनाए रखना।
  • विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच संवाद की एक संस्थागत कड़ी के रूप में कार्य करना।
  • संसद के नियमों की निष्पक्ष व्याख्या करना।

लोकतांत्रिक मूल्यों पर प्रभाव

  • उपाध्यक्ष की गैर-नियुक्ति सत्ता के केंद्रीकरण और लोकतांत्रिक संस्थाओं की कमजोरी को दर्शाती है।
  • यह स्थिति विपक्ष की आवाज़ और संसदीय संतुलन को बाधित करती है।
  • यदि संविधान के स्पष्ट प्रावधानों को नजरअंदाज किया जाए, तो यह संवैधानिक नैतिकता (constitutional morality) के विरुद्ध जाता है।
  • किसी आपात स्थिति में, जैसे कि अध्यक्ष का इस्तीफा, मृत्यु या हटाया जाना, किसी नामित दूसरे-इन-कमांड की कमी से सदन में भ्रम की स्थिति के साथ ही अस्थायी नेतृत्व शून्यता भी उत्पन्न हो सकती है।

सुधार हेतु सुझाव

  • उपाध्यक्ष की नियुक्ति के लिए एक निर्धारित समय सीमा संविधान या नियमों में तय की जानी चाहिए।
  • नियुक्ति की प्रक्रिया को अनिवार्य और स्वचालित बनाया जाना चाहिए।
  • न्यायपालिका द्वारा समय-समय पर इस विषय में मार्गदर्शन और निगरानी की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

लोकसभा उपाध्यक्ष का पद न तो प्रतीकात्मक है और न ही वैकल्पिक। यह संसद के कार्यप्रणाली की कुशलता और निष्पक्षता का प्रतिनिधि होता है। इस पद की उपेक्षा संविधान की भावना के विरुद्ध  होने के साथ ही स्वस्थ लोकतंत्र पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करती है। अतः समय आ गया है कि इस पद की गरिमा को पुनः स्थापित किया जाए और इसे समयबद्ध रूप से भरा जाए।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X